Bhanwari Devi Case Kya Hai: महिलाओं के यौन उत्पीड़न पर रोकथाम के लिए पहली बार बना था कानून, भवरी देवी थी जिसकी वजह
Bhanwari Devi Case Kya Hai: दलित परिवार से ताल्लुक रखने वालीं भवरी देवी के संघर्ष का ही नतीजा था कि महिलाओं के कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश (विशाखा गाइडलाइन्स) जारी किए थे।;
Bhanwari Devi (Pic Credit- Social Media)
Bhanwari Devi Case In Hindi: आज हर महिला के पास ये अधिकार है कि वो कार्यस्थल पर अपने साथ हो रहे शोषण या नाइंसाफी के विरोध में जाकर कानून का दरवाजा खटखटा सकती है, लेकिन कुछ वर्षों पहले ऐसा नहीं था। 1997 में विशाखा गाइडलाइन्स (Vishaka Guidelines) के तहत भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के एक दस्तावेज के रूप में, महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW) का सहारा लिया, जिसके तहत विशाखा दिशानिर्देश के रूप में ज्ञात दिशा-निर्देश स्थापित किए गए।
इन दिशा-निर्देशों में कार्यस्थल पर महिलाओं के सामने आने वाले खतरों को संबोधित किया गया है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि नियोक्ता को अपने कर्मचारियों और उनके व्यवसाय से प्रभावित अन्य लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि ऐसी घटनाएं संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत प्रदत्त लैंगिक समानता और जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। परिणामस्वरूप, न्यायालय ने परमादेश रिट जारी की और रोकथाम के लिए विशिष्ट निर्देश दिए। जैसे कार्यस्थलों या अन्य संस्थानों में नियोक्ता या अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों का यह कर्तव्य होगा कि वे यौन उत्पीड़न को रोकें तथा समाधान और निपटान तंत्र उपलब्ध कराएं। न्यायालय ने परिभाषित किया कि यौन उत्पीड़न क्या होता है। इस उद्देश्य के लिए, यौन उत्पीड़न में ऐसे अवांछित यौन रूप से निर्धारित व्यवहार (चाहे सीधे या निहितार्थ से) शामिल हैं।
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के कार्यान्वयन से लगभग 15 वर्ष पहले विशाखा दिशा-निर्देशों में सुरक्षित कार्य वातावरण की जिम्मेदारी नियोक्ता पर डाल दी गई थी। विशाखा गाइडलाइन्स भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए दिए गए वो दिशानिर्देश हैं जो कि भंवरी देवी के साथ हुए एक भयावह अपराध से प्रेरित थे।
भंवरी देवी कौन थीं (Bhanwari Devi Kaun Thi)?
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भंवरी देवी राजस्थान के एक छोटे से गाँव में रहने वाली एक दलित महिला थीं। वह 1980 के दशक में राजस्थान सरकार के “महिला विकास परियोजना“ तहत साथिन (सामुदायिक कार्यकर्ता) के रूप में काम कर रही थीं। उनका काम बाल विवाह और महिलाओं पर हिंसा के खिलाफ जागरूकता फैलाना था। भंवरी देवी केवल सामाजिक कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि एक प्रतिभाशाली लोक गायिका भी हैं। उन्होंने अपने संगीत और संघर्ष दोनों से समाज को जागरूक करने का काम किया है।
भंवरी देवी का व्यक्तिगत जीवन (Bhanwari Devi Wikipedia In Hindi)
भंवरी देवी राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के एक छोटे से गाँव भगत का बस (निकट जयपुर) की रहने वाली हैं। वह एक दलित (कुम्हार) समुदाय से आती हैं और एक साधारण ग्रामीण पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखती हैं।
परिवार और शादी
भंवरी देवी की शादी गोलू राम से हुई थी, जो एक साधारण मजदूर थे। उनके परिवार में सीमित संसाधन थे, लेकिन वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और समाज सुधार के प्रति समर्पित थीं। उनका जीवन गरीबी और सामाजिक भेदभाव के संघर्षों से भरा रहा।
क्या है भंवरी देवी केस (1992)
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1992 में भंवरी देवी ने अपने गांव में ऊंची जाति के गुर्जर परिवार में एक 9 महीने की बच्ची का बाल विवाह रोका। इससे गांव के प्रभावशाली लोग नाराज हो गए और पांच ऊंची जाति के गुर्जर लोगों ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न उठाते हुए उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया।
जब भंवरी देवी ने न्याय के लिए पुलिस और अदालत का सहारा लिया, तो उन्हें न्यायपालिका और प्रशासन से भेदभावपूर्ण रवैया झेलना पड़ा। निचली अदालत ने अपराधियों को बरी कर दिया, यह कहते हुए कि “ऊंची जाति के लोग कभी दलित महिला के साथ बलात्कार नहीं कर सकते“।
इस तरह हुआ विशाखा गाइडलाइन्स का जन्म
