Benazir Bhutto Murder Story: कैसे हुई पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या? आइए जानते हैं बेनज़ीर भुट्टो की ज़िंदगी के आखिरी पलों की कहानी!

Benazir Bhutto Murder Mystery: पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो की 2007 में लोकतंत्र बहाली के अभियान के दौरान 27 दिसंबर को रावलपिंडी में आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी गई थी।;

Update:2025-03-23 17:33 IST

Benazir Bhutto Murder Mystery (Photo - Social Media)

Benazir Bhutto Murder Mystery: बेनज़ीर भुट्टो, पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री, लोकतंत्र और प्रगतिशील राजनीति की प्रतीक थीं। अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने सफलता और संघर्ष दोनों का सामना किया। 1999 में परवेज़ मुशर्रफ के सैन्य शासन में निर्वासन झेलने के बाद, वे 2007 में लोकतंत्र की बहाली के संकल्प के साथ पाकिस्तान लौटीं। उनका आगमन जहां समर्थकों के लिए उम्मीद था, वहीं उनके विरोधियों को असहज कर गया।

27 दिसंबर 2007, पाकिस्तान(Pakistan) के इतिहास का काला दिन बन गया। इस दिन रावलपिंडी की एक रैली में, अपने समर्थकों का अभिवादन करते हुए, एक आत्मघाती हमलावर ने उन पर हमला कर दिया। पहले गोलियां चलाई गईं और फिर बम विस्फोट हुआ, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

उनकी हत्या केवल एक घटना नहीं थी, बल्कि उन 18 घंटों की परिणति थी, जिनमें उन्होंने अंतिम भाषण दिया, जनता से मुलाकात की और एक नए पाकिस्तान का सपना देखा। इस लेख में हम उनके अंतिम घंटों का विश्लेषण करेंगे ।

भुट्टो की आखिरी रात, 26 दिसंबर 2007

26 दिसंबर 2007 की रात पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री(Former Prime Minister Of Pakistan) और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (PPP) की नेता बेनज़ीर भुट्टो(Benazir Bhutto) इस्लामाबाद(Islamabad) स्थित अपने घर में थीं। उस समय वे अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और करीबी सलाहकारों के साथ बैठक कर रही थीं। इस बैठक में मुख्य रूप से आगामी चुनावी अभियानों की रणनीति पर चर्चा हो रही थी।

अहम बैठक और चुनावी रणनीति

इस महत्वपूर्ण बैठक में रावलपिंडी में अगले दिन होने वाली एक विशाल रैली पर विशेष रूप से चर्चा की गई। यह रैली 27 दिसंबर को लियाकत बाग़ में आयोजित की जानी थी, जो पाकिस्तान की राजनीति में एक ऐतिहासिक स्थान है। बेनज़ीर भुट्टो(Benazir Bhutto) इस रैली के माध्यम से अपने समर्थकों से संवाद करना चाहती थीं और चुनावी अभियान को और अधिक प्रभावी बनाना चाहती थीं।

बैठक में मौजूद पार्टी के नेताओं और उनके सुरक्षा सलाहकारों ने उनसे विशेष अनुरोध किया कि वे रैली में जाते समय और वहां संबोधन के दौरान अतिरिक्त सुरक्षा उपाय अपनाएँ। विशेष रूप से उन्हें सलाह दी गई कि वे खुले वाहन में यात्रा न करें, क्योंकि उन पर पहले भी जानलेवा हमले हो चुके थे।

सुरक्षा अधिकारियों की चेतावनी

है। बेनज़ीर भुट्टो(Benazir Bhutto) के सुरक्षा अधिकारियों ने उन्हें यह भी याद दिलाया कि 18 अक्टूबर 2007 को कराची में उनके काफिले पर एक आत्मघाती हमला हुआ था, जिसमें 130 से अधिक लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे। यह हमला उनके पाकिस्तान लौटने के कुछ ही घंटों के भीतर हुआ था और इससे स्पष्ट संकेत मिला था कि उनकी जान को गंभीर खतरा है।

इसके बावजूद, बेनज़ीर भुट्टो ने अपने सुरक्षा अधिकारियों की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वे हमेशा अपने समर्थकों के करीब रहना चाहती हैं और खुली जीप में यात्रा करके उनसे सीधा संवाद करना चाहती हैं। उनके लिए यह अधिक महत्वपूर्ण था कि वे जनता के साथ घुल-मिलकर अभियान चलाएँ, बजाय इसके कि वे कड़ी सुरक्षा के घेरे में रहें।

जनता से जुड़ने की जिद

बेनज़ीर भुट्टो की सोच थी कि यदि वे बुलेटप्रूफ वाहनों और कड़े सुरक्षा घेरे में रहेंगी, तो उनके समर्थकों और आम जनता के बीच यह संदेश जाएगा कि वे उनसे दूर हो गई हैं। वे चाहती थीं कि उनके कार्यकर्ता और समर्थक यह महसूस करें कि वे एक सच्ची जननेता हैं, जो उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं।

