मासूमों के लिए काल बना BRD हॉस्पिटल, 24 घंटे में 16 ने तोड़ा दम
नौनिहालों के मौत को लेकर गोरखपुर में उस समय कोहराम मच गया था जब आॅक्सीजन की कमी के कारण मौतें होने लगी थी। बीआरडी मेडिकल कालेज के हालात सुधरे नहीं हैं। इस मेडिकल
गोरखपुर: नौनिहालों के मौत को लेकर गोरखपुर में उस समय कोहराम मच गया था जब आॅक्सीजन की कमी के कारण मौतें होने लगी थी। बीआरडी मेडिकल कालेज के हालात सुधरे नहीं हैं। इस मेडिकल कालेज में नौलिहालों के मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है। बीते 24 घंटे में बीआरडी में 16 मासूमों ने दम तोड़ दिया है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह शहर में प्रतिदिन एक दर्जन मासूमोंं की मौत हो रही है। पर स्वास्थ्य की बुनियादी सेवाओं के नही मिलने के कारण पूर्वांचल में हर रोज मांओ की गोद सूनी हो जाती है।
यहां पर हर रोज पूर्वांचल के अलग अलग कोनों से दर्जनों बच्चें इलाज के लिये लाये जा रहे हैं पर इसमें से कुछ ही खुशनसीब बच पाते हैं। कुशीनगर के रहने वाले राजकुमार का बेटा भी दिमागी बुखार से पीडि़त था और बेटी भी इसी रोग की चपेट में थी। दोनो बच्चों की हालत काफी खराब थी। पर कई दिन तक गांव के डॉक्टराें ने इन दोनो पर दवाओं का रिर्सच किया और जब मामला हाथ से निकलता दिखा तो बीआरडी मेडिकल कालेज रेफर कर दिया गया। जहां इनका बेटा मौत का शिकार हो गया और अब बेटी भी मौत से जूझ रही है।
बाबा राघवदास मेडिकल कालेज में बीते 24 घंटे में 16 मासूमों ने दम तोड़ दिया है। इसमें से 10 मौतें नवजात आइसीयू में हुई। जबकि छह पीडियाट्रिक आइसीयू में हुई। इन छह में से दो बच्चे एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम से पीडि़त थे। इसके साथ ही इस दौरान इंसेफ्लाइटिस के 20 नए मरीज भर्ती किए गए। इनमें देवरिया के छह, कुशीनगर के दो, बिहार के पांच, महराजगंज के चार तथा गोरखपुर, बस्ती व बलरामपुर के एक-एक मरीज हैं। नेहरू अस्पताल के विभिन्न वार्डों में भर्ती 130 मरीजों का इलाज चल रहा है।
इस साल एक जनवरी से अब तक बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जापानी बुखार से 310 की मौत हो चुकी है। माना जाता है कि अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर महीने में मौतों का ग्राफ बढ़ जाता है क्योंकि इस समय इंसेफ्लाइटिस के मरीजों की संख्या भी बढ़ती है और इन्ही महीनों में नवजात बच्चों में संक्रमण का खतरा भी ज्यादा होता है।
कुछ इसी तरह की कहानी यहां पर इलाज करवाने आये हृदयानंद और नेबूलाल की भी है। यह दोनो यहां पर अपने बच्चों का इलाज करवा रहे हैं और इनके बच्चों की दशा काफी खराब है। देवरिया की रहने वाली संगीता का तीन साल का मासूम बेटा भी इस बीमारी की चपेट में आकर मेडिकल कालेज के आईसीयू वार्ड में पिछले सात दिनों से जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। अपने गांव में इस बीमारी का सही इलाज नही मिलने के कारण डाक्टरों ने इसे गोरखपुर मेडिकल कालेज रेफर कर दिया और यहा पर भी इसकी हालत में कोई सुधार नही हो पाया है।
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इसी मेडिकल कॉलेज की मेडिसीन विभाग की विभागाध्यक्ष डॉक्टर महिमा मित्तल का कहना है कि कई जिलों का सबसे बड़ा मेडिकल कालेज होने के कारण यहां पर हर रोज सैकड़ों मरीज भर्ती होते हैं और उनकी स्िथति यहां पर आने के पहले इतनी खराब हो चुकी होती है कि उनकाे बचा पाना मुश्किल हो जाता है।