कविता: फूल सफेद कांस के: बीज बिखेर दिए ये किसने अंधकार में ज्यों उजास के !
धानी धूसर हरी दरी पर
फूले फूल सफेद कांस के,
बीज बिखेर दिए ये किसने
अंधकार में ज्यों उजास के !
ज्वार बाजरे की खेती यह
खेती है चांदी सोने की,
मौसम आये हैं पकने के
ऋतु आई सपने बोने की;
बाढ़ और सूखे वाले सब
बीत गए दिन भूख प्यास के !
हरे धान के खेत झूमते
लहराये चूनर ज्यों धानी,
कच्ची धूप क्वार कातिक की
बैठ ब्याह की बुने कहानी;
वन तुलसी के गंध ज्वार में
घर डूबे सब आस पास के !
ऊसर बंजर मिट्टी में ज्यों
फूटे बादल राग रेत से,
खून पसीने के बलबूते
जाग गये हैं भाग खेत के;
क्या हजूर अब क्या मजूर
जब भेद मिट गये आम - खास के !!