बैठक के दौरान कई वरिष्ठ नेताओं ने उनसे सुरक्षा को लेकर आग्रह किया, लेकिन उन्होंने दृढ़ता से कहा, "अगर मुझे मरना है, तो मैं अपने लोगों के बीच ही मरूँगी, न कि किसी छुपी हुई जगह पर।"

रात का अंत और अगले दिन की तैयारी

बैठक देर रात तक चली, जिसमें रैली की तैयारियों के अंतिम चरण की समीक्षा की गई। इसके बाद बेनज़ीर भुट्टो ने कुछ देर आराम किया और अगले दिन की योजनाओं को लेकर आत्मविश्वास से भरी हुई थीं। उनके मन में एक ही लक्ष्य था, पाकिस्तान में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना और अपने समर्थकों को एक नई आशा देना। लेकिन किसे पता था कि यह उनकी आखिरी रात होगी।

27 दिसंबर 2007 की सुबह, एक नया दिन, नई उम्मीदें

सुबह होते ही बेनज़ीर भुट्टो ने अपने परिवार के सदस्यों से मुलाकात की। उनके पति, आसिफ अली ज़रदारी, उस समय दुबई में थे, लेकिन उनके बच्चे पाकिस्तान में ही थे। उन्होंने अपने कुछ करीबियों से फोन पर बात की और फिर रैली के लिए तैयारी शुरू कर दी।

सुबह 10 बजे के करीब, वे अपने राजनीतिक सलाहकारों के साथ एक बैठक में शामिल हुईं, जहाँ उन्होंने अपने भाषण के अंतिम मसौदे पर चर्चा की। उनका भाषण लोकतंत्र, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और पाकिस्तान के भविष्य को लेकर था। वे चाहती थीं कि पाकिस्तान में एक स्थायी लोकतंत्र स्थापित हो और सैन्य शासन समाप्त हो।

बेनज़ीर भुट्टो की आखिरी यात्रा

दोपहर 12 बजे: बेनज़ीर भुट्टो अपनी बुलेटप्रूफ काले रंग की टोयोटा लैंड क्रूजर में बैठकर इस्लामाबाद से रावलपिंडी के लिए रवाना हुईं। उनके साथ उनके सुरक्षा गार्ड, करीबी सहयोगी और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (Pakistan Peoples Party) के वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे। कार के चारों ओर सुरक्षा काफिला चल रहा था, जिसमें कई पुलिस वाहन और निजी सुरक्षाकर्मी शामिल थे।

यात्रा के दौरान संवाद और आत्मविश्वास

रास्ते में, बेनज़ीर भुट्टो ने कई बार फोन पर अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से बातचीत की। वे लगातार रैली की तैयारियों और वहां जुट रही भीड़ के बारे में जानकारी ले रही थीं। उनके शब्दों से झलक रहा था कि वे बिल्कुल भी डरी हुई नहीं थीं, बल्कि उनके अंदर जोश और उत्साह था।

उन्होंने अपने एक सहयोगी से कहा, "यह चुनाव पाकिस्तान के भविष्य का फैसला करेगा। हमें पूरी ताकत से जनता के बीच जाना होगा।" उनकी आवाज़ में आत्मविश्वास था, और वे अपनी वापसी को पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहाली की दिशा में एक निर्णायक कदम मान रही थीं।

रावलपिंडी में ऐतिहासिक रैली

दोपहर 2:30 बजे के करीब, बेनज़ीर भुट्टो का काफिला रावलपिंडी(Rawalpindi) के लियाकत बाग़ पहुंचा। यहां पहले से ही हजारों की संख्या में उनके समर्थक जुटे हुए थे। यह वही ऐतिहासिक जगह थी, जहां 1951 में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की हत्या हुई थी। भीड़ में जबरदस्त उत्साह था । लोग पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (PPP) के झंडे लहरा रहे थे, नारे लगा रहे थे, और उनकी एक झलक पाने को बेताब थे।

जैसे ही बेनज़ीर भुट्टो(Benazir Bhutto) मंच पर पहुँचीं, चारों ओर तालियों और जयकारों की गूंज सुनाई देने लगी। उन्होंने अपनी पार्टी का झंडा लहराया और मुस्कुराते हुए जनता का अभिवादन किया। उनका भाषण जोशीला और प्रेरणादायक था। उन्होंने पाकिस्तान के लोकतंत्र, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, और देश के विकास के लिए अपने दृष्टिकोण पर बात की।

उन्होंने अपने समर्थकों से कहा, "मैं पाकिस्तान के लिए अपनी जान देने को तैयार हूँ, लेकिन मैं इस देश को तानाशाही के हाथों में नहीं जाने दूँगी!" यह सुनते ही भीड़ में एक नई ऊर्जा आ गई।

रैली के बाद का माहौल

शाम 5.15 बजे के आसपास, जब रैली समाप्त हुई, तो रावलपिंडी के लियाकत बाग़ में हजारों समर्थकों की मौजूदगी में बेनज़ीर भुट्टो अपनी बुलेटप्रूफ टोयोटा लैंड क्रूजर में बैठ चुकी थीं। सुरक्षा अधिकारियों ने उन्हें कार के अंदर ही रहने की सलाह दी थी, लेकिन वे अपने समर्थकों का उत्साह देखकर खुद को रोक नहीं सकीं। वे सनरूफ से बाहर निकलीं और हाथ हिलाकर भीड़ का अभिवादन करने लगीं।

