पितृपक्ष का इतिहास: कैसे हुआ शुरू, महाभारत के कर्ण से है जुड़ा ये राज

सनातन मान्यता के अनुसार जो परिजन अपना देह त्यागकर चले गए हैं, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है।

Update: 2020-09-02 14:20 GMT
पितृपक्ष का इतिहास: कैसे हुआ शुरू, महाभारत के कर्ण से है जुड़ा ये राज

लखनऊ: पितृपक्ष का महीना शुरू हो गया है, इन दिनों लोग अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं जिसे श्राद्ध कहते हैं जिसका मतलब है श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करने से है। सनातन मान्यता के अनुसार जो परिजन अपना देह त्यागकर चले गए हैं, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वो परिवारजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। पितृपक्ष आज से शुरू हो गया है जो 17 सितंबर तक रहेगा।

इनको कहा जाता है पितर

जिस किसी के परिजन चाहे वो विवाहित हों या अविवाहित हों, बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है, पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। पितरों के प्रसन्न होने पर घर में सुख शांति आती है।

पूजा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है

पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं। बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती ऐसी स्थिति में शास्त्रों के अनुसार आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है। इसलिये इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।

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महाभारत के कर्ण से है श्राद्ध से जुड़ी पौराणिक मान्यता

मान्यता है कि जब महाभारत के युद्ध में दानवीर कर्ण का निधन हो गया और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई, तो उन्हें नियमित भोजन की बजाय खाने के लिए सोना और गहने दिए गए। इस बात से निराश होकर कर्ण की आत्मा ने इंद्र देव से इसका कारण पूछा। तब इंद्र ने कर्ण को बताया कि आपने अपने पूरे जीवन में सोने के आभूषणों को दूसरों को दान किया लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों को भोजन दान नहीं दिया।

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15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस आये थे दानवीर कर्ण

तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वो अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानता है और उसे सुनने के बाद, भगवान इंद्र ने उसे 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी ताकि वो अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सके। इसी 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है।

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