बहादुर शाह जफर की मजार पर मोदी ने फूल चढ़ाए, काली मंदिर में पूजा की

Update:2017-09-07 12:43 IST

यंगून: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को अपनी म्यांमार यात्रा के तीसरे व अंतिम दिन प्रसिद्ध श्वेगाडोन पैगोडा, अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर की मजार पर गए और काली मंदिर में पूजा अर्चना की। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने ट्वीट किया, "म्यांमार में सफल व रचनात्मक द्विपक्षीय बातचीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली के लिए प्रस्थान किया।" मोदी ने श्वेगाडोन पैगोडा में एक पौधा भी लगाया। यह म्यांमार का सबसे पवित्र बौद्ध पैगोडा है जहां भगवान बुद्ध के सिर के बाल रखे हुए हैं। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोबेल विजेता व म्यांमार की विदेश मंत्री आंग सान सू की के पिता आंग सान और म्यांमार की स्वतंत्रता से पहले की अंतरिम सरकार के नेताओं की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनकी जुलाई 1947 में हत्या कर दी गई थी। एक विशेष आतिथ्य सत्कार में आंग सान सू की नेपीथा से यंगून आईं और प्रधानमंत्री मोदी को बोगोयोक आंग सान म्यूजियम दिखाया। यह आंग सान का अंतिम निवास था। यहां पर सू की का बचपन बीता था। इसके बाद प्रधानमंत्री ने श्री काली मंदिर में पूजा अर्चना की। इसे तमिल प्रवासियों ने 1871 में बनवाया था। उस दौरान बर्मा प्रांत ब्रिटिश भारत का हिस्सा था।

एक मशहूर शयर ,क वि और गजल लेखक, बादशाह

उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार दिन,

दो आरज़ू में कट गये, दो इन्तेज़ार में

एक मशहूर शयर ,कवि और गजल लेखक, बादशाह और आजादी के विद्रोह का विगुल फूंकने वाले शक्स की मजार पर आज पीएम मोदी मजार पर गए, इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी 2012 में इस पवित्र स्थल पर जा चुके हैं। बहादुर शाह जफर और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का ऐसिक रिश्ता नाता है। देश की आजादी के लिए 1857 में अंग्रजों से विद्रोह ने बादशाह बहादुर शाह जफर को आजादी का सिपाही बना दिया।

उस समय अंग्रजों का अत्याचार भारत देश की भोली भाली जनता पर कहर बरपा रहा था। कवि ह्रदय बादशाह जनता पर हो रहे अत्याचार को सहन न कर सके और आतातायी अंग्रजों के खिलाफ बगावत का विगुल फूक दिया। उस समय देश छोटी छोटी रियासतों में बंटा हुआ था और राजा महारजाओं को एक शक्तिशाली केंद्रीय नेतृत्व की आवश्यकता थी । 1857 में बादशाह बहादुर शाह की उम्र 82 वर्ष हो चुकी थी फिर भी विद्रोही सैनिकों को नेतृत्व देने के लिए जफर आगे आए। परिणमा पक्ष में नही आया यानी कि बहादुर शाह जफर युद्ध हार गए और अंग्रजों ने उन्हे बंदी बना लिया। बृद्ध हो चुके शासक को अंग्रजों ने कैद में ड़ाल दिया। इसी के साथ मुगल साम्रज्य का अंत हो गया।

जीवन के आखिरी वक्त को बहादुर शाह जफर ने कैद खाने में गुजारे। 1862 में बहादुर शाह की मौत हो गई। बर्मा जो अब म्यांमार के नाम से जाना जाता है उसकी राजधानी रंगून के जेल में बादशाह बहादुर शाह जफर की मौत हुई। उनकी याद में 132 वर्ष बाद 1994 में इस दरगाह को बनाया गया। इसी दरगाह पर आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जाएगें। दुनिया की की मशहूर और ऐतिहासिक दरगाह के तौर पर जानी जाने वाली इस दरगाह में स्त्री पुरूष दोनों के इबादत करने की अलग अलग जगह बनाई गई है। सूफी बादशाह जीवन की सच्चाईयों को जानने और समझने में रातो दिन बिताने वाले बहादुर शाह जफर के दरबार के दो मशहूर शायरों की आज भी दुनिया मुरीद है। गालिब और जौक बादशाह के दरबारी शायर रहें जो आज की पीढी के शायरों और कवियों के आदर्श हैं। बादशाह खुद भी गजल, कविता नज्म ,गढ़ते थे। उनकी नज्मों को बाॅलीवुड़ की कई फिल्मों फिल्माया गया है। जेल में कैद के दौरान बादशाह कमल के बिना जली हुयी तीलियों से जेल की दीवारों पर अपनी नज्में लिख देते थे।

दिन ज़िन्दगी के ख़त्म हुए शाम हो गई

फैला के पाँव सोएँगे कुंज.ए.मज़ार में

 

 

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