हरीशचंद्र गुप्ताः कोयला घोटाले में फंसा UP का बेबस ईमानदार IAS

Update: 2016-08-19 18:56 GMT

Anurag Shukla

लखनऊः काजल की कोठरी से बेदाग निकला नहीं जा सकता। ये कहावत यूपी काडर के 1971 बैच के आईएएस हरीशचंद्र गुप्ता पर लागू हो रही है। इस अफसर की ईमानदारी की आज भी सूबे के बड़े अफसरान चर्चा करते हैं। बेहद ईमानदार रहे गुप्ता का नाम आते ही प्रशासनिक अफसर उनके जैसा बनने की कसम खाते हैं, लेकिन केंद्र के कोयला मंत्रालय में खदानों के आवंटन का क्या हुआ, वहां सचिव रहे हरीशचंद्र गुप्ता का दामन भी कानून के रखवालों की नजर में दागदार हो गया। हालत ये है कि अदालत के चक्कर काटते-काटते परेशान हो गए इस आईएएस ने कोर्ट से कहा है कि मुझे जेल भेज दिया जाए, मैं केस लड़ते-लड़ते थक गया हूं।

घोटाले में कैसे फंसे गुप्ता?

हरीशचंद्र गुप्ता यूपी में अपने काम से नाम कमाकर दिल्ली गए। सूबे में वह गृह विभाग के प्रमुख सचिव थे। गुप्ता इतने ईमानदार थे कि लोग कहते थे कि वाकई वह हरीशचंद्र का नाम सार्थक करते हैं। केंद्र में कोयला मंत्रालय में वह सचिव थे। यूपीए की सरकार के दौरान कोयला खदानों की बंदरबांट का खेल हुआ। सीबीआई ने जांच की और गुप्ता को भी आरोपी बना दिया। हरीशचंद्र गुप्ता विशेष अदालत में अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए संघर्ष करने लगे। फिर उन्हें शायद लगा कि कोयले का दाग इतनी आसानी से नहीं मिटेगा और कोर्ट आते-जाते ही बाकी बची जिंदगी बीत जाएगी। सो हाल ही में उन्होंने पटियाला हाउस स्थित कोर्ट से निवेदन किया, "मैं मुकदमा लड़ते-लड़ते थक गया हूं। न मेरे पास केस लड़ने की ताकत है और न ही रुपए ही हैं। जज साहब, मुझे जेल भेज दीजिए।"

सबको मुक्त करने की भी गुजारिश की

कोर्ट-कचहरी की दौड़-भाग करते हुए इस ईमानदार अफसर को शायद ये भी लगा कि मैं भले ही फंस गया, लेकिन खुद के केस से जुड़े बाकी लोगों को भला क्यों परेशान होने दूं। इसलिए उन्होंने कोर्ट से ये गुजारिश भी की कि उनकी जमानत देने वाले शख्स को भी मुक्त कर दिया जाए। साथ ही उनका मुकदमा लड़ने के लिए अधिकृत तीनों वकील बीएस माथुर, रजत माथुर और मनोज चौधरी को भी मुक्त कर दिया जाए।

गुप्ता की बेबसी

हरीशचंद्र गुप्ता कोयला घोटाले के कई मामलों में सह आरोपी बनाए गए हैं। उन्होंने स्पेशल कोर्ट के जज भरत पाराशर के सामने उस वक्त बेबसी दिखाई, जब मध्य प्रदेश के कमल स्पॉन्ज स्टील एंड पावर लिमिटेड (केएसएसपीएल) से जुड़े केस की सुनवाई चल रही थी। सुनवाई के दौरान गुप्ता की पत्नी और बेटा भी कोर्ट में मौजूद थे। ईमानदारी का रास्ता कठिन होता है, लंबा और थकाऊ भी कम नहीं होता। शायद इसी वजह से हरीशचंद्र गुप्ता ने अभियोजन के किसी भी गवाह से पूछताछ न कर जेल जाने की गुजारिश कोर्ट से कर दी।

हरीशचंद्र पर आरोप लगने से अफसर भौंचक्के

हरीशचंद्र गुप्ता ने अपने काम से ही नाम को सार्थक किया। कोयला घोटाले के आरोपियों में उनका नाम आने से यूपी के तमाम बड़े अफसर भौंचक्के रह गए। हाल ही में सूबे के चीफ सेक्रेटरी पद से रिटायर होकर अब सीएम के मुख्य सलाहकार बने आलोक रंजन भी इन्हीं अफसरों में हैं। आलोक रंजन के मुताबिक, "हरीशचंद्र गुप्ता प्रमुख सचिव गृह के पद पर रहे, लेकिन मजाल है कि कोई उनकी ईमानदारी पर उंगली उठा दे। ईमानदारी की सीख भी शुरुआती दिनों में हरीशचंद्र गुप्ता को देखकर ही मिली और इसे खुद में जज्ब किया।" बता दें कि आलोक रंजन का नाम भी ईमानदार अफसरों में लिया जाता रहा है।

क्या कहते हैं अन्य अफसर?

पूर्व आईएएस और कुलपति रहे जीबी पटनायक कहते हैं, "यह हरीशचंद्र की नहीं ईमानदारी की दुर्गति है। यही दुर्गति हर ईमानदार को झेलनी होती है। हालात तो ऐसे भी होते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की छोड़िए, निचली अदालतों के वकीलों की फीस के पैसे भी नहीं बचते। हरीशचंद्र अपने नाम की ही तरह रोल मॉडल थे। उनके साथ दिक्कत ये भी है कि बहुत स्वाभिमानी हैं। अब वह मदद लेंगे, इसे लेकर भी शक है। फिर भी मैं और हम सब उनकी मदद करके खुद को खुशनसीब मानते हैं, क्योंकि ये मदद उनकी नहीं हमारी होगी। हमारा इसेस लाभ होगा। ईमानदारी जिंदा रहेगी।" वहीं, आईएएस रामेंद्र त्रिपाठी का मानना है कि हरीशचंद्र गुप्ता जैसे अफसरों के सांचे अब कम ही बनते हैं। तभी तो वह बेगुनाह होकर भी जेल जाने के लिए तैयार हैं। रामेंद्र के मुताबिक अगर हरीशचंद्र जेल जाते हैं तो ईमानदारी सलाखों के पीछे होगी और हम सब शर्मिंदा होंगे।

मदद के लिए क्या कर रहे हैं अफसर?

हरीशचंद्र को केस लड़ने में मदद के लिए कई हाथ उठे हैं, लेकिन उनके स्वाभिमान को ठेस न पहुंचे, इसलिए आईएएस एसोसिएशन एक फंड बना रहा है। इसमें प्रमुख सचिव स्तर के यूपी के अफसर 10 हजार और सचिव और उनसे नीचे स्तर के आईएएस पांच हजार रुपए दे रहे हैं। फंड से हरीशचंद्र गुप्ता और उनके जैसे अफसरों की मदद की जाएगी, जो इस तरह की स्थितियों से दो-चार होते रहते हैं।

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