रामकृष्ण वाजपेयी
राजस्थान विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए एक कड़ी चुनौती है। और यह बात भी सही है कि भाजपा की जीत की संभावना चुनावी विश्लेषक अब तक कम ही बता रहे थे। लेकिन ताजा डेवलपमेंट यह है कि इन्हीं चुनावी विश्लेषकों ने जो अब तक भाजपा को मुकाबले से बाहर किये हुए थे यह कहना शुरू कर दिया है कि अपनी संगठनात्मक क्षमता और पार्टी नेतृत्व की कुशल रणनीति से भाजपा मुकाबले में लौट आयी है।
राजस्थान में जैसे जैसे मतदान की तारीख सात दिसंबर करीब आती जा रही है मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ असंतोष और विभिन्न वर्गों की नाराजगी के स्वर एक बार फिर भाजपा सरकार के संदेश के आगे फीके पड़ते जा रहे हैं। भाजपा यहां पर मुख्य जोर विकास कार्यों और एक एक लाभार्थी तक कार्यकर्ताओं की पहुंच बनाकर उत्तर प्रदेश स्टाइल में सोशल इंजीनियरिंग पर लगातार फोकस किये हुए है। सोशल मीडिया पर राजे सरकार की विभिन्न लोकप्रिय योजनाओं पर अभियान चल रहा है। दूसरे यह कि राजे सरकार में की बड़ा दंगा या घोटाला नहीं हुआ। वास्तव में भाजपा की सफलता इस बात पर निर्भर कर रही है कि वह हिंदू वोट को कितना संगठित रख पाती है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 46.05 फीसद वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 33.7 फीसद वोट मिले थे। कांग्रेस के लिए इस बढ़े अंतर को पाट पाना किसी मुश्किल चुनौती से कम नहीं है।
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अब तक चुनावी सर्वेक्षणों के आधार पर यह कहा जा रहा था कि भाजपा की राजस्थान से विदाई तय है, लेकिन टिकट वितरण और धुंआधार प्रचार को देखकर अब यह चर्चा जोर पकड़ती जा रही है कि पार्टी मुक़ाबले में लौट आई है। दोनों दलों के स्टार प्रचारक धुंआधार सभाएं कर रहे हैं।
अगर भाजपा के मुकाबले में लौटने की चर्चाओं पर गौर करें तो इसके पीछे बड़ा कारण कांग्रेस नेताओं की बढ़ती खींचतान कहा जा सकता है। उम्मीदवारों के चयन में कद्दावर नेता व पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट और नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी की खींचतान ने भाजपा को मौका दिया है।
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भाजपा की आक्रामक प्रचार और बेहतर चुनावी प्रबंधन की रणनीति भा कारगर सिद्ध हुई है जिसने पार्टी को बराबरी की टक्कर में आने का मौका दिया है। मतदान की तारीख नजदीक आते-आते पार्टी के प्रदर्शन में और सुधार की उम्मीद भी की जा रही है।
कांग्रेस में असंतोष का एक बड़ा कारण पांच सीटों पर राष्ट्रीय लोक दल, लोकतांत्रिक जनता दल और नेशनल कांग्रेस पार्टी से उसका गठबंधन भी है। गठबंधन करने का यह निर्णय पार्टी के स्थानीय नेताओं के गले नहीं उतर रहा। चुनाव प्रचार और प्रबंधन के मोर्चों पर भाजपा कांग्रेस से आगे है। लेकिन अगर भाजपा वोट प्रतिशत बढ़ाने में कामयाब हो गई तो कांग्रेस का पासा पलट भी सकती है।