British Book Depot Closes Down: कभी नेहरू और शंकर दयाल शर्मा भी यहां आकर खरीदते थे किताबें
British Book Depot Closes Down: लखनऊ की पहचान 93 वर्ष पुराने प्रतिष्ठित ब्रिटिश बुक डिपो पर लगा ताला, किताब घर के मालिक बोले- इस कोविड महामारी और ऑनलाइन बिक्री ने शहर की प्रमुख दुकानों को बंद करने पर मजबूर कर दिया है।
British Book Depot Closes Down: एक समय हुआ करता था जब लोग अच्छी-अच्छी किताबें खरीदते और उसे पढ़ते थे और उससे सीख लेते थे, लेकिन आज समय बदल गया है लोग काफी हद तक किताबें खरीदने से परहेज करने लगे हैं। मोबाइल के इस युग में लोगों का ध्यान किताबों से हटकर मोबाइल पर चला गया है। आज लोग किताबें पढ़ने की बजाए मोबाइल या इंटरनेट के जरिए ही पढ़ लेेते हैं। वहीं किताबें भी घर बैठे ही ऑनलाइन ही खरीद लेते हैं। ऐसे में कभी अपने किताबों के लिए फेमस कई बुक डिपो आज बंद हो गए हैं या बंद होने की कगार पर हैं।
हम बात कर रहे हैं राजधानी के एक ऐसे बुक डिपो की जहां पर किताबें खरीदने के लिए देश की बड़ी-बड़ी हस्तियां आती थीं। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर शंकर दयाल शर्मा के अलाव कई ऐसी शख्सियत यहां आकर अपने मनपसंद की किताबें खरीदती थीं। यहां पर लोग एक से एक किताबों की तलाश में आते थे और उनकी तलाश यहां पुरी भी हो जाती थी। ब्रिटिश विद्वान लूएलेन जोंस भी अपने शोध के विषय पर इस किताब घर से विभिन्न किताबें खरीदती थीं। यह बुक डिपो उस जमाने में अपनी एक अलग ही पहचान रखता था।
राजधानी लखनऊ के दिल हजरतगंज में स्थित इस ब्रिटिश बुक डिपो पर आज ताला लग चुका है। यानी यह बुक डिपो बंद हो चुका है। बुक डिपो पर ताला लगने से किताब घर के मालिक सूरज प्रकाश कक्कड़ और अन्य लखनऊवासी अपने दुख व्यक्त करते हैं। कक्कड़ कहते हैं कि इस कोविड महामारी और ऑनलाइन बिक्री ने शहर की प्रमुख दुकानों को बंद करने पर मजबूर कर दिया है। लखनऊ के हजरतगंज स्थित 93 वर्ष पुराने प्रतिष्ठित ब्रिटिश बुक डिपो पर ताला लग चुका है। यह लखनऊ वासियों और लखनऊ शहर के इतिहास के लिए एक दुख भरी दास्तां है।
ब्रिटिश बुक डिपो की शुरुआत
अंग्रेजों के समय वर्ष 1930 में हजरतगंज चैराहे के पास शांति प्रकाश कक्कड़ द्वारा प्रतिष्ठित ब्रिटिश बुक डिपो की शुरुआत हुई थी। ब्रिटिश बुक डिपो किताब घर की उत्पत्ति मध्य प्रदेश की महू मिलिट्री मुख्यालय में हुई थी। इस किताब की शुरुआत शांति प्रसाद कक्कड़ ने एक पार्टनर के साथ की थी। कुछ समय पश्चात वे मध्य प्रदेश छोड़कर लखनऊ में बस गए थे और यहां किराये की दुकान में वर्ष 1930 में किताब घर खोला।
इस लिए दिया यह नाम
इस किताब घर का नामकरण ब्रिटिश बुक डिपो इसलिए किया गया क्योंकि इस किताब की स्थापना भारत की आजादी के पहले ब्रिटिश काल में हुई थी। उस दौरान सभी ब्रिटिश पढ़े लिखे और किताबों के शौकीन हुआ करते थे। इसलिए इस किताब घर का नाम ब्रिटिश बुक डिपो रखा गया। ब्रिटिश बुक डिपो के मालिक सूरज प्रकाश कक्कड़ (83) किताब घर बंद होने पर अपना सफर व्यक्त करते हुए कहते हैं “यह किताब घर मेरे पिताजी शांति प्रसाद कक्कड़ द्वारा वर्ष 1930 में स्थापित किया गया था। यह केवल एक किताब बेचने की दुकान नहीं बल्कि किताबों की खान और एक परंपरा है। पिताजी को प्रेम से ज्ञान का व्यापारी कहा जाता था। अपनी दुकान पर आए सभी ग्राहकों को वह किसी न किसी तरीके से ज्ञान जरूर बांटते थे।
