ट्रिपल तलाक: SC ने मामले को संवैधानिक पीठ के पास भेजा, सुनवाई 11 मई से
सुप्रीम कोर्ट में आज गुरुवार (30 मार्च) को तीन तालक, निकाह-हलाला और बहुविवाद जैसे मुद्दों पर सुनवाई होगी। पिछले दिनों हुई सुनवाई के दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने अपने जवाब कहा था कि मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह की प्रथाओं को चुनौती देने वाली याचिकाएं विचारयोग्य नहीं हैं।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार (30 मार्च) को तीन तलाक, निकाह-हलाला और बहुविवाह जैसे मामलों पर सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले को अब संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया है। जिसपर 11 मई से सुनवाई की जाएगी। कोर्ट ने कहा कि यह मामला बेहद महत्वपूर्ण है, जिस वजह से इस पर छुट्टियों में भी सुनवाई होगी।
कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल की आपत्ति पर यह बात कही है। उन्होंने कहा था कि गर्मी की छुट्टियों से पहले इस मामले की सुनवाई होनी चाहिए। चीफ जस्टिस ने सभी पक्षों को 2 सप्ताह में अपना जवाब दायर करने को कहा है।
पिछली सुनवाई के दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने अपने जवाब में कहा था कि मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक, निकाह-हलाला और बहुविवाह की प्रथाओं को चुनौती देने वाली याचिकाएं विचारयोग्य नहीं हैं। ये सभी मुद्दे कोर्ट के दायरे में नहीं आते हैं।
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यह मुद्दा बेहद गंभीर
-16 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह मुद्दा बेहद गंभीर है और इसे छोड़ा नहीं जा सकता।
-कानूनी तौर इस मुद्दे पर विचार विमर्श करने के लिए एक बड़ी बेंच की जरूरत होगी।
-केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को तलाक और निकाह-हलाला जैसे मुद्दों पर सुनवाई के लिए अपने सवाल सौंपे थे।
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समाज को धर्म के मामलों में अपनी चीजें खुद तय करने की इजाजत
-मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि तलाक एक निजी मामला है इसलिए उसे मौलिक अधिकार के तहत लागू नहीं किया जा सकता।
-बोर्ड ने दावा किया है कि सुप्रीम कोर्ट में पिटीशंस गलत समझ के चलते फाइल की गई हैं, और यह चुनौती मुस्लिम पर्सनल कानून के बारे में गलत समझ पर आधारित है।
-देश का संविधान हर समाज को धर्म के मामलों में अपनी चीजें खुद तय करने की इजाजत देता है।
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मुस्लिम बोर्ड के मुताबिक
-मुस्लिम बोर्ड की ओर से दाखिल जवाब में दावा किया गया है कि शरीयत कानून पति और पत्नी के बीच लंबे रिश्ते की हिमायत करता है।
-कानून के तहत ऐसे कई प्रावधान हैं, जो शादी को टूटने से बचाने के लिए बने हैं और शरीयत में तलाक को आखिरी रास्ता माना गया है।
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अनुच्छेद 32 के खिलाफ फैसला चाह रहे
-संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 में दिए गए संवैधानिक अधिकार विधायिका और कार्यपालिका के संदर्भ में लागू होते हैं।
-बोर्ड का ये भी मानना है कि याचिका दायर करने वाले लोग अनुच्छेद 32 के खिलाफ फैसला चाह रहे हैं।
-जिसके मुताबिक नागरिकों या निजी पक्षों के खिलाफ संवैधानिक अधिकारों का दावा नहीं किया जा सकता है।
-मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मुताबिक याचिकाओं में पेश तर्क मुस्लिम बोर्ड के प्रावधानों के बारे में गलत समझ पर आधारित हैं।