World Puppetry Day 2025: कठपुतली का इतिहास कब से शुरू हुआ, कैसे हुई इनकी शुरुआत, आइए जानते हैं
World Puppetry Day History: विश्व कठपुतली दिवस मनाने का विचार पहली बार 2000 में ईरानी कठपुतली कलाकार जवाद ज़ोल्फ़ाघारी (Javad Zolfaghari) ने रखा था।;
World Puppetry Day 2025 History (Photo - Social Media)
World Puppetry Day History: कठपुतली का इतिहास 2500 ईसा पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। पुरातत्वविदों को एक अलग सिर वाली टेराकोटा गुड़िया मिली थी। इस कठपुतली को एक तार से नियंत्रित किया जा सकता था और यह आम लोगों के लिए मनोरंजन का एक बहुत लोकप्रिय रूप था।प्राचीन ग्रीस में भी कठपुतली कला का इतिहास है। "ग्रीस" कठपुतली शो आम लोगों के सामने खेले जाते थे और इनका यूरोपीय कठपुतली कला के विकास पर गहरा प्रभाव था।
मिस्र में कठपुतलियों का पहला पुरातात्विक साक्ष्य भी 2000 ईसा पूर्व में मिला था। ये कठपुतलियाँ लकड़ी से बनी होती थीं और इन्हें डोरी से चलाया जाता था।16वीं शताब्दी में, पारंपरिक ब्रिटिश "पंच एंड जूडी" कठपुतली की उत्पत्ति इतालवी कॉमेडिया डेल'आर्टे से हुई थी। कठपुतली का यह रूप आम लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया और 19वीं शताब्दी तक इसका विकास जारी रहा। इस दिन का उद्देश्य कठपुतली कला को बढ़ावा देना, इसके महत्व को उजागर करना और लोक कला के संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना है। कठपुतली कला प्राचीनतम प्रदर्शन कलाओं में से एक है, जिसका उपयोग मनोरंजन के साथ-साथ समाज में जागरूकता फैलाने के लिए भी किया जाता है। 2025 में विश्व कठपुतली दिवस और भी खास होने वाला है क्योंकि यह दिन वैश्विक स्तर पर इस प्राचीन कला के संरक्षण और प्रचार-प्रसार को लेकर विशेष आयोजनों से भरा रहेगा।
1. विश्व कठपुतली दिवस का इतिहास
विश्व कठपुतली दिवस मनाने का विचार पहली बार 2000 में ईरानी कठपुतली कलाकार जवाद ज़ोल्फ़ाघारी (Javad Zolfaghari) ने रखा था। उन्होंने सुझाव दिया कि कठपुतली कला के महत्व को पहचानने और इसे वैश्विक स्तर पर सम्मान देने के लिए एक विशेष दिन मनाया जाना चाहिए।
वर्ष 2002 में यूनिमा (UNIMA - Union Internationale de la Marionnette) ने इस प्रस्ताव को स्वीकृति दी और 21 मार्च को आधिकारिक रूप से विश्व कठपुतली दिवस घोषित किया गया।
पहली बार यह दिवस 21 मार्च 2003 को मनाया गया। तब से लेकर हर वर्ष इस दिन कठपुतली कला के प्रचार-प्रसार और संरक्षण के लिए विभिन्न देशों में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
2. कठपुतली कला का महत्व
कठपुतली कला का उपयोग केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। यह कला विभिन्न संस्कृतियों और समाजों में संवाद और जागरूकता का सशक्त माध्यम रही है।
सांस्कृतिक संरक्षण: कठपुतली लोककथाओं, पौराणिक कहानियों और सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रखने का महत्वपूर्ण माध्यम है।
शिक्षा और जागरूकता: बच्चों को नैतिक शिक्षा देने, सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाने और शिक्षा को रोचक बनाने में कठपुतली का उपयोग किया जाता है।
राजनीतिक और सामाजिक संदेश: भारत सहित कई देशों में कठपुतली का उपयोग राजनीतिक और सामाजिक संदेश देने के लिए किया जाता है।
थेरैपी और मनोरंजन: कठपुतली का उपयोग मनोरंजन के अलावा चिकित्सा थेरैपी के रूप में भी किया जाता है। मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में इसे तनाव कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
विश्व कठपुतली दिवस कठपुतली कला को वैश्विक समुदाय के रूप में मान्यता देने और दुनिया भर में कठपुतली कला की प्रथाओं की विविधता का जश्न मनाने का अवसर है। यह कठपुतली कला की पारंपरिक परंपराओं को बनाए रखने और उनकी सुरक्षा के महत्व पर विचार करने का भी दिन है।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि कठपुतली कला सभी प्रकार की सांस्कृतिक और भाषाई बाधाओं को पार करती है। यह लोगों को खुश करती है और उन्हें उनके दैनिक तनाव से विचलित करती है।
