Rani Durgavati History: मुगलों के सामने घुटने न टेकने वाली रानी दुर्गावती, जिसने कटार से खुद की ली जान

Gondwana Ki Rani Durgavati Ki Kahani: रानी दुर्गावती का नाम भारतीय इतिहास में उनके साहसिक संघर्षों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। मुगल साम्राज्य के विस्तार के तहत अकबर ने गोंडवाना पर अधिकार करने की योजना बनाई।

Written By :  AKshita Pidiha
Update:2024-12-22 13:10 IST

Gondwana Ki Rani Durgavati Ki Kahani (Photo - Social Media)

Rani Durgavati Ki Kahani: रानी दुर्गावती भारतीय इतिहास की उन अद्वितीय महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने अपने साहस, नेतृत्व और बलिदान से न केवल अपने राज्य को गौरवान्वित किया, बल्कि भारतीय इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी। उनके जीवन की कहानी प्रेरणा, वीरता और मातृभूमि के प्रति प्रेम की अद्भुत मिसाल है।

रानी दुर्गावती का जन्म और प्रारंभिक जीवन

रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर, 1524 को कालींजर के राजा सालिवाहन के घर हुआ था। उनका नाम भगवान दुर्गा के नाम पर रखा गया, क्योंकि उनके जन्म के समय नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा था।


बाल्यावस्था से ही दुर्गावती ने शास्त्र और शस्त्र दोनों की शिक्षा प्राप्त की। उनकी रुचि घुड़सवारी, तीरंदाजी और तलवारबाजी में थी।

राजनीतिक विवाह और गोंडवाना साम्राज्य की रानी

16 वर्ष की आयु में दुर्गावती का विवाह गोंडवाना साम्राज्य के राजा दलपत शाह से हुआ, जो गोंड वंश के राजा संग्राम शाह के पुत्र थे। यह विवाह न केवल दो राजघरानों का मिलन था, बल्कि यह गोंड और चंदेल वंश के बीच एकता का प्रतीक भी था।


1545 में राजा दलपत शाह की असमय मृत्यु के बाद, दुर्गावती ने अपने तीन वर्षीय पुत्र वीर नारायण के साथ गोंडवाना साम्राज्य का शासन संभाला।

गोंडवाना साम्राज्य का गौरव रानी दुर्गावती

दुर्गावती ने अपने कुशल प्रशासन से गोंडवाना को एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य में बदल दिया। उन्होंने किसानों के कल्याण, सिंचाई परियोजनाओं और कला-संस्कृति के विकास के लिए कई प्रयास किए। उनके शासनकाल में राज्य में शांति और समृद्धि का माहौल था। रानी दुर्गावती के दौर में गोंडवाना साम्राज्य न केवल सैन्य शक्ति में बल्कि आर्थिक और सांस्कृतिक विकास में भी अग्रणी रहा।


रानी का शासन से अधिक उनके पराक्रम और शौर्य के चर्चे ज्यादा थे। कहा जाता है कि कभी उन्हें कहीं शेर के दिखने की खबर होती थी, वे तुरंत शस्त्र उठा कर चल देती थीं और और जब तक उसे मार नहीं लेती, पानी भी नहीं पीती थीं। लेकिन मानिकपुर के सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां ने रानी दुर्गावती के विरुद्ध अकबर को उकसाते हुए उनके सौंदर्य की बहुत तारीफ की। अकबर अन्य राजपूत घरानों की विधवाओं की तरह दुर्गावती को भी रनिवासे की शोभा बनाना चाहता था।

रानी दुर्गावती का अकबर के खिलाफ संघर्ष

रानी दुर्गावती का नाम भारतीय इतिहास में उनके साहसिक संघर्षों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। मुगल साम्राज्य के विस्तार के तहत अकबर ने गोंडवाना पर अधिकार करने की योजना बनाई। 1564 में मुगल सेनापति आसफ खान ने गोंडवाना पर आक्रमण किया। अकबर की सेना ने जब गोंडवाना पर आक्रमण किया, तो रानी दुर्गावती ने अपने पुत्र वीर नारायण के साथ घोड़े पर सवार होकर तलवार उठाई और दुश्मनों पर जोरदार हमला कर दिया।


उनके अदम्य साहस को देखकर मुगल सेना में अफरा-तफरी मच गई। इस हार से हताश होकर आसफ खां ने रानी को शांति का प्रस्ताव भेजा, जिसे रानी ने दृढ़ता से अस्वीकार कर दिया। इसके बाद, आसफ खां ने कुछ समय बाद फिर से हमला किया। लेकिन इस बार भी रानी की कुशल रणनीति और साहस के आगे मुगल सेना को पराजय का सामना करना पड़ा।


तीसरी बार आसिफ खां ने दोगुनी ताकत से हमला किया। इस युद्ध में रानी के वीर पुत्र वीर नारायण ने सैकड़ों सैनिकों को मारकर वीरगति को प्राप्त की। 24 जून, 1564 को हुए हमले में रानी ने केवल 300 सैनिकों साथ सैंकड़ों मुगल सैनिकों को मारा और बहादुरी से लड़ रही थीं कि अचानक एक तीर आकर उनकी आंख में लगा। लेकिन उन्होंने खुद को दुश्मनों को जिंदा पकड़ने नहीं दिया अपनी ही कटार छाती में उतार कर बलिदान दे दिया। जबलपुर के पासमंडला रोड पर स्थित रानी की समाधि बनी है।

रानी दुर्गावती का बलिदान और वीरगति

आसफ खान के साथ हुए युद्ध में रानी दुर्गावती की सेना ने अदम्य साहस का परिचय दिया। हालांकि, मुगल सेना अधिक शक्तिशाली और संसाधनों से परिपूर्ण थी। जब रानी को यह एहसास हुआ कि युद्ध में जीतना असंभव है और दुश्मन उन्हें बंदी बनाना चाहता है, तब उन्होंने अपने सम्मान और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आत्मबलिदान का मार्ग चुना।


24 जून, 1564 को उन्होंने अपनी कटार से अपना जीवन समाप्त कर लिया। यह घटना उनकी निडरता और सम्मान की रक्षा के प्रति उनके दृढ़ संकल्प का प्रतीक है।

रानी दुर्गावती का  इतिहास में योगदान

महिला सशक्तिकरण की प्रतीक: रानी दुर्गावती ने दिखाया कि महिलाएं भी पुरुषों के समान साहस और नेतृत्व क्षमता रखती हैं। उन्होंने युद्ध के मैदान में और प्रशासन में अपनी योग्यता साबित की।

स्वतंत्रता संग्राम में प्रेरणा: उनकी वीरगाथा ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अनेक योद्धाओं को प्रेरित किया।


कृषि और सिंचाई में योगदान: उन्होंने अपने राज्य में जल प्रबंधन और सिंचाई परियोजनाओं को बढ़ावा दिया, जिससे कृषि का विकास हुआ।

कला और संस्कृति का संरक्षण: उनके शासनकाल में गोंडवाना में कला और संस्कृति का व्यापक विकास हुआ।

रानी दुर्गावती की स्मृति में

शैक्षणिक संस्थान: रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर, उनके सम्मान में नामित है। यह संस्थान शिक्षा और शोध के क्षेत्र में अग्रणी है।

स्मारक: जबलपुर में रानी दुर्गावती का स्मारक उनके बलिदान और वीरता को सम्मानित करता है।


डाक टिकट: भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया।

राजकीय सम्मान: मध्य प्रदेश सरकार ने उनके नाम पर कई योजनाएं और संस्थाएं शुरू की हैं।

क्यों याद करनी चाहिए रानी दुर्गावती को

रानी दुर्गावती भारतीय इतिहास की उन महान विभूतियों में से एक हैं, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उनके जीवन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी साहस और सम्मान का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए। उनकी कहानी आज भी महिलाओं के लिए एक आदर्श है और हमें यह सिखाती है कि सच्चा नेतृत्व कठिनाइयों के समय ही प्रकट होता है।

कुछ पहलुओं को लेकर इतिहासकारों और विद्वानों के बीच मतभेद देखने को मिलते हैं:

कुछ इतिहासकारों का मत: उनका मानना है कि गोंडवाना के खिलाफ अकबर की सेनाओं का हमला एक सत्तावादी कदम था, जिसका उद्देश्य केवल विस्तारवाद था।अन्य इतिहासकारों का मत: यह कहा जाता है कि आसफ खान का अभियान व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से प्रेरित था और अकबर इस पर सीधे तौर पर शामिल नहीं थे।


