दिल में आँसू के सागर हैं
ओंठों पर मुस्कान धरी है
सबसे आगे हो जाने की
बस जीवन में होड़ मची है
सुबह शाम के सोपानों ने
टेढ़ी मेढ़ी कथा रची है
काँटों पर बैठे फूलों के
चेहरों पर उजास बिखरी है
कोलाहल है जगर मगर है
भीड़ भाड़ है यहाँ शहर में
दो जोड़ी बूढ़ी आँखों में
खालीपन पसरा है घर में
आशंकाओं की साँसों में
अन्दर तक उम्मीद भरी है
मगर हो सके तो सचमुच में
तन से मन से तुम खुश रहना
दुख की धूप तेज होगी, पर
उसको भी तुम हँस कर सहना
पैरों में बबूल के कांटे?
देखो आगे मौलसिरी है
डॉ. प्रदीप शुक्ल