Samadhi Kya Hai: ध्यान की परम स्थिति है समाधि, जानिए इसे कैसे लेते हैं ?
Samadhi Kya Hai: समाधि एक सामान्य रूप से प्रयोग किया जाने वाला संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है- ध्यान की ऐसी स्थिति जिसमें बाहरी चेतना विलुप्त हो जाती है।
Samadhi Kya Hai: समाधि एक सामान्य रूप से प्रयोग किया जाने वाला संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है- ध्यान की ऐसी स्थिति जिसमें बाहरी चेतना विलुप्त हो जाती है। इसे ध्यान का या आध्यात्मिक जीवन का आखिरी चरण माना जाता है।
आध्यात्मिक जीवन में 'समाधि' ध्यान की उस स्थिति को कहा जाता है जब ध्यान लगाने वाला व्यक्ति और ध्यान की जाने वाली चीज दोनों का आपस में विलय हो जाते हैं, एकाकार हो जाते हैं, उनमें कोई भेद नहीं रह जाता। फिर इस चरण में कोई विचार प्रक्रिया नहीं रह जाती। इसे ध्यान की उच्चतम अवस्था माना जाता है। समाधि, शांत मन की सबसे अच्छी स्थिति है। इसके अतिरिक्त इसे एकाग्रता की भी सर्वोच्च अवस्था माना जाता है। इसके अंतर्गत किसी वस्तु पर ध्यान एकाग्र करने वाला व्यक्ति और वस्तु आखिरकार दोनों एक हो जाते हैं। अर्थात् ध्यान की इस स्थिति में, ध्यान लगाने वाले व्यक्ति के आत्म और उस वस्तु के बीच का अंतर पूरी तरह से मिट जाता है। वे एकाकार हो जाते हैं।
समाधि के लिए जरूरी चीजें
उपनिषदों में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को समाधि की अवस्था प्राप्त करने से पहले अनावश्यक गतिविधियों से बचना चाहिए। उसे संयमित वाणी, संयमित शरीर और संयमित मस्तिष्क की आवश्यकता होती है। उसे आध्यात्मिक जीवन की सभी कठिनाइयों के प्रति न केवल सहनशील होना चाहिए अपितु उसका त्यागी और धैर्यवान होना भी आवश्यक है। एक व्यक्ति वास्तव में अपनी सच्ची प्रकृति और आत्ममान केवल समाधि के द्वारा ही प्राप्त कर सकता है। वैसे, स्वामी विवेकानंद द्वारा बताए गए चार योगों - राजयोग, कर्मयोग, भक्तियोग और जननयोग में से किसी एक के द्वारा समाधि की अवस्था प्राप्त की जा सकती है।
समाधि की अवस्था
- समाधि की अवस्था में मन अन्य सभी वस्तुओं का संज्ञान खो देता है। यहां तक कि उस वस्तु तक का संज्ञान समाप्त हो जाता है जिसपर ध्यान लगाया गया था। इस स्थिति में मन, ध्यान लगाई जाने वाली वस्तु में इतना तल्लीन हो जाता है कि किसी और का कोई भान ही नहीं रहता।
- समाधि की स्थिति में व्यक्ति तीनों सामान्य चेतनाओं - सोने, जागने और सपने देखने की अवस्थाओं से परे किसी चौथी अवस्था में चला जाता है।
- समाधि की स्थिति में व्यक्ति का अहंकार पूरी तरह से नष्ट हो जाता है। फिर मन एक ऐसे अस्तित्व में रहता है, एक ऐसी अवस्था में विलीन हो जाता है, जो ज्ञान और अहं से कहीं ऊपर है। जहां व्यक्ति स्वयं अपनी चेतना खो देता है।
- समाधि में कारण, प्रभाव और तर्क के संकीर्ण क्षेत्रों का कोई स्थान नहीं रह जाता। समाधि में कुछ भी तार्किक नहीं है। इस स्थिति के अंतर्गत शरीर लगभग पूरी तरह से अपनी सभी सचेतन शारीरिक गतिविधियों को बंद कर देता है, फिर भी व्यक्ति मरता नहीं है। यह एक विचारशून्य अवस्था है, जिससे लौटने के बाद व्यक्ति के विचार अपने आप में पूर्ण और निर्बाध होते हैं और उसके विचारों में स्पष्ट वैश्विक दृष्टि झलकती है।
- ध्यान की वह अवस्था जब व्यक्ति ईश्वर या अपने आराध्य में एकाकार हो जाता है समाधि कहलाती है। इस अवस्था में व्यक्ति को स्पर्श, रस, गंध, रूप एवं शब्द इन 5 विषयों की इच्छा नहीं रहती तथा उसे भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी आदि का आभास भी नहीं होता। ऐसा व्यक्ति शक्ति संपन्न बनकर अमरत्व को प्राप्त कर लेता है। उसके जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है।
संयम और समाधि
- पूर्ण रूप से सांस पर नियंत्रण और मन स्थिर व सन्तुलित हो जाता है, तब समाधि की स्थिति कहलाती है। प्राणवायु को 5 सेकंड तक रोककर रखना 'धारणा' है, 60 सेकंड तक मन को किसी विषय पर केंद्रित करना 'ध्यान' है और 12 दिनों तक प्राणों का निरंतर संयम करना ही समाधि है।
समाधि के प्रकार
भगवान श्री कृष्ण ने भी भागवत गीता में समाधि के बारे में विस्तार से बताया है। योग में समाधि के दो प्रकार बताए गए हैं- सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात। सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्मितानुगत होती है। असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है।
भक्ति सागर में समाधि के 3 प्रकार बताए गए है- भक्ति समाधि, योग समाधि, ज्ञान समाधि। पुराणों में समाधि के 6 प्रकार बताए गए हैं जिन्हें छह मुक्ति कहा गया है- साष्ट्रि, (ऐश्वर्य), सालोक्य (लोक की प्राप्ति), सारूप (ब्रह्मस्वरूप), सामीप्य, (ब्रह्म के पास), साम्य (ब्रह्म जैसी समानता) और लीनता या सायुज्य (ब्रह्म में लीन होकर ब्रह्म हो जाना)।
ऐसे की जाती है समाधि
जब व्यक्ति प्राणायाम, प्रत्याहार को साधते हुए धारणा व ध्यान का अभ्यास पूर्ण कर लेता है तब वह समाधि के योग्य बन जाता है। समाधि के लिए व्यक्ति के मन में किसी भी प्रकार के बाहरी विचार नहीं होते।
व्यक्ति का मन पूर्ण स्थिर रहकर आंतरिक आत्मा में लीन हो जाता है तब समाधि घटित होती है। इसलिए समाधि से पहले ध्यान के अभ्यास को बताया गया है। ध्यान से ही चित्त विचार शून्य हो जाने की अवस्था में समाधि घटित होती है।
समाधि प्राप्त व्यक्ति का व्यवहार सामान्य व्यक्ति से अलग हो जाता है, वह सभी में ईश्वर को ही देखता है और उसकी दृष्टि में ईश्वर ही सत्य होता है। समाधि में लीन होने वाले योगी को अनेक प्रकार के दिव्य ज्योति और आलौकिक शक्ति का ज्ञान प्राप्त स्वत: ही होता है।