चाइल्ड पोर्नोग्राफी की लत नाबालिगों के मस्तिष्क को दीमक की तरह खा रही है। यही वजह है कि दुष्कर्म की घटनाओं में नाबालिगों की संलिप्तता लगातार बढ़ती जा रही है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजे आंकड़ों के मुताबिक, देश में दुष्कर्म की घटने वाली हर पांचवीं घटना में नाबालिगों की भूमिका सामने आ रही है। स्कूलों में पढऩे वाले मात्र दस-पंद्रह साल के नसमझ बच्चे इस जघन्य अपराध को अंजाम दे रहे हैं।
मध्यप्रदेश में घटी हाल की दो घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर दिया। छोटे-छोटे बच्चे इतने खूंखार हो सकते हैं जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की होगी। मध्यप्रदेश में दस साल की लडक़ी के साथ पंद्रह साल के लडक़े ने दुष्कर्म किया। लडक़े ने दुष्कर्म करने के बाद इस बच्ची पर चाकू से कई बार प्रहार किये और भाग गया। खैर, लडक़े को कुछ ही घंटों में पुलिस ने उसे दबोच लिया। पुलिस की पूछताछ में जब लडक़े ने दुष्कर्म करने कारण बताया तो पुलिसकर्मी भी उसकी बात सुनकर सन्न रह गए। लडक़े ने बताया कि वह अपने फोन में पोर्न फिल्में देखता था। उन फिल्मों का असर उसके दिमाग में इस कदर समा गया, जिससे वह अपराध करने पर मजबूर हुआ।
दरअसल, उस लडक़े की अपराधबोध स्वीकृति हमें यह बताने के लिए काफी है कि अतिआधुनिक मोबाइल और तेज नेटवर्क मौजूदा पीढ़ी को किस रास्ते पर ले जा रहा है। सोशल मीडिया, इंटरनेट, अतिआधुनिक मोबाइल और तेज नेटवर्क ने इंसान को जहां एक दूसरे से जोडऩे का काम किया है, वहीं इसके कई खतरे और दुष्प्रणाम भी उभरकर सामने आए हैं जिसमें सबसे अव्वल है किशोरों में बढ़ती पोर्न देखने की लत। सिगरेट पीना, गाली देना, असंस्कारीपन का हावी होना, सामाजिक सोच से बेखबर, गलत आचरण को अपनाना, बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों की दलदल में समाना आदि की देन आज इंटरनेट की ही है। इंटरनेट और मोबाइल फोनों की लत युवाओं में ऐसे लग चुकी है जो छूटने का नाम ही नहीं ले रही।
स्कूल, कॉलेज, बाजार व सार्वजनिक स्थान हर जगह लोग फोनों से चिपके देखे जाते हैं। स्कूली बच्चों के पास क्लासरूम में फोनों की बरामदगी अब आम बात हो गई है। उनके फोनों की जब जांच की जाती है तो सबके होश उड़ जाते हैं। उनके फोन में सिर्फ एडल्ट फिल्में स्टोर मिलती हैं। इस आफत से छुटकारा दिलाने के लिए न अभिभावकों के अलावा सरकार के पास भी कोई मनोवैज्ञानिक उपाय नहीं है।
बाल मस्तिष्क और ह्यूमन साइकोलॉजी के शोधकर्ता और विशेषज्ञ बताते हैं कि हिंदुस्तानी किशोरों में पोर्न देखने की लत कुछ ही सालों से ज्यादा बढ़ी है। जबसे एंड्रॉयड फोनों में इस्तेमाल होने वाले इंटरनेट डाटा की कीमतें कम हुई हैं, तभी से इनका दुरुपयोग होने लगा है। इससे मोबाइल कंपनियों और सरकारों का परस्पर मुनाफा होने लगा है। दुष्कर्म जैसे कृत्यों के पीछे तेजी से बढ़ती इंटरनेट की दुनिया है। युवाओं में इंटरनेट की उपलब्धता जितनी तेजी से बढ़ रही है, अपराध भी उसी गति से बढऩे शुरू हो गए हैं।
नाबालिगों में बढ़ती पोर्न देखने की लत पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने 850 पोर्नसाइट पर प्रतिबंध लगा दिया है। साथ ही कुछ सख्त कानून बनाने पर भी विचार किया जा रहा है। हाल ही में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर इस मसले पर बैठक भी आयोजित हुई। वाटसएप ग्रुपों पर पोर्न पिक्चरों को प्रसारित करने पर जुर्माने का भी प्रावधान बनाया गया है। इसके अलावा साइबर कैफों में 18 साल से कम उम्र के बच्चों को प्रतिबंधित करने का भी फैसला लिया गया।
देखा जाए तो यह मौजूदा समस्या को रोकने के विकल्प नहीं हो सकते। इंटरनेट प्रोवाइडर कंपनियां सख्ती के बाद भी चुपके से बंद साइटों को खोल देती हैं। कंपनियों को सिर्फ अपने मुनाफे से मतलब होता है।
करीब दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी न रोकने पर केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाते हुए उन साइट्स को तुरंत ब्लॉक करने को कहा था जो भारत में बिना इजाजत के पोनरेग्राफी की अवैध साइट चलाते हैं। सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी के बाद सरकार के कहने पर टेलिकॉम कंपनियों ने करीब 850 एडल्ट साइटों को ब्लॉक कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश आईटी एक्ट के आर्टिकल 19(2) के तहत जारी हुआ था।
सरकार के पास शालीनता और नैतिकता बनाए रखने के लिए प्रतिबंध लगाने का अधिकार होता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक दूसरे आदेश में पोर्न साइटों पर बैन लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि कोई किसी को बंद कमरे में पोर्न देखने से कैसे रोक सकता है? लेकिन उनकी यह बात बच्चों पर लागू नहीं होती।
बाल अपराध की बढ़ती घटनाओं पर न्यूरोसाइंटिस्टों का मत है कि नाबालिगों में बहुत ज्यादा पोर्न देखने से उनके दिमाग के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, जिससे उनके मनोविकार होने का भी खतरा लगातार बना हुआ है। मनोविकारक होने पर बच्चे बड़ी घटनाओं को अंजाम देने पर उतारू हो जाते हैं। जैसा कि आजकल बच्चे करने लगे हैं।
इस समय पूरी दुनिया इंटरनेट की जकड़ में है। इंटरनेट का कम उम्र के बच्चे बहुत तेजी से दुरुपयोग कर रहे हैं। सबसे ज्यादा प्रभावक असर स्कूली बच्चों पर पड़ रहा है। लडक़ों के अलावा लड़कियां भी इसमें बढ़-चढक़र हिस्सा लेने लगी हैं। जब से 4जी की स्पीड आई है, युवाओं पर बुरा असर पडऩा शुरू हुआ है।
मुफ्त के इंटरनेट में नाबालिगों में पोर्न फिल्में देखने में दिलचस्पी इस कदर बढ़ी कि अब छूटने का नाम ही नहीं ले रही। अगर समय रहते अगर इस समस्या पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाला समय बहुत ही भयावह होगा।
आजकल बच्चे जिस दिशा में भागे जा रहे हैं, उससे अभिभावक खासे चिंतित हैं। सरकार को इस समस्या का तुरंत प्रभावी उपाय खोजकर निदान करने की दरकार है।
रमेश ठाकुर
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं)