भारत-पाकिस्तान संबंधों की कठिन डगर: प्रो.राजेंद्र प्रसाद

भारत और पाकिस्तान 1947 में ब्रिटिश भारत के विभाजन के फलस्वरूप अलग अलग संप्रभु राष्ट्र की हैसियत से विश्व मानचित्र पर अस्तित्व में आए। ऐतिहासिक विभाजन के दौरान दोनों राष्ट्रों को संपत्ति के स्थानांतरण, लूट-पाट, सांप्रदायिक हिंसा, शरणार्थियों की समस्या और राजनीतिक अस्थिरता और भावी राष्ट्र निर्माण की चुनौतियों से जूझना पड़ा। दोनों राष्ट्रों के बीच तनाव और कटुता की जो नींव पड़ी, उसके कारण दोनों के बीच विगत दशकों में अविश्वास और विभिन्न तीव्रता की हिंसात्मक गतिविधियों और संघर्ष की स्थितियां उत्पन्न होती चली गयीं। इस प्रकार 1947-48, 1965,1971 और 1999 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्धों के उपरांत जेहादी-आतंकवादी गतिविधियों का अंतहीन सिलसिला कायम है, जिसे पाकिस्तानी कारगुजारियां जाहिर हो रही हैं।

Update:2016-11-04 17:15 IST

 

प्रो.राजेंद्र प्रसाद

भारत और पाकिस्तान 1947 में ब्रिटिश भारत के विभाजन के फलस्वरूप अलग अलग संप्रभु राष्ट्र की हैसियत से विश्व मानचित्र पर अस्तित्व में आए। ऐतिहासिक विभाजन के दौरान दोनों राष्ट्रों को संपत्ति के स्थानांतरण, लूट-पाट, सांप्रदायिक हिंसा, शरणार्थियों की समस्या और राजनीतिक अस्थिरता और भावी राष्ट्र निर्माण की चुनौतियों से जूझना पड़ा। दोनों राष्ट्रों के बीच तनाव और कटुता की जो नींव पड़ी, उसके कारण दोनों के बीच विगत दशकों में अविश्वास और विभिन्न तीव्रता की हिंसात्मक गतिविधियों और संघर्ष की स्थितियां उत्पन्न होती चली गयीं। इस प्रकार 1947-48, 1965,1971 और 1999 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्धों के उपरांत जेहादी-आतंकवादी गतिविधियों का अंतहीन सिलसिला कायम है, जिसे पाकिस्तानी कारगुजारियां जाहिर हो रही हैं।

जैविक रूप से हर जीवधारी अपनी प्रजाति के प्रतिद्वंदी की भाषा समझता है और उसी भाषा में उसे जवाब देता है, किन्तु दो प्रतिद्वंदी, समान या असमान, राष्ट्रों के मध्य संबंधों के उतार चढ़ाव को लेकर समान भाषा का प्रयोग तलवार की धार पर चलने के समान होता है। यह विद्यमान परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि भाषा सम होगी या विषम होगी। इतिहास साक्षी है कि भारत और पाकिस्तान की अधिकांश वार्ताएं अनेक विषम परिस्थितियों की गर्त में समातीं रही हैं। मोदी जी का अतिउत्साह में लाहौर-गमन और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की आतंकवाद और जेहादी तत्वों से निपटने में आंतरिक विवशता के बीच पठानकोट और उरी के सैन्य आधारों और अन्य स्थानों पर प्रायोजित आतंकवाद की घातक दस्तक किंचित ऐसी ही विषम परिस्थितियों की ओर संकेत करती हैं। इन दोनों देशों के मध्य संबंधों को लेकर गतिरोध व जडत्व के बड़े कारणों में प्रमुख पाकिस्तान के अंदरूनी हालात पर शरीफ प्रशासन की कमजोर पकड़ पाकिस्तानी सेना और आई एस आई का वर्चस्व तथा जेहादी-आतंकवादी तत्वों का भारतविरोधी अंतहीन अतिवादी रवैया है। इन्हीं का प्रतिफलन है कि दोनों सरकारों की गति सांप-छछुन्दर जैसी हो गयी है।

ऐसी दशा में दोनों पक्षों को विवादित मुद्दों के समाधान हेतु वार्ता के लिए नए सिरे से वातावरण व टिकाऊ जमीन कायम करनी होगी, आतंकवाद के दानव का खात्मा करने के लिए विश्व के अन्य समानधर्मा देशों के सहयोग सहित संयुक्त रणनीति की क्रियाशीलता का मार्ग प्रशस्त करना होगा, जिसमें पर्याप्त समय लगना अवश्यम्भावी है। विगत में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पी ओ के) स्थित आतंकी शिविरों के विरुद्ध भारत द्वारा कृत सर्जिकल स्ट्राइक (शल्यकारी प्रहार) को लेकर भारतीय सत्ता और विपक्षी राजनेताओं द्वारा कृत अनर्गल राजनीतिक बयानबाजी अत्यंत चिंताजनक और आगे राष्ट्रीय सुरक्षा के संरक्षण और संवर्धन की दृष्टि से अवांछनीय है। उन्हें समझना होगा कि " जनसाधारण के विश्वास के विपरीत राष्ट्रीय सुरक्षा अति संवेदनशील विषय है।"

