कविता: अपने की प्रतीक्षा, अभी कहाँ अंकुर फूटे हैं, अभी कहाँ उत्साह भरा!

Update:2018-01-05 16:37 IST

मनोजकान्त

अभी कहाँ अंकुर फूटे हैं,

अभी कहाँ उत्साह भरा!

अभी कहाँ फागुन आया है,

अभी कहाँ है मुदित धरा !

 

ठहरो, ठहरो! अभी कहाँ--

गूंजा नवता का नवल गान;

अभी कहाँ बीते ठिठुरन--

सिहरन से सहमे-डरे बिहान!

 

रुको रंच प्रिय, करो प्रतीक्षा,

विविध रंग-रस-गंध लिये--

वृक्ष-पुष्प-कोंपल-पल्लव को,

खिलने दो नवछंद लिये ।

 

अभी तनिक धरती माता को

फूलों से लद जाने दो;

कोयल का कू-कू पंचम स्वर

मधुरस में घुल जाने दो।

 

नये साल की करो प्रतीक्षा,

आने दो ऋतुराज को;

जीवन के पतझर परास्त कर,

प्रकटे प्रिय मधुमास को।।

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