कविता : चलो फिर से मुस्कुराएँ, चलो फिर से दिल जलाएँ

Update:2018-01-05 17:27 IST

फैज़ अहमद फैज़

चलो फिर से मुस्कुराएँ

चलो फिर से दिल जलाएँ

 

जो गुजर गयी हैं रातें

उन्हें फिर जगा के लाएँ

जो बिसर गयी हैं बातें

उन्हें याद में बुलाएँ

 

चलो फिर से दिल लगाएँ

चलो फिर से मुस्कुराएँ

 

किसी शह-नशीं पे झलकी

वो धनक किसी कबा की

किसी रग में कसमसाई

वो कसक किसी अदा की

कोई हर्फे-बे-मुरव्वत

किसी कुंजे-लब से फूटा

वो छनक के शीशा-ए-दिल

तहे-बाम फिर से टूटा

ये मिलन की, ना-मिलन की

ये लगन की और जलन की

जो सही हैं वारदातें

जो गु$जर गई हैं रातें

जो बिसर गई हैं बातें

कोई इनकी धुन बनाएँ

कोई इनका गीत गाएँ

 

चलो फिर से मुस्कुराएँ

चलो फिर से दिल लगाएँ

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