गज़ल: दीप खुशियों के जलाकर, टिमटिमाती है दिवाली, तम घना मन से मिटाकर

Update:2017-10-14 14:04 IST

शशि पुरवार

दीप खुशियों के जलाकर, टिमटिमाती है दिवाली,

तम घना मन से मिटाकर,जगमगाती है दिवाली।

 

फर्श पर रंगोली सजी है, द्वार बंदनबार झूलें,

भीत पर लडिय़ां चमकतीं, झिलमिलाती है दिवाली।

 

मुल्क से अपने सभी घर, लौटकर आने लगे हैं,

फासले होने लगे कम, दिल मिलाती है दिवाली।

 

मग्न है सब खेलने में, ताश, बूढ़े और बच्चे

मिल ठहाकों के पटाखे, खिलखिलाती है दिवाली।

 

झोपड़ी में एक दीपक रोज जलता हौसलों का,

पेट भर भोजन मिला जो, मुस्कुराती है दिवाली।

 

एक साया ढूंढता है, अधजले से कागजों में,

काश मिल जाये फटाका, मन लुभाती है दिवाली।

 

फिर अमावस रात काली, खो गयी है रौशनी में,

सत्य का जगमग उजेरा, गीत गाती है दिवाली।

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