घातक मार कोरोना कीः अब बना रहा मानसिक रोगों का शिकार, बचें ऐसे
कोरोना काल में जिस तरह के मानसिक स्वास्थ्य विकारों के मामले सामने आ रहे हैं वो ये हैं। स्थिति ही व्यक्ति के तनाव और अवसाद का मुख्य कारण बन गयी है। मानसिक तनाव और अवसाद के कारण आत्महत्याओं के मामले भी बढ़े हैं।
लखनऊ: कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ता ही जा रहा है। जो लोग इसका शिकार हो रहे हैं वो तो बीमारीहो ही जा रहे हैं लेकिन जो लोग इस संक्रमण से बच रहे हैं वो मानसिक रूप से बीमारी हो रहे हैं। इस बीमारी के कारण समाज के एक बड़े हिस्से में मानसिक स्वास्थ्य विकार भी पनप रहे हैं हालांकि मानसिक स्वास्थ्य कर्मियों की कर्मठता और उपचार की प्रतिबद्धता से इसके रोगियों को बहुत राहत भी मिल रही है।
अवसाद के कारण आत्महत्याओं के मामले बढ़ रहे
बता दें कि कोरोना काल में जिस तरह के मानसिक स्वास्थ्य विकारों के मामले सामने आ रहे हैं वो ये हैं। स्थिति ही व्यक्ति के तनाव और अवसाद का मुख्य कारण बन गयी है। मानसिक तनाव और अवसाद के कारण आत्महत्याओं के मामले भी बढ़े हैं।
>उनमें कोरोना संक्रमण का डर
>बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता
>नौकरियों का छूट जाना तथा वित्तीय असुरक्षा का डर प्रमुख है।
मानसिक स्वास्थ्य का चल रहा प्रशिक्षण
देश के हर हिस्से से कोरोना महामारी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य विकार के मामलों में तेजी आयी है, लेकिन इस स्थिति से रोगियों को उबारने के लिए प्रशिक्षित विशेषज्ञों तथा मानसिक स्वास्थ्य कर्मी जीतोड़ मेहनत भी कर रहे हैं। कर्मियों की यह मेहनत भी रंग लाई है और इसके मरीज स्वस्थ हुए हैं। मानसिक रोगियों की काउंसलिंग और उपचार करने की जिम्मेदारी विशेषज्ञ और कमीर् बखूबी वहन कर रहे हैं।
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2000 डॉक्टरों को प्रशिक्षित किये जाने का लक्ष्य
छत्तीसगढ़ कम्युनिटी मेंटल हेल्थकेयर टेली-मेंटरिंग प्रोग्राम (सीएचएमपी) के अंतर्गत सरकार ने सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के चिकित्सा अधिकारियों और अतिरिक्त चिकित्सा अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (निम्हांस) के साथ समझौता किया है। इसके तहत 2000 डॉक्टरों को प्रशिक्षित किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है तथा अब तक 550 डाक्टरों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
प्रशिक्षित डॉक्टरों द्वारा 14,500 रोगियों का उपचार किया गया
इससे पहले ग्रामीण स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य उपचार सुनिश्चित कराने के उद्देश्य से प्रदेश के डॉक्टरों को बुनियादी मानसिक स्वास्थ्य सेवा पर पहले से ही प्रशिक्षण दिया जा रहा था। जुलाई 2019 और अप्रैल 2020 के बीच सामुदायिक स्तर पर इन प्रशिक्षित डॉक्टरों द्वारा 14,500 रोगियों का उपचार किया गया । कोविड-19 महामारी के दौरान यही प्रशिक्षित चिकित्सा अधिकारी और परामर्शदाता मानसिक स्वास्थ्य रोगियों की पहचान करने के साथ ही उनका उपचार भी कर रहे हैं।
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बुनियादी मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना अनिवार्य
सचिव (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण) निहारिका बारिक सिंह ने कहा कि कोरोना काल में विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य रोगियों के लिए टेलीमेडिसिन की सुविधा दी जा रही है। टेली-परामर्श ने प्राथमिक देखभाल करने वाले डॉक्टरों को भी प्रभावी ढंग से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं प्रदान करने के लिए सशक्त बनाया है। उन्होंने कहा, "मानसिक स्वास्थ्य पर डॉक्टरों का प्रशिक्षण एक सतत प्रक्रिया है और हम मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम-2017 के तहत अनिवार्य रूप से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर बुनियादी मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करेंगे।"
13,715 लोगों को मानसिक स्वास्थ्य परामर्श दिए गए
निहारिका बारिक सिंह ने बताया कि जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम राज्य के 28 में से 27 जिलों में संचालित है। इसके साथ ही 26 जिलों में टेली-क्लिनिक की सुविधा भी उपलब्ध है । छत्तीसगढ़ में बिलासपुर के सेंदरी स्थित एकमात्र राजकीय मानसिक अस्पताल के ओपीडी में गत अप्रैल से जून के बीच 3834 मरीज परामर्श के लिए पहुंचे। इस तिमाही में यहां के क्वारंटीन सेंटर में 14,125 लोगों की जांच की गई और 13,715 लोगों को मानसिक स्वास्थ्य परामर्श दिए गए। इनमें से 967 की पहचान मानसिक रोगों से ग्रसित के रूप में हुई।
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यह हमारे लिए एक बिल्कुल नया अनुभव है
अस्पताल के मनोरोग सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत पांडे ने कहा, "कोरोना जैसी महामारी देश में पहले कभी नहीं देखी गई थी। छत्तीसगढ़ में शायद ही हमें इस तरह की गंभीरता वाली किसी आपदा से सामना हुआ हो , इसलिए यह हमारे लिए एक बिल्कुल नया अनुभव है। हमें इससे बहुत कुछ सीखने को मिला है। सभी जानते हैं कोविड -19 संक्रमण का खतरा है , लेकिन यह कैसे और कहां से आएगा, कोई नहीं जानता। महामारी का लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।"
हमें जो प्रशिक्षण दिया गया उससे काफी मदद मिली
बलौदाबाजार के नोडल अधिकारी (मानसिक स्वास्थ्य) डॉ राकेश प्रेमी ने कहा कि लोग अक्सर सांस लेने में दिक्कत को कोरोना का लक्षण समझ लेते हैं जबकि सांस की तकलीफ अत्यधिक चिंता के कारण भी हो सकती है। उन्होंने कहा, "हमें जो प्रशिक्षण दिया गया , उसके जरिये तनाव और चिंताग्रस्त लोगों की पहचान करने और उनका उपचार करने में बहुत मदद मिली।"