कविता, ऋतुओं में न्यारा वसंत: स्वप्न से किसने जगाया, मैं सुरभि हूँ

Update:2018-01-19 16:54 IST

महादेवी वर्मा

स्वप्न से किसने जगाया?

मैं सुरभि हूँ।

 

छोड़ कोमल फूल का घर

ढूँढती हूं कुंज निर्झर।

पूछती हूँ नभ धरा से-

क्या नहीं ऋतुराज आया?

 

मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत

मै अग-जग का प्यारा वसंत।

 

मेरी पगध्वनि सुन जग जागा

कण-कण ने छवि मधुरस माँगा।

 

नव जीवन का संगीत बहा

पुलकों से भर आया दिगंत।

 

मेरी स्वप्नों की निधि अनंत

मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत।

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