Maharashtra News: महाराष्ट्र में पर्दे के पीछे से कौन सा गेम खेल रही बीजेपी? आखिर क्या है मकसद
Maharashtra News: एनसीपी में पिछले कई दिनों से लगातार घमासान जारी था, कयास लग रहे थे कि अजित पवार एक बार फिर पलटी मारने वाले हैं, जिसके लिए पार्टी विधायकों को मनाने की तैयारी चल रही है, लेकिन शरद पवार ने अब अपना इस्तीफा वापस ले लिया है।
Maharashtra News: पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से ही महाराष्ट्र की राजनीति लगातार हलचल जारी है। चुनाव नतीजों के बाद फडणवीस-अजित पवार का शपथ ग्रहण कर सरकार बनाने का कांड फिर एमवीए का गठबंधन और फिर शिवसेना में बगावत और उद्धव सरकार का गिरना और अब एनसीपी में घमासान... महाराष्ट्र में राजनीतिक घटनाक्रम इतनी तेजी से बदल रहा है कि किसी भी चुनावी पंडित के लिए सही-सही भविष्यवाणी करना आसान नहीं है। हालांकि इस पूरे सियासी ड्रामे को लेकर कई तरह के कयास भी लगाए जा रहे हैं, कहा जा रहा है कि यह पूरा खेल पर्दे के पीछे से चला जा रहा है। पहले शिवसेना और अब एनसीपी में मचे घमासान के पीछे आखिर किसका खेल है। कौन है इसके पीछे आइए समझते हैं।
सबसे पहले हम बात करते हैं मौजूदा विवाद की। जो एनसीपी चीफ शरद पवार के इस्तीफे के ऐलान के बाद शुरू हुआ था, लेकिन अब पवार ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया है। पिछले कई दिनों एनसीपी में लगातार घमासान चल रहा था, ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि अजित पवार एक बार फिर पलटी मारने वाले हैं, जिसके लिए पार्टी के विधायकों को मनाने की तैयारी चल रही है, लेकिन इसी बीच शरद पवार ने बड़ा दांव खेल दिया और अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि उनकी जगह अब कोई दूसरा पार्टी संभालेगा यानी पार्टी अध्यक्ष होगा। बायदा इसके लिए 16 सदस्यीय कमेटी भी बनाई गई, जिसमें अजित पवार, सुप्रिया सुले सहित कई बड़े नेता शामिल थे। लेकिन इस कमेटी ने नया नेता चुनने की जगह एकमत होकर शरद पवार का इस्तीफा ही नामंजूर कर दिया है और कहा है कि पवार ही एनसीपी के अध्यक्ष रहेंगे। शुक्रवार को शरद पवार ने अपना इस्तीफा भी वापस ले लिया।
विधानसभा चुनाव के बाद शुरू हुआ खेल
अब बात करते हैं महाराष्ट्र की राजनीति में जो पिछले चार सालों से खेल चल रहा है उसकी। इस पूरे खेल को समझने के लिए कुछ साल पीछे जाना होगा। दरअसल 2019 में जब चुनाव नतीजे आए तो उसके बाद शिवसेना ने बीजेपी के साथ हाथ मिलाने से इनकार कर दिया था। ऐसे में अब सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भी बीजेपी अकेली खड़ी थी। शिवसेना के बाद बीजेपी के पास एनसीपी दूसरा विकल्प थी, लेकिन शरद पवार को मनाना आसान नहीं था। इसी बीच एनसीपी में अचानक बगावत की खबर सामने आई और शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने बीजेपी के साथ मिलकर पूरा पासा ही पलट दिया। सुबह करीब 6 बजे देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार चुपके से राजभवन पहुंचे और दोनों ने मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली।