2.रानी दुर्गावती के युद्ध की रणनीति को लेकर भी चर्चा होती है। कुछ आलोचकों का मानना है कि उनकी सेना बेहतर तैयारी कर सकती थी, जबकि उनके समर्थक इस बात पर जोर देते हैं कि उन्होंने अपने सीमित संसाधनों के साथ अद्वितीय साहस का परिचय दिया।

3. एक पक्ष का मानना है कि उन्होंने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए आत्महत्या की। दूसरा पक्ष यह तर्क देता है कि यह कदम युद्ध की हार और राज्य की सुरक्षा के अंतिम प्रयास का हिस्सा था।

4. रानी दुर्गावती और दलपत शाह के विवाह को लेकर भी अलग-अलग मत हैं। कुछ इतिहासकार इसे राजनैतिक गठबंधन मानते हैं, जबकि अन्य इसे गोंड और चंदेल वंशों के सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों के प्रतीक के रूप में देखते हैं।

5.कुछ समुदाय और संगठन उनके नाम का उपयोग अपने एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए करते हैं, जिससे उनके योगदान का सही मूल्यांकन नहीं हो पाता।रानी दुर्गावती से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों और स्मारकों की स्थिति को लेकर भी विवाद उठते रहे हैं। कुछ आलोचकों का कहना है कि सरकारें उनके स्मारकों की देखरेख और संरक्षण में लापरवाही करती रही हैं।


6. चूंकि रानी दुर्गावती एक हिंदू शासक थीं और गोंडवाना में जनजातीय समाज के साथ उनकी साझेदारी थी, इसलिए उनके धर्म और संस्कृति को लेकर भी विभिन्न व्याख्याएं की जाती हैं। कुछ उन्हें पूरी तरह हिंदू शासक मानते हैं, जबकि अन्य उनकी पहचान को गोंड जनजाति से जुड़े सामाजिक ताने-बाने के रूप में देखते हैं।

इन विवादों के बावजूद, रानी दुर्गावती को भारतीय इतिहास में उनकी अद्वितीय नेतृत्व क्षमता और मातृभूमि के लिए किए गए बलिदान के लिए व्यापक रूप से सम्मानित किया जाता है। उनके योगदान को लेकर किसी विवाद से उनकी वीरता और महानता कम नहीं होती।

रानी दुर्गावती का किला और उसका महत्व

रानी दुर्गावती से जुड़ा प्रमुख किला चौरागढ़ किला है, जो मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में स्थित है। यह किला गोंडवाना साम्राज्य के सैन्य और प्रशासनिक शक्ति का प्रतीक था। इसे रानी दुर्गावती के पिता-पुत्रों द्वारा निर्मित एक मजबूत गढ़ माना जाता है।


चौरागढ़ किले की विशेषताएँ-यह किला रणनीतिक रूप से एक ऊंचे स्थान पर स्थित है, जिससे दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखना आसान था। किले की बनावट गोंडवाना की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें राजसी द्वार, प्राचीर और अंदरूनी भागों में पानी के कुंड शामिल हैं। किले के अंदर कई मंदिर और पूजा स्थल हैं, जो गोंड संस्कृति और परंपराओं को दर्शाते हैं।वर्तमान में किला खंडहर में बदल चुका है। लेकिन इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता बरकरार है। सरकार और इतिहास प्रेमी इसके संरक्षण के प्रयास कर रहे हैं।

उनकी विरासत का आधुनिक प्रभाव

रानी दुर्गावती की स्मृति को आज भी जबलपुर और मध्य प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में संरक्षित किया गया है। उनके नाम पर विश्वविद्यालय, स्मारक और योजनाएँ बनाई गई हैं, जो उनके योगदान को याद करती हैं।

रानी दुर्गावती केवल एक शासक ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा की एक जीती-जागती मिसाल थीं। उनका जीवन हमें कर्तव्य, साहस और आत्मसम्मान के महत्व को सिखाता है। इतिहास में उनका योगदान और बलिदान उन्हें अमर बनाता है। भारतीय इतिहास के पन्नों में उनका नाम सदा स्वर्णाक्षरों में लिखा रहेगा।

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