कविता: काश तुम फिर आती, भागती हुई इस दुनिया से एकदम इतर  ठहरी हुई तुम।

Update:2017-10-14 13:51 IST

योगेश मिश्र

काश तुम फिर आती

भागती हुई इस दुनिया से एकदम इतर

ठहरी हुई तुम।

 

तुम्हारा कुछ नहीं है, निपट-निपटाऊ।

 

तुमने कभी नहीं चाहा, कुछ भी कहना।

 

चाहा नहीं भारी मन से रहना।

 

यादों की बस्ती में खोना,

 

गुजरी हुई ऋतुओं की कहानी होना।

बुलबुलों की तरह उठते जज़बात,

विराग जनता अवसाद।

 

आख्यानात्मक स्मृति छोडऩे वाली

तुम्हारी उपस्थिति।

 

भीतर के स्पर्श की तरह देखने की स्थिति।

 

रिश्तों की राग गाती तुम्हारी प्रकृति।

 

साथ रहने की कला,

अनुभवों का सरमाया,

अभिव्यंजना का सौन्दर्य।

 

शब्दबद्ध होते अनुभव

कहे को अनकहा छोडऩे की लत।

 

अब सब सालते हैं।

 

ये सब हैं तुम्हारी थाती

काश! तुम इसे ले जाने

एक बार फिर आती।

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