कविता : गणतन्त्री संकल्पों का परिणाम प्रतीक्षारत है

Update: 2018-01-27 12:47 GMT

किस प्रवाह के चिंतन से भारत का भाग्य जगेगा

किस गाथा के वंदन से सबका आभार बढ़ेगा

किस इतिहास को साक्षी कर हम राष्ट्र गीत जाएंगे

किस योद्धा के आलिंगन में युद्ध जीत पाएंगे

किसे भुलाकर आजादी अपनो से हुई विरत है

संविधान में सपनों का संग्राम प्रतीक्षारत है।

सरोकार सावन की रिमझिम जब फुहार बन जाते

संस्कार से जीवन के सौरभ सारे मुस्काते

नदियाँ, झील, समंदर, पंछी सब हिलमिल कर गाते

मानव से मानव के रिश्ते पुष्प पल्लवित पाते

नहीं हुआ यह, आँखों में ही सपने क्षत - विक्षत हैं

शौर्य - समर की गाथा लेकर शाम प्रतीक्षारत है।

भारत के भावी की खातिर जिनके रहे समर्पण

कुछ सुहाग थे, कुछ राखी थी, कुछ गोदी का अर्पण

हसते हसते चूमे थे जिनकी खातिर वे फांसी

बलिदानो में ही दिखती थी उनको शिव की काशी

सत्ताओ के खेल, खेल ये कैसे किये नियत हैं?

भारत की भोली भाली आवाम प्रतीक्षारत है।

कसमे खाते, वादे करते, ध्वज फहराते रहते

राष्ट्रवंदना के स्वर भी ये अक्सर गाते रहते

सडको से संसद तक जाकर बड़ी कहानी कहते

जन मन देवता बता कर, प्रखर क्रान्ति सी बहते

लेकिन इस दोहरे चरित की माया बड़ी पिरत है

गणतन्त्री संकल्पों का परिणाम प्रतीक्षारत है।

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