क्या गर्भवती महिलाएं भी रख सकती हैं नवरात्रि में नौ दिन का उपवास, जानें

गर्भावस्था में निर्जला उपवास नहीं रखना चाहिए। ऐसे में पानी मां और बच्चे दोनों के लिए बहुत जरूरी है। अगर फिर भी ऐसा करती हैं तो इस बात पर हमेशा ध्यान रखिए

Update: 2020-10-16 03:03 GMT
उपवास कभी-कभी समय से पहले बच्चे के जन्म (एमेच्योर डिलीवरी) का कारण भी हो सकता है।”

लखनऊ: करवचौथ ,नवरात्रि जैसे त्योहारों को हर कोई करता है। अभी कोरोना का समय है फिर भी लोग व्रत उपवास करना नहीं छोड़ते हैं। ऐसे में जब सामान्य तौर पर अधिकांश महिलाएं व्रत रखती हैं तो क्या गर्भवती महिलाएं भी उपवास रख सकती हैं? यह बड़ा सवाल है। चिकित्सकों का कहना है कि व्रत के दौरान अच्छा-बुरा प्रभाव केवल मां पर ही नहीं, बल्कि होने वाली संतान पर भी पड़ सकता है, इसलिए सावधानी बहुत जरूरी है।

 

उपवास रखने में कोई परेशानी नहीं

गर्भावस्था के दौरान व्रत रखना बहुत हद तक आपके शरीर पर निर्भर करता है, क्योंकि जब आप अंदर से अच्छा महसूस कर रही हैं, तब उपवास रखने में कोई परेशानी नहीं है। लेकिन कुछ मामलों जैसे शरीर में खून की कमी, कमजोरी, उच्च रक्तचाप या फिर गर्भकालीन मधुमेह (जेस्टेशनल डायबिटीज) में चिकित्सक गर्भवती महिला को उपवास रखने की सलाह नहीं देते हैं

 

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पहली और तीसरी तिमाही में गर्भावस्था में व्रत की सलाह नहीं दी जाती। पहले तीन महीनों में अगर लंबे समय तक भूखा रहा जाए, तो जी मिचलाना और उल्टी की समस्या हो सकती है। गर्भ में एक से अधिक बच्चा हो तो व्रत-उपवास करना खतरनाक भी हो सकता है।”

चिकित्सकों के अनुसार

 

उपवास का गर्भवती के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? इस सवाल पर जयपुर की डॉक्टर रश्मि वशिष्ठ, का कहना है कि “गर्भावस्था के दौरान उपवास के कई अल्पावधि या दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं। कुछ महिलाएं खतरे को नजरंदाज करते हुए उपवास रखती हैं।

इसका तत्काल प्रभाव हालांकि मां पर ही पड़ता है, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि उपवास कभी-कभी समय से पहले बच्चे के जन्म (एमेच्योर डिलीवरी) का कारण भी हो सकता है।”

 

सोशल मीडिया से फोटो

गर्भस्थ शिशु को प्रभावित

 

उन्होंने कहा, “इतना ही नहीं, शरीर में पानी की कमी आपके गर्भस्थ शिशु को प्रभावित कर सकती है और उपवास भ्रूण के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है। साथ ही जन्म के समय बच्चे का वजन कम रह सकता है।”

डॉ. नीरा सिंह ने कहा, “अगर किसी तरह की समस्या है, फिर तो यह बेहद अहम है कि आप अपने चिकित्सक की सलाह लें और वह जैसा कहें, वैसा ही करें। अगर चिकित्सक उपवास करने से मना नहीं करते हैं तब भी खानपान का ध्यान रखें, नियमित परामर्श जैसी सामान्य चीजों का ध्यान रखकर आप व्रत में रह सकती हैं।

 

वाराणसी की प्रसूति विशेषज्ञ डॉ. जगदम्बिका पाल के अनुसार, “गर्भवती महिलाओं के लिए व्रत पर निर्णय लेना हमेशा उधेड़बुन भरा रहता है, जहां परंपराओं को पूरा करना होता है, अगर आप स्वस्थ हैं, तो व्रत रखिए और सबसे जरूरी बात कि अपने चिकित्सक के ‘हां’ कहने पर ही उपवास रखें।”

 

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चिकित्सकों का कहना है कि कुछ शोध रिपोर्ट में उपवास का बच्चे पर कोई असर न पड़ने की बात कही गई है, तो कुछ में कहा गया है कि जो मांएं उपवास करती हैं, उनके गर्भ से जन्मे बच्चे को आगे चलकर कई तरह की शारीरिक कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। कुल मिलाकर अगर गर्भावस्था में पहले से कोई मुश्किल नहीं है, तो उपवास से कोई खास असर नहीं पड़ता। बस, आपको थोड़ा अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है।”

 

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तरल पदार्थ का सेवन

निर्जला उपवास नहीं रखना चाहिए। ऐसे में पानी मां और बच्चे दोनों के लिए बहुत जरूरी है। अउपवास रखने पर नारियल पानी, दूध व जूस जैसे पेय पदार्थ लें। फल, सब्जी, जूस से शरीर में पानी की जरूरत भी पूरी होती है और पोषक तत्व भी मिल जाते हैं।

 

 

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* उपवास में कॉफी या चाय का सेवन न करें या फिर कम से कम करें।

* अगर मौसम काफी गर्म या उमस भरा हो तो घर के अंदर ही रहें।

* उपवास के दौरान व्यायाम या कोई भारी काम मत करें।

* व्रत तोड़ने के दौरान शुरू में एक ग्लास जूस या नारियल पानी पीएं। इसके बाद कुछ हल्का खाना खाएं।

* व्रत के दौरान गर्भ में भ्रूण की हलचल पर नजर रखें और समय-समय पर चिकित्सीय जांच कराती रहें।

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