वे दूसरों के काम में टांग अड़ाने की आदत से मजबूर हैं। हालांकि इस टांग अड़ाने का खामियाजा वे बार-बार भुगतते हैं। सबके मुंह की खाते हैं। हर जगह लताड़े जाते हैं। सड़े टमाटर और अंडों से नवाजे जाते हैं। अपमान के कड़ुए घूंट पीते हैं हर बार कान पकड़ कर उठकी-बैठकी भी लगाते हैं। कभी कहीं न टांग अड़ाने की कसम खाते है। लेकिन फिर भी आदत से बाज नहीं आते, बार-बार टांग अड़ाते हैं। वैसे टांग तो और लोग भी अड़ाते हैं पर ये फेमस टांग अड़ाऊ हैं।
अभी जल्दी की ही बात है मातृ दिवस पर आयोजित एक संगोष्ठी में वे गये थे वहां पर सभी अपनी-अपनी मां के प्रति अगाध प्रेम दर्शा रहे थे। मां तू जीवन दायिनी है मां तेरे ही चरणों में स्वर्ग है। मां हम तेरे ऋणी हैं तुझे न कभी भुलायेगे। बगैरह-बगैरह सुन्दर शब्दों सुन्दर वाक्यों से मां की प्रभुता का गुणगान कर रहे थे। परन्तु शर्मा जी को यह शब्द बहुत ही अखर रहे थे। वे झूठे मनोभाव उन्हें काट से रहे थे। फिर भी वे मन मसोस कर बैठे थे अपनी टांग को पूरे जोर से रोके थे कि उनके लगुंटिया यार माखन ने मां के प्रति प्रेम दर्शाती कविता सुनानी शुरू कर दी।
अब तो वे खुद को रोक न सके सीधे मंच पर पहुंच गये और बोले बस कर यार बहुत हुआ झूठा प्यार। हमें पता है तू कितना है महान। दिन रात मां का करता अपमान। यहां आकर कर रहा गुणगान। मंचासीन लोगों को शर्मा जी की बात अखर गई। वे तुनक कर बोले जब तुम्हे मंच के नियम नहीं मालूम तो क्यों होते हो शामिल। अन्दर चाहे जो हो मंच पर सुविचार ही प्रकट किये जाते हैं शर्मा जी आप आगे से याद रखें यूं मंच पर आकर किसी के विचारों में टांग न अड़ाएं।
घर आकर आज वे फिर कसमें खा रहे हैं खुद को समझा रहे है यार सभा में इतनी जलालत झेलने से तो अच्छा चुप ही रहो। सबकी बदतमीजियां सहते रहो।
पर क्या वे सच में मान जायेंगे अभी कुछ दिन पहले वैलेंटाइन डे पर भी तो कसमें खाई थी जब प्यार के दुश्मन का ठप्पा उनके मुंह पर चस्पा दिया गया था। फिर भी वे प्रेमियों को खदेड़ कर ही माने थे। करें भी क्या? उन्हें मनाये जाने वाले हर पारंपरिक डे से प्राब्लम है। चाहें फादर डे हो या मदर डे। सिस्टर डे हो या ब्रदर डे। वे इस एक दिन के सम्मान से सहमत नहीं हैं। बात तो उनकी सोलह आने सच है पर कौन माने? कई बार यह बात मैंने भी समझाई कि समय बदल रहा है तो बदलाव के साथ चलो। अब तो झूठ का बोलवाला है सच्चे का मुंह काला है सो सच बोल कर अपना मुंह काला न करो।
दूसरों के झूठ में अपनी सच्ची टांग न अड़ाओ। पर वे नहीं माने।
कल सामने वाले मिश्राजी की बेटी के विवाह में पूरे उत्साह और प्रेम से शामिल होने गये थे व्यवहार स्वरूप उपहार भी ले गये थे, पर दूल्हा राजा को देखते ही वे आग बवूला हो उठे सीधे स्टेज पर जा पहुंचे और दूल्हे की पगड़ी उछालते हुए गुस्से से तमतमाते हुए बोले, अबे साले तू यहां भी। कितने ब्याह करेगा रे? यह मेरे मोहल्ले की बेटी है इसकी जिन्दगी बर्बाद नहीं होने देंगे। खदेड़ते हुए स्टेज से नीचे ले आये। हाल में अफरा-तफरी मच गई।
लडक़े वालों का पारा हाई हो गया। बोले किसने इस पागल को बुला लिया। सिरफिरा कहीं का। मैं खुद नहीं करूंगा ऐसे पागलों के यहां रिश्ता। बारात वापस हो गई।
वे नेक काम करके हर्षा ही रहे थे कि लडक़ी के पिता ने जहर उगलते हुए कहा, किस जन्म की दुश्मनी निभाई तूने शर्मा! अच्छे खासे बेटी के हाथ पीले हो रहे थे पर तूने आकर टांग अड़ा दी। क्या मिलता है तुझे दूसरों के काम में टांग अड़ा के? बेचारे शर्माजी सही होते हुए भी अपना सा मुंह लेकर रह गये। वे फिर पश्चाताप से अपना सिर धुनने लगे और कसमें खाने लगे कि अब बहुत हुआ, अपनी इस टांग की कसम, आज से किसी के भी काम में टांग नहीं अड़ाऊंगां। हर गलत काम को देखकर अनदेखा कर दूंगा, पर टांग नहीं अड़ाऊंगा।
वे यह शपथ ले ही रहे थे कि रामू ने बताया कि गांव में नेताजी आये हैं वे फिर गांववालों को वोट के लिए बरगला रहे है। सुनते ही शर्माजी भडक़ उठे आव देखा न ताव, बस छड़ी उठाई और चल दिये टांग अड़ाने। क्योंकि वे ठहरे आदत से मजबूर।