शाम 5:30 बजे, अचानक हमला

जैसेही बेनज़ीर भुट्टो कार से बाहर निकली अचानक, भीड़ में छिपे एक हमलावर ने उन्हें निशाना बनाकर दो गोलियां दागीं। पहली गोली उनके सिर में लगी और दूसरी उनके गर्दन में। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, एक ज़ोरदार धमाका हुआ और हमलावर ने खुद को बम से उड़ा लिया।

धमाके से मची अफरा-तफरी

धमाका इतना भीषण था कि उसकी आवाज़ कई किलोमीटर दूर तक सुनी गई। विस्फोट स्थल के आसपास मौजूद लोग हवा में उछलकर गिर पड़े। धुएं और धूल के गुबार में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। चारों ओर चीख-पुकार मच गई, घायल लोग जमीन पर पड़े कराह रहे थे, और भगदड़ से हालात और बिगड़ गए।

बेनज़ीर भुट्टो गंभीर रूप से घायल

धमाके और गोलियों के बाद बेनज़ीर भुट्टो लहूलुहान होकर कार के अंदर गिर गईं। उनके करीबी सहयोगी और सुरक्षाकर्मी घबराकर उन्हें बचाने के लिए आगे बढ़े। कार के अंदर अफरा-तफरी का माहौल था।

अस्पताल ले जाने की कोशिश

उनकी गाड़ी तेज़ी से रावलपिंडी जनरल अस्पताल(Rawalpindi General Hospital) (अब बेनज़ीर भुट्टो अस्पताल) की ओर दौड़ाई गई। रास्ते में बेनज़ीर भुट्टो की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। उन्हें तुरंत आपातकालीन कक्ष में ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उनका इलाज शुरू किया।

शाम 6:16 बजे, बेनज़ीर भुट्टो का निधन

आखिरकार, शाम लगभग 6:16 बजे डॉक्टरों ने आधिकारिक रूप से घोषणा कर दी कि बेनज़ीर भुट्टो अब इस दुनिया में नहीं रहीं। यह खबर पूरी दुनिया में तेजी से फैल गई और पाकिस्तान में शोक की लहर दौड़ गई।

पाकिस्तान में शोक और गुस्सा

बेनज़ीर भुट्टो की हत्या की खबर फैलते ही पूरे देश में हंगामा मच गया। कराची, लाहौर, इस्लामाबाद और अन्य शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए। विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, लोग रो रहे थे, नारे लगा रहे थे, और उनके समर्थक गहरे सदमे में थे। पाकिस्तान में तीन दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया और दुनिया भर के नेताओं ने उनकी मौत पर दुख व्यक्त किया।

एक युग का अंत

बेनज़ीर भुट्टो की शहादत ने पाकिस्तान की राजनीति को झकझोर कर रख दिया। वे एक ऐसी नेता थीं, जो लोकतंत्र और अपने देश के भविष्य के लिए लड़ रही थीं। उनकी मृत्यु के साथ पाकिस्तान के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया, लेकिन उनकी विरासत और संघर्ष आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा है।

कौन थी बेनज़ीर भुट्टो?


बेनज़ीर भुट्टो(Benazir Bhutto)का जन्म 21 जून 1953 को पाकिस्तान के कराची शहर में हुआ था। वे पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (PPP) के संस्थापक ज़ुल्फिकार अली भुट्टो और नुसरत भुट्टो की बेटी थीं। उनका परिवार पाकिस्तान की राजनीति में बेहद प्रभावशाली था।

शिक्षा और प्रारंभिक जीवन

बेनज़ीर भुट्टो का प्रारंभिक जीवन राजनैतिक माहौल में बीता। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा कराची के लेडी जेनिंग्स नर्सरी स्कूल और कॉन्वेंट ऑफ़ जीसस एंड मैरी से प्राप्त की। इसके बाद, वे उच्च शिक्षा के लिए विदेश चली गईं।

1969-1973: उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Radcliffe College), अमेरिका(America) से राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

1973-1977: इसके बाद, वे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी गईं, जहाँ उन्होंने फिलॉसफी, पॉलिटिक्स और इकोनॉमिक्स (PPE) की पढ़ाई की। ऑक्सफोर्ड में रहते हुए वे छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहीं और ऑक्सफोर्ड यूनियन की अध्यक्ष बनने वाली पहली एशियाई महिला बनीं।

राजनीति में प्रवेश

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, बेनज़ीर भुट्टो 1977 में पाकिस्तान लौटीं। लेकिन उसी वर्ष जनरल ज़ियाउल हक़ ने सैन्य तख्तापलट कर उनके पिता ज़ुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार को गिरा दिया। 1979 में उनके पिता को फांसी दे दी गई, जिससे बेनज़ीर की जिंदगी पूरी तरह बदल गई। वे राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हो गईं और पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष करने लगीं।

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