स्वप्न से किसने जगाया?
मैं सुरभि हूँ।
छोड़ कोमल फूल का घर
ढूँढती हूं कुंज निर्झर।
पूछती हूँ नभ धरा से-
क्या नहीं ऋतुराज आया?
मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत
मै अग-जग का प्यारा वसंत।
मेरी पगध्वनि सुन जग जागा
कण-कण ने छवि मधुरस माँगा।
नव जीवन का संगीत बहा
पुलकों से भर आया दिगंत।
मेरी स्वप्नों की निधि अनंत
मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत।