कविता : रात भर जाग कर ख्वाहिशें लिख रहे हैं... जाने किस ख्याल में...

Update: 2017-11-25 08:18 GMT

रात भर जाग कर ख्वाहिशें लिख रहे हैं...

रात भर जाग कर, ख्वाहिशें लिख रहे हैं,

जाने किस ख्याल में, क्या और कैसे लिख रहे हैं!

जैसे आसमान पर जमीन की दास्ताँ,

और जमींन पर आसमान की, सरहदें लिख रहे हैं!

नींद की गोद में, सिर रख कर जाग रहीं हैं आँखें,

उनपर ख्वाब की करवटें लिख रहे हैं !

धडक़नों का हाथ, दिल को थमाकर,

जाने सीनें में कितनी, हसरतें लिख रहे हैं!

रेत पर पाँव रखकर, धूप की गुनगुनाहट में,

छाँव की तलाश में, बारिशें लिख रहे हैं !

रेगिस्ताँ हो गयीं, मंजिलों की आस लेकिन,

राहों पर हौसले के, किस्से लिख रहे हैं!

नागफनी से जख्मी हैं, तलवों की लकीरें,

उनकी किस्मत में मरहम की, उम्मीदें लिख रहे हैं!

है गले में हो गयी प्यास, सूखे कुएँ सी,

मर ना जाये उनपर साँसो के, छींटे लिख रहे हैं!

रात भर जाग कर ख्वाहिशें लिख रहे हैं...

-वादिनी यादव

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