यहां हस्तियां भी खरीदती थीं यहां से किताबें
भारत के प्रमुख व्यक्तियों जैसे-पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर शंकर दयाल शर्मा सहित कई बड़े राजनेता और कई प्रमुख हस्तियां लखनऊ आकर ब्रिटिश बुक डिपो से विभिन्न किताबें खरीदते थे। ब्रिटिश विद्वान लूएलेन जोंस भी अपने शोध के विषय पर इस किताब घर से विभिन्न किताबें खरीदती थीं।
इस कारण से लग गया ताला
1)कोविड महामारी के दौरान आर्थिक तंगी झेलने के कारण इस किताब घर को बंद कर दिया गया।
2)वर्तमान समय में बढ़ते ऑनलाइन बाजार ने शहर की पुरानी दुकानों की बिक्री न के बराबर कर दी है, जिसके कारण आर्थिक तंगी से इस दुकान पर ताला लग चुका है।
3)दुकान बंद होने का एक और प्रमुख कारण है कि मालिक की तीन बेटियां हैं जो लखनऊ से बाहर रहती हंै और एक भी बेटा नहीं है। सूरज प्रकाश कक्कड़ की एक बेटी संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में रहती है और बाकी दो बेटियां मुंबई और बंगलुरू में हैं। तीनों बेटियां अपने व्यवसायों में कार्यरत हैं। सूरज प्रकाश कक्कड़ की बढ़ती उम्र और कोई बेटा ना होने के कारण इन दुकान को चला पाना मुश्किल हो रहा है।
और जब रो पड़ते हैं मालिक
दुकान बंद होने पर कक्कड़ अपना दुख व्यक्त करते हुए रो पड़ते हैं और कहते हैं “हर अच्छी और प्यारी चीज का एक समय पर अंत अवश्य होता है और इसी तरह मेरे इस किताब घर का भी अंत हो चुका है। इस किताब घर के बंद होने से लखनऊ शहर के इतिहास की एक मिसाल भी कम हो गई। हाल ही में वर्ष 2022 में कक्कड़ की पत्नी उमा कक्कड़ का भी देहांत हो गया था।
लखनऊवासियों का ब्रिटिश बुक डिपो के प्रति प्रेम
कुछ वर्ष पूर्व मेडिकल और इंजीनियरिंग की किताबें महंगी होने के कारण लखनऊवासी सूरज कक्कड़ से मात्र कुछ घंटों के लिए किताबें किराये पर लेकर फोटो कॉपी करवाकर वापस कर दिया करते थे। बीबीएयू की छात्रा प्रियंका पाण्डे कहती हैं “अपने स्कूल और स्नातक के दौरान मैंने इस किताब घर से विभिन्न किताबें खरीदी हैं। इस किताब घर के मालिक कक्कड़ जी का सभी ग्राहकों के प्रति प्रेम और अपार ज्ञान लोगों को उनके प्रति आकर्षित करता है। दुकान पर आए किसी भी ग्राहक को वह ग्राहक न समझकर अपने परिवार और शहर का सदस्य मानते हुए घंटों बैठाकर बातचीत करते थे और विभिन्न विषयों पर अपना ज्ञान बांटते थे। इस दुकान के बंद होने का मुझे और लखनऊ के विभिन्न छात्रों को बहुत दुख है।”
किताबों को स्कूल और गरीबों में दान दिया जाएगा
ब्रिटिश बुक डिपो के बंद होने के बाद सभी किताबों को विभिन्न स्कूलों और गरीबों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए दान में दिया जायेगा जिससे किताबों का सही उपयोग हो सके।