जानिए हवन के पीछे का 'SCIENCE CONNECTION', पढ़ें पूरी खबर

भारतीय पूजा पद्धति में हवन का अपना महत्व हुआ करता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार पहाड़ों और जंगलों में रहने वाले संत मुनि के हवन करने के बारे में काफी कुछ कहा गया है। लेकिन क्या ये सिर्फ पूजा के लिए है? नहीं इसके वैज्ञानिक कारण भी हैं। हिंदू धर्म पूरी तरह

Update:2017-12-01 12:42 IST

रवीना जैन

मुंबई: भारतीय पूजा पद्धति में हवन का अपना महत्व हुआ करता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार पहाड़ों और जंगलों में रहने वाले संत मुनि के हवन करने के बारे में काफी कुछ कहा गया है। लेकिन क्या ये सिर्फ पूजा के लिए है? नहीं इसके वैज्ञानिक कारण भी हैं। हिंदू धर्म पूरी तरह से विज्ञान से जुड़ा है। हिंदुओं में यज्ञोपवित, मुंडन या किसी की मृत्यु पर सिर का मुंडन भी विज्ञान से जुड़ा है।

हवन पर पहली बार शोध फ्रांस के एक वैज्ञानिक आत्फ़्रस के ट्रेले ने किया जिसमें उसे पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है ,जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस शोध के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने के तरीके का पता चला।

टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।

हवन की महत्ता देखते हुए लखनऊ के राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान के वैज्ञानिकों ने भी इस पर शोध किया कि क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होता है ? उन्होंने ग्रंथों में वर्णिंत हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया कि ये विषाणु नाश करती है। उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और पाया कि सिर्फ एक किलो आम की लकड़ी जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए । पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी तो एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर 94 % तक कम हो गया।

उन्होंने कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया कि कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के 24 घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से 96 प्रतिशत कम था। बार-बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।

यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर 2007 में छप चुकी है। रिपोर्ट में लिखा गया कि हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों एवं फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का भी नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।

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