आतंकवादपोषी प्रवृत्ति के कारण दुनिया में अलग-थलग पड़ते पाकिस्तान की सत्तारूढ़ नवाज सरकार और पाक सेना की भावी ग्राह्यताओं और रुख पर सटीक निगरानी अपरिहार्य है।

उन्हें यह मालूम है कि भारत के साथ खुली लड़ाई में जीत संभव नहीं है, इसलिये सीमापार से घुसपैठ कराकर आत्मघाती आतंकवादी हमले करने की सोची समझी रणनीति भारत के विरुद्ध अधिक कारगर है। काश ! पाकिस्तानी हुक्मरानों की छटपटाहट अंदरुनी हालात को देखते हुए कोई नया गुल खिलाने के मार्ग पर अग्रसर न हो, इसके मद्देनजर भारत को सटीक रणनीति और पक्षधर विश्व जनमत की महती आवश्यकता है। निर्णायक समय है कि पाक सेना, आई यस आई और उनकी सहयोगी एजेंसियां सीमापार से आतंकवाद को रणनीतिक या राजनीतिक साधन के रूप प्रयोग करने की साजिश को त्याग दें, अन्यथा भविष्य में इस नाभिकीय हथियारों से लैस दक्षिण एशियाई अति संवेदनशील क्षेत्र को नाभिकीय आत्मघाती आतंकी खतरे या नाभिकीय युद्ध की गिरफ्त में जाने से रोकना मुश्किल होगा। यह दक्षिण एशिया और वैश्विक व्यवस्था दोनों के लिए घातक होगा।

इसलिए अमेरिका, यूरोपीय संघ, रूस, चीन सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी आतंकवादी संगठनों का खात्मा करने के लिए भारत के साथ पूर्ण सहयोग करना जरूरी है। हालांकि इस दिशा में भारत के कई महत्वपूर्ण सराहनीय कदम उठाने हैं। मसलन अभी हाल ही में गोवा में सम्पन्न हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन को ऐतिहासिक माना जा सकता है। ऐसे सम्मेलनों के अवसर पर दो सदस्य देशों के बीच औपचारिक समझौते की परंपरा प्राय: नहीं रही है, लेकिन इस बार नया अध्याय जुड़ा है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सम्मेलन में शामिल होने के लिए भारत आना था। दोनों देशों ने इस अवसर का लाभ उठाया। औपचारिक शुरुआत से पहले भारत और रूस के बीच बेहद महत्वपूर्ण रक्षा समझौता हुआ। यह ऐसा कदम था, जिसका असर शिखर सम्मेलन में साफ दिखाई दिया।

ध्यान देने वाली बात यह है कि पाकिस्तान के कट्टर समर्थक चीन की मौजूदगी के बावजूद आतंकवाद के विरूद्ध साझा प्रयास करने पर सहमति बनी। सम्मेलन में भारत की भूमिका व प्रभाव से संबंधित एक अन्य नया अध्याय जुड़ा। इस सम्मलेन में भारतीय प्रधानमंत्री ने जो एजेण्डा तैयार किया, सम्मेलन उसी आधार पर संचालित हुआ। इस एजेण्डे ने ब्रिक्स के दायरे का विस्तार किया। अन्य अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर साझा प्रयास पर सहमति बनी। आर्थिक, कारोबारी या व्यापारिक सहयोग के साथ अन्य मसले भी शामिल हुए। इनमें पर्यटन, पर्यावरण, प्रकृति संरक्षण, सौर ऊर्जा, खेल, शिक्षा जैसे विषय भी शामिल हुए। चीन की जिद में घोषणापत्र में पाकिस्तान का नाम नहीं रखा गया, लेकिन सम्मेलन में जिस प्रकार आतंकी देश व उसकी मदद करने वालों की निन्दा हुई, उससे चीन व पाकिस्तान दोनों बेनकाब हुए। कूटनीतिक तौर पर भारत की यह बड़ी कामयाबी रही है और ऐसा अन्य मंचों पर भी किया जा सकता है।

