कविता: काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस

Update:2018-02-17 15:14 IST

अमीर खुसरो

काहे को ब्याहे बिदेस,

अरे, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस

 

भैया को दियो बाबुल महले दो-महले

हमको दियो परदेस अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

 

हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ

जित हाँके हँक जैहें अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

 

हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ

घर-घर माँगे हैं जैहें अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

 

कोठे तले से पलकिया जो निकली

बीरन ने खाए पछाड़ अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

 

हम तो हैं बाबुल तोरे पिंजरे की चिडिय़ाँ

भोर भये उड़ जैहें अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

 

तारों भरी मैंने गुडिय़ा जो छोड़ी

छूटा सहेली का साथ अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

 

डोली का पर्दा उठा के जो देखा

आया पिया का देस अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

 

अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस अरे, लखिय बाबुल मोरे

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