जानिए क्या था बीजेपी का प्लान-
इस घटना के बाद बीजेपी का पर्दे के पीछे का गेम सबके सामने आ गया और इस बात का खुलासा हो गया कि चुनाव नतीजों के बाद देवेंद्र फडणवीस ने क्या समीकरण बनाए थे। इससे बीजेपी ने दो निशाने साधने की कोशिश की थी। पहला तो उसका मकसद था एनसीपी जैसी बड़ी पार्टी को तोड़ना, जिसका फायदा सीधे बीजेपी को राज्य और केंद्र में होता। वहीं दूसरा मकसद था सत्ता तक पहुंचने का, जिसमें अजित पवार के साथ मिलकर सरकार चलाने का प्लान शामिल था। लेकिन इस बार बीजेपी का यह खेल शरद पवार के राजनीतिक अनुभव के आगे बौना साबित हुआ और अजित पवार विधायकों को जुटाने में नाकाम रहे और नतीजा यह हुआ कि तीन दिन बाद फडणवीस-अजित पवार की ये सरकार गिर गई।
शिंदे ने की बगावत और बीजेपी को मिल गया मौका-
शरद पवार ने बीजेपी और फडणवीस के सरकार बनाने के सपनों पर भले ही पानी फेर दिया था, लेकिन असली खेल अभी भी बाकी था। फिर क्या था बीजेपी अब शिवसेना में ऐसी चिंगारी की तलाश में जुट गई थी जो उद्धव ठाकरे के खिलाफ उठ रही हो। इस दौरान बीजेपी नेता और फडणवीस लगातार सरकार गिरने के बयान देकर माहौल बना रहे थे और इसी बीच एकनाथ शिंदे के तौर पर बीजेपी को बगावत की चिंगारी दिख गई, जिसे पर्दे के पीछे से लगातार हवा देकर सुलगाया गया। ऐसा माना जाता है कि शिंदे की बगावत से ठीक पहले ही पूरी कहानी लिख दी गई थी। मतलब साफ है कि शिंदे और बीजेपी के बीच खिचड़ी पक रही थी। परिणाम यह हुआ कि बीजेपी शासित राज्यों में बागी विधायकों को पांच सितारा होटल में ठहराया गया और उन्हें सुरक्षा भी दी गई। शिंदे गुट के विधायक कई दिनों तक असम के गुवाहाटी में रहे। जहां बीजेपी की सरकार थी और उन्हें हर सुविधा दी। इसके बाद गोवा में भी बागी विधायकों को रखा गया और यह पूरी रिजॉर्ट पॉलिटिक्स बीजेपी शासित प्रदेशों से हुई और इसका परिणाम यह रहा कि आखिरकार 30 जून 2022 को उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
बीजेपी के साधे एक तीर से दो निशाने-
बीजेपी ने पर्दे के पीछे रहकर एक तीर से अब दो निशाने मारने का काम कर दिया। जो काम एनसीपी के साथ 2019 में होते-होते रह गया था, वो शिवसेना के साथ पूरा हो गया। शिंदे गुट के 40 विधायकों के साथ बीजेपी ने सरकार बनाई और शिंदे मुख्यमंत्री तो फडणवीस उप मुख्यमंत्री बने। बीजेपी का यह पहला निशाना था। वहीं बीजेपी की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी दो हिस्सों में बंट गई यानी टूट गई थी। जो बीजेपी के लिए किसी तोहफे से कम नहीं था। यानी ये पूरा चैप्टर बीजेपी के लिए सबसे अधिक फायदे वाला रहा, जिसमें सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी।
शिवसेना के बाद अब एनसीपी की बारी?
