कानपुर में होली से ज्यादा है गंगामेला महत्व, आजादी के दीवानों से जुड़ा है इतिहास
वैसे पूरे देश में होली सिर्फ एक ही दिन मनाई जाती है पर कानपुर में होली के बाद गंगामेला के दिन भी जमकर होली खेली जाती है। शहर के हटिया और पुराने मोहल्ले सहित पूरे शहर में होली की मस्त बयार गंगामेला के दिन भी जमकर बहती है।
कानपुर: वैसे पूरे देश में होली सिर्फ एक ही दिन मनाई जाती है पर कानपुर में होली के बाद गंगामेला के दिन भी जमकर होली खेली जाती है। शहर के हटिया और पुराने मोहल्ले सहित पूरे शहर में होली की मस्त बयार गंगामेला के दिन भी जमकर बहती है।
हटिया बाजार के कई इलाकों में लगातार सात दिनों तक जमकर होली खेली जाती थी। इसके पीछे का इतिहास देश की आजादी के पहले का है और आज भी यहाँ के बुजुर्ग अपने पुराने दिनों की यादो को ताजा कर रोमांचित हो जाते हैं।26 मार्च को गंगा मेला मनाया जायेगा।
फाल्गुन गीतों पर लगते थे ठुमके
हटिया बाजार में रहने वाले बुजुर्ग ब्रह्म कुमार अवस्थी ने बताया कि उस समय एक ही कपड़ा सात दिनों तक पहन कर होली खेली जाती थी। एक दर्जन से ज्यादा टोलियां मोहल्ले में घूम-घूम कर यहां स्थित ऐतिहासिक मैदान में इकट्ठा होते थे। इसके बाद करीब तीन घंटे तक फाल्गुन के गीतों पर लोग ठुमके लगाते थे।
समय के साथ कुछ बदलाव जरुर हुए है लेकिन होली वाले दिन और गंगा मेला के दिन जमकर होली खेली जाती है। कानपुर के पुराने मोहल्लो और इलाकों में गंगा मेला की धूम अलग से ही समझ में आती है।
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हटिया बाजार की होली और गंगामेला के साथ देश की आजादी की लड़ाई का एक इतिहास जुड़ा हुआ है। बताया जाता है कि साल 1942 में होली के दिन यहां के नौजवानों ने रज्जन बाबू के पार्क में लगे बिहारी भवन से भी ऊंचे लोहे की रॉड पर तिरंगा फहरा दिया था। इसके बाद वे गुलाल उड़ाते हुए नाच-गा रहे थे।
इसकी जानकारी मिलते ही अंग्रेज सिपाही घोड़े पर सवार होकर वहां पहुंचे और झंडा उतारने का आदेश दिया। इसी के बाद सिपाहियों और अंग्रेजों में जंग छिड़ गई। तिरंगा फहराने और होली मनाने के विरोध में हमीद खान, बुद्धूलाल मेहरोत्रा, नवीन शर्मा, गुलाब चंद्र सेठ, विश्वनाथ टंडन, गिरिधर शर्मा सहित एक दर्जन से अधिक लोगो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
बंद हो गया था पूरा बाजार
अंग्रेजों के इस कृत्य के बाद उनका जमकर विरोध शुरू हो गया। गिरफ्तारी के विरोध में कानपुर का पूरा बाजार बंद हो गया। विरोध दर्शाते हुए लोगों ने अपने चेहरे के रंग तक नहीं साफ किए। शहर की दुकाने और प्रतिष्ठानों में बंदी कर ताले लगा दिए गये।
यहाँ तक कि इसके विरोध में मीलो और फैक्ट्रियो के मजदूर तक हड़ताल पर चले गए और कानपुर पूर्ण रूप से बंद हो गया। पुराने लोगो की माने तो इस बंदी और विरोध का स्वर और कानपुर आंदोलन की गूंज सात समंदर पार तक पहुंच गई। फिर भी अंग्रेज बंदी युवकों को छोड़ने को नही तेयार हुए तो शहर के लोग आंदोलन और बंद पर अड़े रहे ।
जिससे उस आंदोलन ने तीसरे दिन तक और तेजी पकड ली और तब अंग्रेजों की जड़ें तक हिल गयी। हड़ताल के चौथे दिन अंग्रेजों के एक बड़े अफसर ने यहां आकर लोगों से बात की। इसके बाद होली के पांचवे दिन पकड़े गए सभी युवकों को छोड़ने का एलान किया गया उस दिन अनुराधा नक्षत्र' की तिथि थी। इस दौरान पूरे शहर के लोग जेल के बाहर इकट्ठा हो गए थे।
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जेल में बंद युवको ने भी अपने चेहरों से रंग नही छुड़ाया था। जेल से रिहा होने के बाद जुलुस निकाल कर इन सबको सरसैया घाट स्नाने के लिए ले जाया गया और जो होली, होलिका दहन के बाद नहीं खेली जा सकी थी, वह उस दिन सरसैया घाट के तट पर गुलाल लगाकर खेली गयी।
तभी से होलिका दहन से लेकर किसी भी दिन पड़ने वाले 'अनुराधा नक्षत्र' की तिथि तक कानपुर में होली खेली जाती है। अनुराधा नक्षत्र के दिन कानपुर का रंग कुछ और ही दिखाई देता है। धर्म, जाति, वर्ग, अमीर-गरीब की दीवारें गिर जाती है और दोपहर तक पूरा शहर होली में सराबोर हो जाता है।
इसके उपरांत आज भी शाम के समय सरसैया घाट के तट पर ही उन आजादी के मतवालों की याद को जिंदा रखते हुए शहरवासी होली गंगा मेला मिलन समारोह का वृहद आयोजन करते हैं।
आधा दर्जन मोहल्लों से निकलता है जुलूस
स्थानीय लोगों ने बताया कि सालों से चली आ रही इस परंपरा को हर साल निभाया जाता था। हालांकि, अब केवल दो दिन ही होली खेली जाती है। गंगा मेला के दिन यहां खूब होली खेली जाती है।
साथ ही ठेले पर रंग का जुलूस निकाला जाता है। यह हटिया बाजार से शुरू होकर नयागंज, बिरहाना रोड, चौक सर्राफा सहित कानपुर के आधा दर्जन पुराने मोहल्ले से होते हुए रज्जन बाबू पार्क में आकर खत्म होता है जहा जहा से लोग जुलूस के साथ निकलते है वहा वहां महिलाये व बच्चे छतो से रंग और पानी उन होरियारो पर डालते है।
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इसके बाद शाम को सरसैया घाट पर गंगा मेला का आयोजन किया जाता है। यहां शहर भर के लोग इकट्ठा होते हैं और एक-दूसरे को होली की बधाई देते हैं। इस मेले में शासन, प्रशासन, व्यापारी और प्रबुद्ध वर्ग के साथ सामाजिक संगठन एवं आम शहरी भी मेले में अपनी भागीदारी निभाते हैं। यह एक ऐसा लोकोत्सव है जिसमें सही मायने में पूरा शहर शामिल होता था।