वक्त गीला है चलो इसको निचोड़ें,
अरगनी में डाल इसको हम सुखा लें।
दर कदम दर बोझ, जीवन का उठाते,
गिर पड़ा है जो, चलों उसको उठा लें।
उसका कोई भी नहीं है, इस जहां में,
वो बहुत मायूस है, उसको निभा लें।
आपके नक्शे कदम, पर वो चलेगा,
मासूम है बच्चा, अभी इसको सिखा लें।
इससे पहले रूठ कर, वो दूर जाए,
आओ मिलकर हम उन्हें, फिर से मना लें।
दर्द क्रोनिक हो न जाए, मेरे भाई,
नासूरियत से पूर्व, हाकिम को दिखा लें।
और के बस की नहीं है, बात,
आप आगे आएं, खुद इसको संभालें।
डॉ. विभा खरे