International Mother Language Day 2025: अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस क्यों मनाया जाता है, जानें इसका इतिहास और महत्व

Antarrashtriya Matrubhasha Divas 2025: यूनेस्को ने 1999 में 21 फरवरी को "अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस" के रूप में मान्यता दी, और 2000 से इसे विश्व स्तर पर मनाया जाने लगा। आइए जानें इसका इतिहास, महत्व और उद्देश्य के बारे में।;

Written By :  Akshita Pidiha
Update:2025-02-20 11:53 IST

International Mother Language Day 2025 (Pic Credit- Social Media)

International Mother Language Day 2025: हर साल 21 फरवरी को मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (International Mother Language Day) भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को प्रोत्साहित करने के लिए समर्पित है। यह दिवस मातृभाषा के महत्व को दर्शाता है और भाषाई अधिकारों को बढ़ावा देता है।

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का इतिहास (International Mother Language Day History In Hindi)

जब भारत को 1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिली, तो उपमहाद्वीप का विभाजन हुआ, जिससे एक अलग मुस्लिम राष्ट्र, पाकिस्तान, बना, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान (आज का पाकिस्तान) शामिल थे। हालांकि, इन दोनों हिस्सों के बीच सांस्कृतिक और भाषाई मतभेद गहरे थे।

1948 में, पाकिस्तान सरकार ने उर्दू को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया, जिससे पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली भाषी बहुसंख्यक समुदाय में असंतोष फैल गया। इस फैसले के विरोध में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए, क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान की अधिकांश आबादी बंगाली भाषा बोलती थी।

21 फरवरी 1952 को ढाका विश्वविद्यालय के छात्रों और कार्यकर्ताओं ने बंगाली भाषा को आधिकारिक दर्जा देने की मांग को लेकर एक विशाल विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की, जिसमें चार छात्रों की मौत हो गई।

बंगाली भाषा आंदोलन में शहीद हुए इन छात्रों की कुर्बानी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर याद किया जाता है। उनकी शहादत के कारण ही 1956 में बंगाली को पाकिस्तान की आधिकारिक भाषाओं में शामिल किया गया, और आगे चलकर यह आंदोलन बांग्लादेश की स्वतंत्रता का आधार बना।

इन बलिदानों को सम्मान देने के लिए बांग्लादेश में 21 फरवरी को "शहीद दिवस" (Shaheed Day) के रूप में मनाया जाता है। बाद में, बांग्लादेश सरकार के अनुरोध पर यूनेस्को (UNESCO) ने 1999 में इसे "अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस" के रूप में मान्यता दी, और 2000 से इसे विश्व स्तर पर मनाया जाने लगा।

महत्व और उद्देश्य (International Mother Language Day Importance and purpose)

(Pic Credit- Social Media)

भाषाई विविधता को संरक्षित करना – दुनियाभर में करीब 6000 भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें से कई लुप्त होने की कगार पर हैं। यह दिवस लोगों को अपनी मातृभाषा को संजोने के लिए प्रेरित करता है।

शिक्षा में मातृभाषा की भूमिका – मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा बच्चों के बौद्धिक विकास में सहायक होती है।

संस्कृति और पहचान का संरक्षण – भाषा किसी भी समुदाय की पहचान और उसकी संस्कृति का आधार होती है।

भाषाई अधिकारों को बढ़ावा देना – यह दिवस सभी भाषाओं को समान महत्व देने और भाषाई भेदभाव को समाप्त करने का संदेश देता है।

कैसे मनाया जाता है?

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है:

1. शैक्षणिक संस्थानों में आयोजन

स्कूलों और कॉलेजों में निबंध लेखन, वाद-विवाद, भाषण, कविता पाठ और पोस्टर प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। भाषाओं के महत्व पर सेमिनार और कार्यशालाएँ होती हैं।

2. सांस्कृतिक कार्यक्रम

विभिन्न भाषाओं में गीत-संगीत, नाटक और कला प्रदर्शनियाँ आयोजित की जाती हैं। मातृभाषा के महत्व को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय साहित्यिक आयोजनों का आयोजन किया जाता है।

3. डिजिटल और सरकारी स्तर पर कार्यक्रम

कई देशों में सरकारी और गैर-सरकारी संगठन भाषाई जागरूकता अभियान चलाते हैं। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर विभिन्न भाषाओं में पोस्ट साझा की जाती हैं। यूनेस्को इस दिन से संबंधित विशेष कार्यक्रम आयोजित करता है।

भारत में हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली मातृभाषा (Most Spoken Mother Tongue
 In India)

(Pic Credit- Social Media)

भारत में 19 हजार से ज्यादा मातृभाषा हैं। साल 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार भारत में 43.63 फीसदी लोग हिंदी को अपनी मातृभाषा मानते हैं। दूसरे नंबर पर बांग्ला और तीसरे नंबर पर मराठी भाषा है। वहीं गैर सूचीबद्ध भाषाओं की बात करें, तो राजस्थान में बोली जाने वाली भीली इस सूची में पहले जबकि गोंडी भाषा दूसरे नंबर पर आती है।

हर साल की थीम (International Mother Language Day Theme)

यूनेस्को हर साल अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के लिए एक विशेष थीम घोषित करता है। यह थीम वैश्विक भाषाई विविधता और शिक्षा से संबंधित होती है।

भाषा अधिकार न केवल अल्पसंख्यकों बल्कि स्वदेशी समुदायों के लिए भी एक महत्वपूर्ण मानवाधिकार विषय हैं। कई विशेष प्रतिवेदकों, जिनमें मेरे स्वयं के जनादेश भी शामिल हैं, ने पहले ही इस मुद्दे को उठाया है। उन्होंने अल्पसंख्यक और स्वदेशी भाषाओं को शिक्षा से वंचित करने या सीमित करने की प्रवृत्ति की आलोचना की है। कुछ मामलों में, यह प्रवृत्ति भेदभावपूर्ण नीतियों का हिस्सा होती है, जो अल्पसंख्यकों और स्वदेशी लोगों को मुख्यधारा में आत्मसात करने के एक सूक्ष्म प्रयास के रूप में देखी जाती है।

राज्यों को अल्पसंख्यक और स्वदेशी भाषाओं के उपयोग को सीमित करने के बजाय, उनके संरक्षण और संवर्धन में निवेश करना चाहिए। इसके लिए शिक्षण सामग्री का विकास, शिक्षकों का प्रशिक्षण, और मातृभाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनाने की आवश्यकता है, जहाँ संभव हो। यह सुनिश्चित करेगा कि अल्पसंख्यक और स्वदेशी बच्चों को साक्षरता और संख्यात्मक कौशल प्राप्त हों, जिससे वे न केवल अपनी मातृभाषा बल्कि आधिकारिक भाषाओं सहित अन्य भाषाओं को भी प्रभावी ढंग से सीख सकें। यह दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत समानता और गैर-भेदभाव की गारंटी देने का सबसे प्रभावी तरीका है।

दुनिया की भाषाई समृद्धि और विविधता का सम्मान करने के लिए, हमें राष्ट्रवादी बहुसंख्यकवाद की उस संकीर्ण सोच से आगे बढ़ना होगा, जो केवल एक भाषा को समाज और राज्य के लिए आवश्यक मानता है और अन्य भाषाओं को हाशिए पर धकेलता है। यह विचार समावेशी समाजों के सिद्धांतों के विपरीत है, जो भाषाई अल्पसंख्यकों और स्वदेशी समुदायों के मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस और स्वदेशी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय दशक भाषा और सांस्कृतिक विविधता के उत्सव का एक महत्वपूर्ण अवसर हैं। ये पहल न केवल दुनिया की भाषाई विरासत को संरक्षित करने में सहायक हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती हैं कि अल्पसंख्यकों और स्वदेशी समुदायों की भाषाओं के अधिकारों को समान रूप से पहचाना और संरक्षित किया जाए।

भारत में विभिन्न राज्यों की मातृभाषाएँ और उनका इतिहास (Mother Tongues Of Different States In India)

(Pic Credit- Social Media)

भारत भाषाई और सांस्कृतिक विविधता का एक अद्भुत उदाहरण है। यहाँ 22 भाषाएँ संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध हैं, जबकि 1600 से अधिक मातृभाषाएँ और बोलियाँ प्रचलित हैं। प्रत्येक राज्य की अपनी एक प्रमुख भाषा होती है, जो वहाँ के लोगों की मातृभाषा के रूप में जानी जाती है।

उत्तर भारत – हिंदी प्रमुख भाषा है, साथ ही पंजाबी, राजस्थानी, अवधी, ब्रज, मैथिली, भोजपुरी, कश्मीरी जैसी भाषाएँ प्रचलित हैं।

पूर्वोत्तर भारत – असमिया, मणिपुरी, बोडो, नागामी, ककबरोक और अन्य जनजातीय भाषाएँ बोली जाती हैं।

पश्चिम भारत – मराठी, गुजराती, कोंकणी भाषाएँ यहाँ की सांस्कृतिक पहचान हैं।

दक्षिण भारत – तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम जैसी द्रविड़ भाषाएँ प्रमुख हैं।

भारत की भाषाएँ संस्कृति और परंपरा की धरोहर हैं, लेकिन आधुनिकरण के कारण कई भाषाएँ विलुप्ति के कगार पर हैं। इसलिए, उनका संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है, ताकि हमारी भाषाई और सांस्कृतिक विविधता बनी रहे।

भारत की भाषाई विविधता इसकी संस्कृति और परंपरा की अनूठी पहचान है। प्रत्येक राज्य की मातृभाषा वहाँ की संस्कृति, इतिहास और समाज को दर्शाती है। हालाँकि, ग्लोबलाइजेशन और आधुनिकरण के कारण कई भाषाएँ विलुप्ति के कगार पर हैं, इसलिए इनका संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है। मातृभाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर भी है, जिसे सहेजकर रखना हम सभी की ज़िम्मेदारी है।

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस केवल भाषाओं के सम्मान का दिन नहीं है, बल्कि यह विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ने, भाषाओं को संरक्षित करने और समाज में भाषाई समावेशन को बढ़ावा देने का एक अवसर भी है। हमारी मातृभाषा हमारी पहचान है, और इसे संजोना हमारी जिम्मेदारी भी है।

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