तमाम कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने के बाद भी भंवरी देवी को न्याय नहीं मिला, लेकिन इस केस ने महिलाओं के अधिकारों और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मुद्दे को राष्ट्रीय बहस का विषय बना दिया। “विशाखा“ नामक एक महिला संगठन सहित कुछ संगठनों ने भवरी देवी के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की।
1997 में, इस मामले में बड़ी सफलता मिली जब सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा व अन्य बनाम भारत सरकार मामले में महिलाओं के कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश (विशाखा गाइडलाइन्स) जारी किए।
विशाखा गाइडलाइन्स के मुख्य बिंदु
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यौन उत्पीड़न की परिभाषा
इसमें शारीरिक संपर्क, अनुचित टिप्पणियाँ, अश्लील चित्र, धमकी, आदि शामिल हैं।
महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित करना।
प्रत्येक संगठन में शिकायत निवारण तंत्र बनाना अनिवार्य किया गया।
नियोक्ताओं की जिम्मेदारी
उन्हें अपनी महिला कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।
विशाखा गाइडलाइन्स का प्रभाव
इन दिशा-निर्देशों के आधार पर 2013 में भारत सरकार ने “यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम“ (Sexual Harassment of Women at Workplace Act, 2013) पारित किया, जो आज भी कार्यस्थलों पर लागू होता है।
भंवरी देवी को व्यक्तिगत न्याय भले ही न मिला हो, लेकिन उनके संघर्ष ने पूरे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचा तैयार करने में मदद की। विशाखा गाइडलाइन्स महिलाओं के कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा के लिए मील का पत्थर साबित हुईं।
सामाजिक कार्य और संघर्ष
सार्वजनिक जीवन और संघर्ष के बाद भंवरी देवी ने हिम्मत नहीं हारी और अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ लड़ती रहीं।
उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और न्याय के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात रखी। उनके संघर्ष ने भारत में “विशाखा गाइडलाइन्स“ और 2013 के यौन उत्पीड़न अधिनियम (Sexual Harassment Act) को जन्म दिया।
उपेक्षित जीवन जी रहीं भंवरी देवी
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लोक गीत कलाकार भंवरी देवी (Bhanwari Devi) अब भी अपने गाँव में रहती हैं और सामाजिक कार्यों से जुड़ी हुई हैं। सरकार या समाज से उन्हें कोई खास आर्थिक मदद नहीं मिली, और वे आज भी गरीबी और सामाजिक भेदभाव का सामना कर रही हैं।
कई मानवाधिकार संगठन और नारीवादी समूह समय-समय पर उनके समर्थन में आगे आते रहे हैं। भंवरी देवी का जीवन संघर्ष, साहस और सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणादायक कहानी है। उन्होंने अपने साथ हुए अन्याय को एक बड़े सामाजिक सुधार का आधार बनाया, जिससे आज लाखों महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षा के अधिकार मिले हैं।
इनका संगीत से रहा है नाता
भंवरी देवी का संगीत से गहरा नाता है। वह राजस्थान की लोक गायिका भी हैं और पारंपरिक मांगणियार व लंगा संगीत शैली में गाने के लिए जानी जाती हैं।
भंवरी देवी राजस्थान के पारंपरिक भजन, सूफी गीत और लोकगीत गाती हैं।
उनके गीत आमतौर पर सामाजिक संदेश, नारी शक्ति, प्रेम, विरह और भक्ति पर आधारित होते हैं।
सामाजिक मुद्दों से जुड़ा संगीत
उनके गीतों में महिलाओं की पीड़ा, सामाजिक अन्याय और दलित समुदाय की समस्याओं की झलक मिलती है।
वह अपने संगीत के माध्यम से महिला सशक्तिकरण और सामाजिक बदलाव का संदेश देती हैं।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच
उन्होंने भारत के कई संगीत समारोहों और अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर प्रस्तुति दी है।
उनके गायन को न केवल राजस्थान बल्कि विदेशों में भी सराहा जाता है।
लोकसंगीत को दी नई पहचान
उनके गायन ने राजस्थानी लोकसंगीत को नई पहचान दिलाने में मदद की।
उन्होंने कई प्रसिद्ध लोक कलाकारों और संगीतकारों के साथ भी काम किया है।
भंवरी देवी और प्रसिद्धि
उनका संगीत राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। उनकी आवाज़ में लोकसंगीत की गहराई और भावनात्मक अपील होती है, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती है।
भंवरी देवी केवल सामाजिक कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि एक प्रतिभाशाली लोक गायिका भी हैं। उन्होंने अपने संगीत और संघर्ष दोनों से समाज को जागरूक करने का काम किया है।