विश्व कठपुतली दिवस हमें बचपन की याद दिलाता है, जब हम गुड़ियों और निर्जीव वस्तुओं से खेलते थे और उन्हें नाम देते थे। हमें अपने अंदर के बच्चे को जीवित रखने के लिए यह दिन मनाना चाहिए।
3. विश्व कठपुतली दिवस 2025 की थीम
हर वर्ष विश्व कठपुतली दिवस एक खास थीम पर मनाया जाता है। 2025 की थीम अभी घोषित नहीं हुई है, लेकिन पिछले वर्षों की थीम को देखते हुए इसके केंद्र में पारंपरिक कठपुतली संरक्षण, सांस्कृतिक विरासत और डिजिटल माध्यमों के जरिए कठपुतली कला को आधुनिक रूप देने का उद्देश्य हो सकता है।
उदाहरण के लिए:
2024 की थीम: "Puppetry Unites the World" (कठपुतली विश्व को एकजुट करती है) थी, जिसमें इस कला के माध्यम से वैश्विक एकता और संवाद पर जोर दिया गया था।
4. भारत में कठपुतली कला का इतिहास और महत्व
भारत में कठपुतली कला की एक समृद्ध और गौरवशाली परंपरा रही है। प्राचीन काल में इसे "पुतली नाच" कहा जाता था। यह कला भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रूपों में विकसित हुई।
भारत में प्रमुख कठपुतली शैलियाँ:
राजस्थानी कठपुतली (Kathputli): यह भारत की सबसे प्रसिद्ध कठपुतली कला है। इसमें लकड़ी की रंगीन कठपुतलियों को धागों से नियंत्रित किया जाता है। ये कठपुतलियाँ अक्सर लोककथाओं और राजा-रानी की कहानियाँ प्रस्तुत करती हैं।
बंगाल की पुतुल नाच: पश्चिम बंगाल में प्रचलित यह शैली छड़ी आधारित कठपुतली कला है, जिसमें कलाकार मंच पर कठपुतलियों को छड़ी से संचालित करते हैं।
तमिलनाडु की बौमा: यह छाया कठपुतली कला है, जिसमें सफेद पर्दे के पीछे कठपुतलियों की छाया डालकर प्रस्तुति दी जाती है।
ओडिशा की रावणछाया: ओडिशा में प्रसिद्ध इस कला में चमड़े की बनी कठपुतलियों का उपयोग किया जाता है।
कर्नाटक की गोंबेआटा: इसमें लकड़ी की कठपुतलियों का उपयोग किया जाता है। यह शैली दक्षिण भारत में लोकप्रिय है।
5. विश्व कठपुतली दिवस 2025 के आयोजन और कार्यक्रम
2025 में विश्व कठपुतली दिवस पर दुनिया भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित होंगे।
भारत में आयोजन:
दिल्ली: कठपुतली कला का प्रदर्शन करने वाले विभिन्न कलाकारों की प्रस्तुतियाँ आयोजित की जाएंगी।
जयपुर: राजस्थान में कठपुतली शो और कार्यशालाएँ आयोजित होंगी, जहाँ आगंतुक कठपुतली बनाने और उसे चलाने की कला सीख सकेंगे।
कोलकाता: पुतुल नाच के प्रदर्शन के साथ-साथ कठपुतली मेले का आयोजन होगा।
मुंबई: थिएटर और कठपुतली कला से जुड़ी प्रदर्शनियों का आयोजन होगा, जिसमें बच्चों को कठपुतली बनाना सिखाया जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय आयोजन:
फ्रांस: पेरिस में कठपुतली कला पर आधारित वर्कशॉप आयोजित की जाएगी।
स्पेन: कठपुतली कला को संरक्षित करने के लिए प्रदर्शनी और कार्यशालाएँ आयोजित होंगी।
अमेरिका: कठपुतली के आधुनिक स्वरूप और डिजिटल प्रस्तुति को लेकर कई कार्यक्रम होंगे।
6. कठपुतली कला का भविष्य और चुनौतियाँ
कठपुतली कला तेजी से आधुनिक तकनीक और डिजिटल मनोरंजन की वजह से कम होती जा रही है। लेकिन इसके संरक्षण और प्रचार के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं:
डिजिटल कठपुतली शो: ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर कठपुतली शो दिखाए जा रहे हैं, जिससे इसे नई पीढ़ी तक पहुँचाया जा रहा है।
शिक्षा में कठपुतली: स्कूलों में कठपुतली के माध्यम से बच्चों को नैतिक और सामाजिक शिक्षा दी जा रही है।
थिएटर फेस्टिवल: कठपुतली कला को पुनर्जीवित करने के लिए विशेष थिएटर फेस्टिवल आयोजित किए जा रहे हैं।
विश्व कठपुतली दिवस 2025 न केवल एक उत्सव है, बल्कि यह इस प्राचीन कला के संरक्षण और प्रचार-प्रसार का भी अवसर है। यह दिन हमें कठपुतली कलाकारों के योगदान को सम्मान देने और इस कला को भविष्य की पीढ़ी तक पहुँचाने का संदेश देता है। भारत और विश्व में कठपुतली कला को पुनर्जीवित करने और इसे डिजिटल युग में नई पहचान दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं।