फादर स्टेन स्वामी की जेल में मृत्यु के मामले में जांच के आदेश: HC
न्यायमूर्ति SS शिंदे और न्यायमूर्ति NJ जामदार ने फादर स्टेन स्वामी की जेल में मृत्यु के मामले में जांच केआदेश दिया है...
बम्बई हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति एस.एस शिंदे और न्यायमूर्ति एन जे जामदार की पीठ ने फादर स्टेन स्वामी की जेल में मृत्यु के मामले में मजिस्ट्रेल जांच के आवेदन की सुनवाई करते हुए अधिकारियों को जांच का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि फादर स्टेन अद्भुत व्यक्ति थे। उन्होंने आदिवासियों के लिए जो काम किया है वह सम्मान के लायक है। साथ ही अदालत ने कहा "चिंता यह है कि कई सालों तक लोगों को बिना मुकदमें के जेल में रहने को कहा जा सकता है। हालांकि, इस मानले में ही नहीं बल्कि अन्य मामलों में भी सवाल उठेगा।
फादर स्टेन स्वामी की जेल में हुई थी मृत्यु
आरोप लगाया जा रहा है कि फादर स्टेन स्वामी की जेल में मृत्यु की वजह एन आई ए और जेल अधिकारियों की लापरवाही है, जिन्होंने फादर स्टेन स्वामी के साथ दुर्व्यवहार किया और उन्हें चिकित्सकीय सुविधा समय पर मुहैया नहीं कराया। फादर स्टेन स्वामी की जेल में मृत्यु ने एक बार फिर मानवाधिकार पर प्रश्न चिन्ह लगाया है।
1967 में फादर स्टेन को गिरफ्तार किया गया
2018 में भीमा कोरेगांव हत्या मामले में माओवादियों से संबंध होने की आशंका के तहत गैर कानूनी गतिविधि निवारण कानून 1967 के तहत अक्टूबर 2020 में फादर स्टेन को गिरफ्तार किया गया था। भारत में आंतरिक विवाद और आतंकवाद से निपटने के लिए 1967 में गैर कानूनी गतिविधि कानून संविधान के 16वे संशोधन के बाद लाया गया था। कानून बनाने का लक्ष्य था कि भारत की अखण्डता और संप्रभुता की रक्षा हो। पंजाब में बढ़ते आतंकवाद को देखते हुए टाडा (टेररिज्म एंड डिस्रप्टिव एक्टिविटी एक्ट1985) लाया गया। पार्लियामेंट हमले के बाद 2002 में पोटा कानून लाया गया, लेकिन सख्त कानून के दुरुपयोग के कारण इन्हें खत्म कर यूएपीए में 2004 में संशोधन कर आतंकवाद शब्द भी जोड़ दिया गया।
जेल में रखने के प्रावधान किए गया
2019 के संशोधन के बाद जहां सिर्फ संस्थान और संगठनों पर पाबंदी लगाई गई थी। अब सिर्फ संगठन और संस्थान ही नहीं बल्कि व्यक्तियों को भी शामिल कर लिया गया। कानून में सख्त प्रावधान किए गए। FIR को ही सत्य मानते हुए 180 दिनों के लिए बिना आरोपपत्र दायर के भी जेल में रखने के प्रावधान किए गए। पुलिस और जांच एजेंसी 30 दिनों तक पूछताछ के लिए रिमांड के सकते है ।ये प्रावधानों में सख्ती बरती गई। यूएपीए एक्ट की धारा 43 डी(5)कहता है प्रथम दृष्टया आरोपी को दोषी माना जायेगा और निर्दोष साबित करना दोषी के पक्ष होगी, जबकि न्यायसिद्धान्त में दोष अभियोजन पक्ष के ऊपर होता है।
दिल्ली दंगे में पांच छात्र आरोपी को दी गई जमानत
दिल्ली दंगे में पांच छात्र आरोपी को जमानत देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा" कि यूएपीए जैसे सख्त कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है। इस कानून की धारा 15 में आतंकवावादी कृत्य की परिभाषा दी गयी है।उसका ध्यान रखा जाए "और आरोपियों को जमानत दे दी गयी।
2019 में एन आई ए बनाम ज़हीर अहमद शाह वताली केस में कहा कि आग यू ए पी ए के अंतर्गत चार्ज किया गया तो बेल आवेदन की सुनवाई के वक़्त प्रथम सूचना रिपोर्ट को सच माना जायेगा।
भारत को सुरक्षित करने के लिए सख्त कदम और कानून अनिवार्य
आतंकवादऔर आंतरिक क्लेश और विवाद से भारत को सुरक्षित करने के लिए सख्त कदम और कानून अनिवार्य है ।लेकिन साथ ही सख्त कानून के मूल्यों को बचाये रखने के लिए आवयश्क है कि लागू कराने वाले तंत्र को ज्यादा जिम्मेवार और सतर्क होने चाहिए ताकि दोषियों को सज़ा मिले और कानून की गरिमा बनी रहे ।वर्षों बाद की सज़ा के बाद अगर एक निर्दोष बरी होता है तो सिर्फ अपने जीवन के प्रति निराशा उत्पन्न नहीं करता बल्कि न्याय पाने के तंत्र पर भी प्रश्न उत्पन्न करता है ।