इस समय दुनिया का जो माहौल है उसमें शान्ति की सबसे बड़ी जरूरत है। भारत की धरती से शांति के सन्देश हमेशा ही दिए जाते रहे हैं, लेकिन ब्रिक्स के मंच से दक्षिण एशिया में शांति चाहने वाले भारत के पड़ोसी देशों को भी महत्व मिला। ये देश ब्रिक्स के सदस्य नहीं हैं, फिर भी भारतीय प्रधानमंत्री ने इनके विचारों को भी ब्रिक्स के साथ जोडऩे का ऐतिहासिक प्रयास किया। इससे ब्रिक्स की संयुक्त आवाज को मजबूती मिली। श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना, भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगो ने नरेन्द्र मोदी से वार्ता की। बिम्सटेक में हिस्सा लेने वाले श्रीलंका, भूटान, बंग्लादेश, म्यांमार, थाईलैण्ड ने भी शांति व सहयोग के विचार साझा किए। इन सभी देशों ने आतंक के खिलाफ एकजुटता दिखाई। ब्रिक्स से यह बड़ा सन्देश दुनिया को देने में भारत कामयाब रहा कि भारत कभी भी आतंकवाद को पल्लवित नहीं होने देगा और क्षेत्र में शान्ति के लिए वह हर जरूरी कदम उठाएगा।

दरअसल अब पाकिस्तान केवल भारत की चिंता का विषय नहीं रह गया है, बल्कि वे ताकतें जो पाकिस्तान को इस राह पर लेकर आयी है उन्हें भी चिंता होने लगी है। चीन चाहे जितनी हांक ले, पर ब्रिक्स और उसके बाद के घटनाक्रम ने उसे यह सन्देश दे दिया है कि जिस तरह पाकिस्तान आज विश्व बिरादरी में अलगाव का शिकार बना है, यदि उसने उसके साथ ज्यादा हमदर्दी दिखाई तो बदनामी उसके सर भी जायेगी। ऐसे में चीन भी बहुत ही सम्हाल कर कदम उठा रहा है।

अगर हम केवल ब्रिक्स का ही विश्लेषण करें तो बहुत कुछ साफ हो जाता है। इसमें सबसे पहले भारत और रूस के बीच सामरिक समझौते को बड़ी दूरदर्शिता के साथ अंजाम दिया गया। यह केवल सामरिक ही नहीं कूटनीतिक उपलब्धि भी थी। सामरिक उपलब्धि के रूप में भारत को उपयोगी मिसाइल प्रणाली मिलेगी। फाइव एस-400 ट्रायफ वायुरक्षा प्रणाली वस्तुत: भारत के लिए रक्षा कवच की भांति होगी। इसमें पाकिस्तान और चीन की परमाणु संचालित बैलस्टिक मिसाइल को भेदने की क्षमता होगी। इससे पाकिस्तान और चीन जैसे देशों को बौखलाहट हो सकती है, लेकिन भारत की रक्षा व्यवस्था को बड़ा लाभ होगा। इसी अवसर पर रूस के साथ चाबहार पर भी समझौता हुआ। अब चाबहार पाइप लाइन के माध्यम से रूस की गैस भारत आ सकेगी।

फिलहाल यह परियोजना ईरान, अफगानिस्तान व भारत के बीच है। रूस के शामिल होने से इसकी सुरक्षा व्यवस्था भी मजबूत होगी क्योंकि पाकिस्तानी आतंकवादियों को चाबहार पाइप लाइन योजना पसन्द नहीं है। उन्हीं की वजह से पाकिस्तान को इस परियोजना से बाहर रखा गया है। इसके अलावा रूस के साथ पांचवीं पीढ़ी के युद्धक विमान संबंधी वार्ता भी आगे बढ़ाई जाएगी। अब ब्रिक्स में ही रूस के कदम की समीक्षा कीजिये तो बहुत कुछ साफ हो जाता है। इसमें उसने यह साफ किया कि वह अपनी वैश्विक जिम्मेदारी को समझता है। पाकिस्तान आतंकी देश है। वह सीमापार से आतंकवाद चलाता है। उरी का हमला इसका ताजा उदाहरण है।

ऐसे में पाकिस्तान को अलग-थलग करना होगा। रूस ने पाकिस्तान को हथियार देने से इन्कार कर दिया। उसने बताया कि पाकिस्तान को केवल पर्यटन के लिए हेलीकाप्टर दिए गए हैं। भारत-रूस की यह दोस्ती चीन के लिए सबक बनी जिसने अपनी अन्तर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी को समझने से इन्कार किया है, इसीलिए वह वैश्विक आतंकवादी की घोषणा में बाधा उत्पन्न करता है। इस तरह चीन की छवि पाक-प्रायोजित आतंकवाद के समर्थक देश के रूप में बनी है। ब्रिक्स के मंच पर चीन ने इस बात को समझा। फिलहाल उससे सुधर जाने की उम्मीद नहीं की जा सकती, लेकिन ब्रिक्स में आतंकवाद विरोधी साझा घोषणा पत्र में शामिल किया गया।

यह भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि है और पाकिस्तान के लिए बड़ा एवं दूरगामी झटका। यह भी काबिलेगौर बात है कि पाकिस्तान की स्वत: आरोपित गतिविधियों में किसी सुधार की गुंजाइश मृग-मरीचिका जैसी लगती है । उसे अपने आतंरिक हालात को दुरुस्त करने में दुविधा का सामना करना पड़ रहा हैं, फलत: वह इस दिशा में कुछ विशेष करने की स्थिति में ही नहीं दिखता।

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