कविता : क्यों हर इक की कृपा मुझपर, बरस जाती है रह-रह कर...

Update: 2018-01-27 13:09 GMT

क्यों हर इक की कृपा मुझपर,

बरस जाती है रह-रह कर !

मैं सोऊँ तो जगा देता,

मैं बैठूं तो उठा देता ।

खड़ा होता मैं पलभर, वो

बढ़ा देता कदम खरतर!

अहैतुक दे रहा कोई---

अजाने रूप धर-धर कर !!1!!

मुझे रुकने की आदत है,

मगर हमराह गतिमय है!

वही चैतन्य भर देता --

मैं होता चूर जब थककर ।

मैं पड़ रहता जो आलस में,

चला देता कोई आकर ।।2।।

वही हमराह-जो चिरकाल से

साथी हमारा है;

थके-हारे, दु:खी-वंचित,

सभी का हृदयतारा है!

सभी में व्यक्त है, सबमें

सुसंगत काल रमता है;

वही आनन्दमय! आनन्द-

जो भरता हमें पाकर ।।3।।

क्यों हर इक की कृपा मुझपर

बरस जाती है रह - रह कर !

अहैतुक दे रहा कोई---

अजाने रूप धर-धर कर !!

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