पूजा में दीपक का विशेष महत्व, क्यों होता है जीवन में इनका प्रभाव
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं की साधना अथवा सिद्धि के मार्ग पर जब लोग चलते हैं तो दीपक का महत्व विशिष्ट हो जाता है। दीपक कैसा हो, उसमे कितनी बत्तियां हों, इसका भी एक विशेष महत्त्व है। उसमें जलने वाला तेल और घी किस-किस प्रकार का हो, इसका भी विशेष महत्त्व है। उस देवता की कृपा प्राप्त करने और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए ये सभी बातें महत्वपूर्ण हैं।
रवीना जैन
मुंबई: जब हम किसी देवता की पूजा करते हैं तो सामान्यतः दीपक जलाते हैं। दीपक किसी भी पूजा का महत्त्वपूर्ण अंग है। हमारे मस्तिष्क में सामान्यत घी अथवा तेल का दीपक जलाने की बात आती है और हम जलाते भी हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं की साधना अथवा सिद्धि के मार्ग पर जब लोग चलते हैं तो दीपक का महत्व विशिष्ट हो जाता है। दीपक कैसा हो, उसमे कितनी बत्तियां हों, इसका भी एक विशेष महत्त्व है। उसमें जलने वाला तेल और घी किस-किस प्रकार का हो, इसका भी विशेष महत्त्व है। उस देवता की कृपा प्राप्त करने और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए ये सभी बातें महत्वपूर्ण हैं।
लेकिन सनातन हिन्दू शास्त्रों के अनुसार आज भी पूर्ण विधि-विधान के साथ पूजा करने को महत्व दिया जाता है। पूजा के लिए सही सामग्री, स्पष्ट रूप से मंत्रों का उच्चारण एवं रीति अनुसार पूजा में बैठना, हर प्रकार से पूजा को विधिपूर्वक बनाने की कोशिश की जाती है।
दीप जलाते समय इन बातों का रखें ध्यान
पूजा में ध्यान देने योग्य बातों में से ही एक है दीपक जलाते समय नियमों का पालन करना। पूजा में सबसे अहम है दीपक जलाना। इसके बिना पूजा का आगे बढ़ना कठिन है। पूजा के दौरान और उसके बाद भी कई घंटों तक दीपक जलते रहना शुभ माना जाता है। यह दीपक रोशनी प्रदान करता है। रोशनी से संबंधित शास्त्रों में एक पंक्ति उल्लेखनीय है।
असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमया।मृत्योर्मामृतं गमय॥
ॐ शांति शांति शांति
‘तमसो मा ज्योतिर्गमया’का अर्थ है अंधकार से उजाले की ओर प्रस्थान करना। आध्यात्मिक पहलू से दीपक ही मनुष्य को अंधकार के जंजाल से उजाले की किरण की ओर ले जाता है। दीपक को जलाने के लिए तिल का तेल या फिर घी का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन शास्त्रों में दीपक जलाने के लिए खासतौर से घी का उपयोग करने को ही तवज्जो दी जाती है। जिसका एक कारण है घी का पवित्रता से संबंध। घी को बनाने के लिए ही गाय के दूध की आवश्यकता होती है। गाय को हिन्दू मान्यताओं के अनुसार उत्तम दर्जा प्राप्त है।
मोमबत्ती के इस्तेमाल से बचे
गाय को मां का स्थान दिया गया है और उसे ‘गौ माता’ कहकर बुलाया जाता है। यही कारण है कि उसके द्वारा दिया गया दूध भी अपने आप ही पवित्रता का स्रोत माना गया है। इसीलिए उससे बना हुआ घी भी सबसे पवित्र माना गया है। घी के अलावा तिल के तेल से दीपक जलाया जाता है। कुछ लोगों द्वारा अंधकार दूर करने के लिए मोमबत्ती का इस्तेमाल भी किया जाता है। किन्तु शास्त्रों में मोमबत्ती का इस्तेमाल वर्जित माना गया है। कहते हैं मोमबत्ती एक ऐसी वस्तु है जो केवल आत्माओं को अपने उजाले से निमंत्रण देती है। इसको जलाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इसीलिए इसके इस्तेमाल से बचना चाहिए।
घी का महत्व
पूजा के समय घी के दीपक उपयोग करने का एक और आध्यात्मिक कारण है। शास्त्रों के अनुसार यह माना गया है कि पूजन में पंचामृत का बहुत महत्व है और घी उन्हीं पंचामृत में से एक माना गया है। इसीलिए घी का दीपक जलाया जाता है।
अग्नि पुराण में भी दीपक को किस पदार्थ से जलाना चाहिए, इसका उल्लेख किया गया है। इस पुराण के अनुसार, दीपक को केवल घी या फिर तिल के तेल से ही जलाना चाहिए। इसके अलावा किसी भी अन्य पदार्थ का इस्तेमाल करना अशुभ एवं वर्जित माना गया है।