शिवसेना के बाद अब एनसीपी में भी एक बार फिर राजनीतिक हलचल पैदा हो गई है। इस बार के सियासी हलचल के भी सूत्रधार शरद पवार के भतीजे अजित पवार ही थे, जिनके बीजेपी के साथ जाने और सरकार बनाने की अटकलें अचानक से तेज हो गईं। कहा गया कि अजित फिर से विधायकों को जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। अजित की इस छटपटाहट को दो तरीके से देखा जा रहा है। पहला अजित पवार की मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा और दूसरा उनके खिलाफ कसता केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा... बता दें कि अजित और एनसीपी के कई ऐसे विधायक हैं जिनके खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई चल रही है। ऐसे में अजित पवार भी यह चाहते होंगे की बीजेपी का सहयोग लेकर मुख्यमंत्री बन जाएं और केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा कसने से राहत मिल जाए।
...तो क्या यह है कहानी-
इस घटनाक्रम के बीच कहा गया कि अजित पवार की बीजेपी के साथ बातचीत चल रही है, जिसके बाद ही वो फिर से पलटी मारने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि शरद पवार चाल और ताकत के सामने फिर से ऐसा कदम उठाने में उन्हें डर लग रहा है। शरद पवार की इजाजत के बिना एनसीपी के दो तिहाई विधायकों को अपने पाले में लाना अजित पवार के लिए मुमकिन नहीं है। जिसका नमूना शरद पवार इस्तीफे के ऐलान और फिर उनके लिए जुटे समर्थन से दिखा चुके हैं। लेकिन अब बाजी फिर से अजित पवार से निकलती दिख रही है क्योंकि शरद पवार ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया है।
बीजेपी को डबल फायदा
पिछले कुछ सालों के चुनावों को देखें तो बीजेपी हर राज्य में एक ऐसी पार्टी के तौर पर उभरी है, जिसने बाकी क्षेत्रीय दलों को खत्म कर दिया। बीजेपी क्षेत्रीय दलों की उंगली पकड़कर सत्ता तक पहुंचती है, लेकिन देखते ही देखते वो सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर आती है और फिर उसे किसी की भी जरूरत नहीं होती। महाराष्ट्र में शिवसेना के टूटने के बाद अगर एनसीपी भी टूट जाती है तो इसका फायदा सीधे बीजेपी को होगा। आने वाले लोकसभा-विधानसभा चुनाव में बीजेपी ही सबसे मजबूत दावेदार होगी और शिवसेना-एनसीपी जैसे दल अपने ही झगड़े में उलझे रहेंगे।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
बीजेपी की नजर महाराष्ट्र की सियासत को लेकर आने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी है। सुप्रीम कोर्ट कभी भी शिंदे-उद्धव विवाद को लेकर फैसला सुना सकता है। जिसके बाद शिंदे गुट के विधायकों की सदस्यता जाने का खतरा पैदा हो सकता है। इसके बाद बीजेपी-शिंदे सरकार गिरने का खतरा है। ऐसे में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए विधायकों की जरूरत होगी, जो उसे अजित पवार की मदद से मिल सकते हैं।
शरद पवार का पलड़ा भारी दिख रहा है-
यानी कुल मिलाकर देखा जाए तो महाराष्ट्र में बीजेपी पर पर्दे के पीछे से ऐसा खेल खेलने का आरोप लग रहा है, जिसने विरोधियों को चारों खाने चित करने का काम किया। चुनाव से पहले अगर ‘मिशन एनसीपी‘ सफल रहा तो ये बीजेपी के लिए बड़ी जीत साबित होगी। हालांकि शरद पवार की ताकत का अंदाजा बीजेपी को अच्छी तरह है, 2019 में वो इसका नतीजा देख चुके हैं। फिलहाल एनसीपी में शरद पवार का ही पलड़ा भारी लग रहा है, ऐसे में चुनाव से पहले पार्टी में बड़ी तोड़फोड़ करना किसी के लिए भी बेहद मुश्किल है। अब शरद पवार ने अपना इस्तीफा ले लिया है तो ऐसे में अब एनसीपी में फूट फिलहाल मुश्किल दिख रही है। अजित पवार को भी बखूबी मालूम है कि पार्टी में शरद पवार के आगे उनकी कुछ नहीं चलने वाली है।