RSS प्रमुख मोदी सरकार से नाराज, पूछा- बहुत हुई 'मन की बात', कब करेंगे काम की बात

Update: 2017-04-28 09:39 GMT

नागपुर: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का अग्रणी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) पीएम नरेंद्र मोदी के कामकाज के तरीके से नाराज है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अपनी ये नाराजगी सोशल मीडिया पर जाहिर की है। उन्होंने मोदी के नेतृत्व पर सवाल भी खड़े किए हैं।

भागवत ने जनता से भी ये सवाल किया है कि 'आपका पीएम कौन हो और कैसा हो, ये आप ही तय करें।' हालांकि, आरएसएस आमतौर पर मीडिया से दूरी बनाए रखता है लेकिन मोहन भागवत ने सरकार के कामकाज पर पिछले 26 अप्रैल को सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर लिखा ...

आखिर काम की बात कब?

'मन की बात' करने में तीन साल बीत गए और 'काम की बात' करने का समय ही नहीं मिला, ऐसे कैसे देश चलेगा? आखिर चुनाव लड़ने और देश चलाने में अंतर है!

नसीहत के साथ कटाक्ष भी

आरएसएस प्रमुख ने पोस्ट में लिखा है कि 'सामाजिक व्यवस्था के लिए अपने प्रयास से समाज का विश्वास जीतना ही आज शासन तंत्र के लिए सबसे बड़ा काम है, पर जब चुनाव जीतना ही राजनीति का परम लक्ष्य हो जाए और उसकी वैकल्पिक व्यवस्था भी हो तो राष्ट्र का सही दिशा में नेतृत्व करने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण राजनीतिक चालों से सत्ता का स्थायित्व सुनिश्चित करना हो जाता है। प्रयास भी उसी दिशा में होता है। ऐसे में, राजनीतिक विचार और पक्ष के वर्चस्व के प्रभाव से संक्रमित समाज में राष्ट्र की प्राथमिकताओं का उपेक्षित और व्यवस्था का भ्रष्ट होना स्वाभाविक है। यही तो आज हो रहा है।'

आगे की स्लाइड्स में पढ़ें मोदी सरकार के कामकाज पर आरएसएस प्रमुख ने और क्या कहा ...

अविश्वास से होता है सामाजिक घर्षण

आगे लिखा, 'राष्ट्रीय स्तर पर जब समाज में व्यवस्था के प्रति अविश्वास का भाव हो तो इसकी अभिव्यक्ति से सामाजिक जीवन में घर्षण स्वाभाविक है। फिर व्यवस्था के प्रति अविश्वास का कारण, उसके अभिव्यक्ति का प्रारूप और उससे प्रभावित वर्ग एवं भौगोलिक क्षेत्र चाहे जो हो।'

..ऐसे में सबका विकास कैसे?

उन्होंने लिखा, 'बात कश्मीर की करें या तमिलनाडु की। गुजरात के पाटीदारों की करें या नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों की। बेरोजगार युवाओं की करें, शोषित शिक्षकों की, आत्महत्या करते किसानों की या अनिश्चितता से घिरे देश के व्यवसायी वर्ग की। राष्ट्र के शीर्ष नेतृत्व को चाहिए कि वो अपने प्रयास से समाज का विश्वास जीते क्योंकि जब तक सब का साथ नहीं मिलेगा, सबका विकास हो ही नहीं सकता।'

ये देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या?

ऐसी परिस्थितियों में आवश्यक है की शासन तंत्र अपने सार्थक प्रयास और समाज के साथ परस्पर संवाद स्थापित कर समाज में व्यवस्था के प्रति विश्वास के लिए कारण को अर्जित करे और इसके लिए पहल शीर्ष नेतृत्व को ही करनी होगी। पर जब नेतृत्व की प्राथमिकताएं भ्रमित, प्रयास की दिशा गलत और व्यक्तित्व ही संशय का विषय हो तो ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व वाली व्यवस्था पर समाज को विश्वास कर पाना कठिन होगा; जब आवश्यकता समाज के साथ सार्थक संवाद स्थापित करने की हो, तब राष्ट्र का शीर्ष नेतृत्व 'मन की बात' करने में व्यस्त रहे तो इसे आप क्या कहेंगे, देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या?

ध्यान देते, तो हाल इतना अस्त-व्यस्त न होता

मोहन भागवत ने लिखा, जितना समर्पित प्रयास सरकारें और नेता चुनावी प्रचार में करते हैं और जितना समय और शब्द चुनावी भाषणों में खर्च करते हैं उसका एक हिस्सा भी यदि शासन तंत्र द्वारा समाज से सार्थक संवाद स्थापित करने के लिए हुआ होता तो आज देश इतना अस्त व्यस्त न होता; अब इसे नेतृत्व की त्रुटि नहीं तो और क्या कहें जो आज व्यवस्था तंत्र की प्राथमिकताएं ही जैसे भ्रमित हैं।

नेतृत्व की भूमिका होती है अहम

भागवत नसीहत देते हुए लिखते हैं, कि 'किसी भी राष्ट्र के उत्थान या पतन में उसके नेतृत्व की भूमिका महत्वपूर्ण होती है और ऐसा इसलिए क्योंकि उसके कर्तव्य और उत्तरदायित्व के प्रभाव क्षेत्र में पूरा राष्ट्र आता है, इसलिए कोई भी राष्ट्र अपने लिए कैसे नेतृत्व को चुनता है यह उसके भाग्योदय का कारण या दुर्भाग्य की शुरुआत सुनिश्चित करता है, फिर कालखंड चाहे जो हो।'

'क्या महत्वपूर्ण आप ही बताएं'

अपने पोस्ट के आखिर में मोहन भागवत ने लिखा है कि 'सामाजिक जीवन में आज समस्याएं कई हैं पर जब तक हम समस्याओं को सरल नहीं बनाएंगे, तब तक उनके समाधान को प्राप्त नहीं कर सकेंगे। जब किसी भी राष्ट्र के शीर्ष नेतृत्व के लिए राष्ट्र का सही दिशा में नेतृत्व करने से अधिक राजनीति महत्वपूर्ण हो जाए तो समस्या का मूल सार्वजनिक रूप से स्पष्ट हो जाता है जिसका समाधान तभी संभव है जब उक्त समाज के लिए राष्ट्र का महत्व राजनीति से अधिक हो। आज भारत और भारतियों के लिए महत्वपूर्ण क्या होना चाहिए, प्रधानमंत्री कौन हो या प्रधानमंत्री कैसा हो, आप ही बताएं।'

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