गोरक्षपीठ में 75 वर्षों की होली का अपना अलग महत्व

Update:2018-02-28 17:26 IST

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: गोरक्षधाम की होली का अपना अलग महत्व है। संघ के नाना जी देशमुख द्वारा शुरू की गई होली की परम्परा का निर्वहन गोरक्षपीठ पिछले सात दशकों से कर रहा है। होली के दिन गोरक्षपीठाधीश्वर के नेतृत्व में भगवान नरसिंह की रथ यात्रा निकलती है। पूजा अर्चना के बाद निकलने वाली यात्रा के नेतृत्व गोरक्षपीठाधीश्वर करते हैं। शोभा यात्रा की शुरूआत झांकी में सजे भगवान नरसिंह, शिव परिवार और हनुमान जी के साथ होलिका और भक्त प्रह्लाद की आरती से होती है। गोरक्षपीठाधीश्वर सभी की आरती उतारते हैं। यह शोभा यात्रा घासीकटरा स्थित भगवान नरसिंह के मंदिर से लालडिग्गी, मिर्जापुर, घासीकटरा, जाफरा बाजार, चरणलाल चैक, आर्यनगर, बक्शीपुर, नखास होते वापस घंटाघर मंदिर लौटती है। गलियों से गुजरने वाली शोभा यात्रा पर महिलाएं घरों की छतों से फूलों की बारिश करती हैं।

पूरे रास्ते में हजारों की भीड़़ होलियाना मूड में मस्ती करती है। ढोल मजीरे के बीच योगी आदित्यनाथ भी पूरी मस्ती में लोगों से मिलते नजर आते हैं। योगी भी लोगों पर लाल गुलाब और गेंदे की पंखुडिय़ां फेंकते हैं। बता दें कि शिवअवतारी गोरक्षनाथ को संत मत्स्येन्द्र नाथ का माना जाता है। गोरक्षपीठ का प्रधान सेवक ही शिव स्वरूप शिव का अर्थात गुरु गोरक्षनाथ का प्रतिरूप होता है। यही वजह है कि वर्ष 1944 से निकल रहे होलिकोत्सव शोभा यात्रा की अगवानी गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर करते आ रहे हैं। बताया जाता है कि इस शोभा यात्रा की शुरुआत संघ के नाना जी देशमुख ने 1944 में की थी।

गुझिया के साथ मालपुआ की सुगंध

गोरखपुर की होली में गुझिया के साथ मालपुआ की सुंगध को हर कोई महसूस कर सकता है। भागदौड़ की जिंदगी के बाद भी लोग घरों में गुझियां जरूर बना रहे हैं। हालांकि दुकानों पर रेडीमेड गुझिया की मांग भी तेजी से बढ़ी है। शहर के प्रमुख मिठाई कारोबारी भीष्म चैधरी का कहना है कि पिछले पांच वर्षों में गुझियां की डिमांग दस गुना से अधिक बढ़ गई है। दीवाली की तरह लोग होली में भी गुझिया अपने शुभचिंतकों और रिश्तेदारों में दे रहे हैं।

गीता वाटिका की होली को दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

शहर के गीता वाटिका के सुप्रसिद्ध राधा कृष्ण मंदिर में अगस्त महीने में राधा जन्माष्टमी महोत्सव को दधिकर्दमोत्सव के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। राधाष्टमी पांडाल में दही, हल्दी, केसर एवं इत्र से तैयार दधिकीच से खेली जाने वाली होली आकर्षण का केंद्र होती है। श्रद्धालु ‘या दधि को कांहा दान न पैहो’ के गायन के साथ ही रासलीला का आनंद लेते हैं। पूरा माहौल बरसाने की होली की तरह नजर आता है।

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