राजनीति के अपराधीकरण पर शीर्ष अदालत की चिंता के मायने 

Update:2018-09-27 09:41 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

दागी जनप्रतिनिधियों पर देश की सबसे बड़ी अदालत का फैसला आ चुका है। उसने सीधे सीधे सरकार को इससे निपटने की जिम्मेदारी दे दी है। जो कि बहुत हद तक ठीक भी है कि सुप्रीम कोर्ट का दरोगा की तरह इस्तेमाल नहीं हो सकता और होना भी नहीं चाहिए। लोकतंत्र और उसके तहत मिले अधिकारों का मखौल उड़ाने वालों या लोकतंत्र का अपराधीकरण करने वालों के लिए यह सबक भी है।

तमाम दागी नेताओं, उनके दलों और समर्थकों की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर थीं। इस नजरिये से दागी जनप्रतिनिधियों के मामले में यह एक बड़ा फैसला है। हालांकि विद्वान न्यायाधीशों ने दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

जाहिर है कि इससे तमाम लोगों व दलों की बांछें खिल गई होंगी तो तमाम लोगों के चेहरे उतर भी गए होंगे। लेकिन इस पूरे मामले का मजेदार पहलू यह है कि ऐसा नहीं है कि स्वच्छ छवि वाले मायूस हुए हैं। इसमें सदमे में वह हैं जो चुनाव से पहले येन केन प्रकारेण अपने प्रतिद्वंद्वियों को निपटाना चाहते थे।

शीर्ष अदालत ने कहा है कि आरोप पत्र के आधार पर दागी नेताओं पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है। यह बिल्कुल सही है। केवल आरोप पत्र दाखिल होने से कोई सदोष अपराधी घोषित नहीं हो जाता जबकि आरोप पत्र से लेकर दोषी सिद्ध होने तक बहुत लंबा सफर है जिसमें बचाव के अवसरों का उपयोग करके रंजिशन फसाए जाने की स्थिति में कोई व्यक्ति बाइज्जत बरी भी हो सकता है। इसलिए अदालत की यह बात महत्वपूर्ण हो जाती है कि चुनाव लड़ने से रोकने के लिए सिर्फ चार्जशीट हीकाफी नहीं।

राजनीति के अपराधीकरण पर शीर्ष अदालत की चिंता के मायने

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इस फैसले की सबसे बड़ी बात यह है कि दागी जनप्रतिनिधियों पर कानून बनाने के लिए संसद को जिम्मेदार कर दिया गया है। शीर्ष अदालत के फैसले का यह बिन्दु संसद में बैठे जनप्रतिनिधियों और सत्ता के शीर्ष पर बैठी भाजपा के लिए चुनौती है। भाजपा पर एक दबाव आएगा कि वह राजनीति के अपराधीकरण को कैसे रोकेगी। जबकि उसके खुद के दल में ही बड़ी संख्या में दागी हैं।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का यह बिन्दु निसंदेह आम आदमी के मन की बात है कि लोगों को जनप्रतिनिधियों का आपराधिक रिकॉर्ड जानने का हक है। इस आपराधिक रिकार्ड को जानकर मतदाता तय कर सकता है कि उसके लिए कौन सा प्रतिनिधि उपयुक्त रहेगा।

अदालत ने वेबसाइट पर नेताओं के आपराधिक रिकॉर्ड का ब्योरा डालने के लिए राजनीतिक पार्टियों को निर्देशित भी कर दिया है। अभी तक करीब करीब सारे ही राजनीतिक दल अपने प्रत्याशी के अपराधों को छिपाकर दूसरे दलके प्रत्याशी को नंगा करने में जुटे रहते थे।

वास्तव में राजनीति का अपराधीकरण गंभीर समस्या है और स्वयं सबसे बड़ी अदालत ने कहा है कि ये चिंता का विषय है तो स्थिति की भयावहता स्वयं स्पष्ट हो जाती है। अदालत ने आगे कहा कि जनप्रतिनिधि और पार्टियां नामांकन दाखिल करने के बाद लोकल मीडिया (इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट) में लंबित आपराधिक मामलों की पूरी सूची प्रकाशित व प्रचारित करें ताकि आम जनता और मतदाता को अपने प्रतिनिधि का सारा कच्चा चिट्ठा पता चल सके।

राजनीति के अपराधीकरण पर शीर्ष अदालत की चिंता के मायने

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के हलफनामे के अनुसार 11 राज्यों में दागी सांसद व विधायकों पर लंबित 1233 आपराधिक मामलों का मुकदमा विशेष अदालत में चल रहा है। इनमें से अभी सिर्फ 136 मामलों का निपटारा हो सका है। लंबित मामलों की संख्या 1097 है। कानून मंत्रालय के अनुसार दागी सांसद व विधायकों के खिलाफ लंबित चल रहे आपराधिक मुकदमे निपटाने के लिए गठित 12 स्पेशल कोर्ट में से छह सत्र न्यायालय स्तर के व पांच मजिस्ट्रेट स्तर के हैं।

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इस क्रम में बताया गया कि दिल्ली में दो, यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु सहित आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में एक-एक स्पेशल कोर्ट का गठन किया जायेगा। कानून मंत्रालय के अनुसार बाकी राज्यों में जहां सांसद व विधायकों के खिलाफ लंबित मामले 65 से कम हैं, वहां नियमित कोर्ट में फास्टट्रेक के माध्यम से मुकदमे निपटाये जायेंगे। इसे लेकर सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी कर दी गयी है।

कानून मंत्रालय ने यह भी कहा है कि पटना, कलकत्ता, केरल, कर्नाटक व मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि उनके यहां और स्पेशल कोर्ट की जरूरत नहीं है, लेकिन बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि उनके यहां और स्पेशल कोर्ट की जरुरत है। गौरतलब यह है कि इलाहाबाद, मद्रास और हैदराबाद हाईकोर्ट ने इस संबंध में तब तक कोई जानकारी नहीं दी थी। बिहार में सबसे अधिक249 आपराधिक मामले स्पेशल कोर्ट में ट्रांसफर हुए हैं।

इन सारे हालात पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख देखते हुए यह उम्मीद बंधी है कि या तो सबकुछ सुधर ही जाएगा या फिर राजनीति का पूरी तरह से अपराधीकरण करते हुए। पूरी गर्व के साथ चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार अपनी यशोगाथा लंबी से लंबी बनाकर दूसरे से खुद को श्रेष्ठ साबित करते हुए चुनाव में अपनी जीत का पथ प्रशस्त करेंगे। क्योंकि मतदाता जो कि भाग्य विधाता है उसके पास जनप्रतिनिधि के चयन के लिए स्पष्टता अधिक रहेगी।

 

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