जानें सुदर्शन क्रिया से जीवन जीने की कला, कैसे सिखाते हैं श्री श्री रविशंकर
जीवन सांसो की माला है। श्वसन क्रिया चलती रहती है तो जीवन माना जाता है इसके बंद हो जाने पर जीवन को समाप्त हो जाता है। सांस लेने की प्रक्रिया पर हमारे ऋषि, मुनियों ने
व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं। आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम् ॥
जीवन सांसो की माला है। श्वसन क्रिया चलती रहती है तो जीवन माना जाता है इसके बंद हो जाने पर जीवन को समाप्त हो जाता है। सांस लेने की प्रक्रिया पर हमारे ऋषि, मुनियों ने विशेष शोध कार्य किया है और मनुष्यों के लिए इसे हमेशा से परिष्कृत किया है।
दार्शनिक पक्ष
योगदर्शन छः आस्तिक दर्शनों (षड्दर्शन) में से एक है। इसके जनक पतञ्जलि मुनि हैं। यह दर्शन सांख्य दर्शन के 'पूरक दर्शन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस दर्शन का प्रमुख लक्ष्य मनुष्य को वह मार्ग दिखाना है जिस पर चलकर वह जीवन के परम लक्ष्य (मोक्ष) की प्राप्ति कर सके। योगदर्शन, सांख्यदर्शन का सहारा लेता है और उसके द्वारा प्रतिपादित तत्त्वमीमांसा को स्वीकार कर लेता है। इसलिये प्रारम्भ से ही योगदर्शन, सांख्यदर्शन से जुड़ा हुआ है योगदर्शन महर्षि पतंजलि को फादर ऑफ योगा कहा जाता है। महर्षि पतंजलि ने योग के 195 सूत्रों को प्रतिपादित किया, जो योग दर्शन के स्तंभ माने गए।
चार भागों में विभक्त है-
-समाधि पाद (54 सूत्र)
-साधन पाद (55 सूत्र)
-विभूति पाद (55 सूत्र)
-कैवल्य पाद (34 सूत्र)
इन सूत्रों के पाठन को भाष्य कहा जाता है। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग की महिमा को बताया, जो स्वस्थ जीवन के लिए महत्वपूर्ण माना गया।
योगसूत्र, योग दर्शन का मूल ग्रंथ है। यह छः दर्शनों में से एक शास्त्र है और योगशास्त्र का एक ग्रंथ है। योगसूत्रों की रचना 400 ई॰ के पहले पतञ्जलि ने की। इसके लिए पहले से इस विषय में विद्यमान सामग्री का भी इसमें उपयोग किया। योगसूत्र में चित्त को एकाग्र करके ईश्वर में लीन करने का विधान है। पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों को चंचल होने से रोकना (चित्तवृत्तिनिरोधः) ही योग है। अर्थात मन को इधर-उधर भटकने न देना, केवल एक ही वस्तु में स्थिर रखना ही योग है।
शरीरोपचयः कान्तिर्गात्राणां सुविभक्तता । दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मृजा ॥
योगसूत्र मध्यकाल में सर्वाधिक अनूदित किया गया प्राचीन भारतीय ग्रन्थ है, जिसका लगभग 40 भारतीय भाषाओं तथा दो विदेशी भाषाओं (प्राचीन जावा भाषा एवं अरबी में अनुवाद हुआ। यह ग्रंथ 12वीं से 19वीं शताब्दी तक मुख्यधारा से लुप्तप्राय हो गया था किन्तु 19 वीं-20वीं-21वीं शताब्दी में पुनः प्रचलन में आ गया है
पतंजलि का योगदर्शन, समाधि, साधन, विभूति और कैवल्य इन चार पादों या भागों में विभक्त है।
समाधिपाद
इसमें यह बतलाया गया है कि योग के उद्देश्य और लक्षण क्या हैं और उसका साधन किस प्रकार होता है।
साधनपाद
इसमें क्लेश, कर्मविपाक और कर्मफल आदि का विवेचन है।
विभूतिपाद
इसमें यह बतलाया गया है कि योग के अंग क्या हैं, उसका परिणाम क्या होता है और उसके द्वारा अणिमा, महिमा आदि सिद्धियों की किस प्रकार प्राप्ति होती है
सुदर्शन क्रिया क्या है
'सु’ का मतलब होता है 'सही’ और 'दर्शन’ का मतलब है 'विजन या दृष्टि’। इस तरह से इसका मतलब हुआ कि इस क्रिया को करने से आपको सही दृष्टि मिलती है।सुदर्शन क्रिया एक सहज लयबद्ध शक्तिशाली तकनीक है जो विशिष्ट प्राकृतिक श्वांस की लयों के प्रयोग से शरीर, मन और भावनाओं को एक ताल में लाती है।
समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः । प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते ॥
यह तकनीक तनाव, थकान और क्रोध, निराशा,अवसाद जैसे नकारात्मक भावों से मुक्त कर शांत व एकाग्र मन, ऊर्जित शरीरके साथ एक गहरा विश्राम प्रदान करती है।
सुदर्शन क्रिया जीवन को एक विशिष्ट गहराई प्रदान करती है, इसके रहस्यों को उजागर करती है। यह एक अध्यात्मिक खोज है, जो हमें अनंत की एक झलक देती है। सुदर्शन क्रिया स्वास्थ्य, प्रसन्नता, शांति और जीवन से परे के ज्ञान का अज्ञात रहस्य है! यह सांसों से जुड़ा एक योगासन है जिसमें कभी धीमे तो कभी तेज गति से सांसे अंदर बाहर करनी होती है। इस क्रिया को नियमित रूप से करने से आप सांसो पर पूरी तरह नियंत्रण पा लेते हैं जिससे आपका इम्यून सिस्टम भी बेहतर होता है और आप कई तरह की मानसिक बीमारियों से दूर रहते हैं।
साल 2009 में हार्वर्ड मेडिकल स्कूल द्वारा प्रकाशित एक शोध के अनुसार सुदर्शन क्रिया एंग्जायटी और अवसाद से आराम दिलाने में काफी असरदार है। इसे करने में किसी तरह का कोई रिस्क नहीं है और इससे दिमाग और शरीर का सही संतुलन बना रहता है। सुदर्शन क्रिया में कुल मिलकर 4 चरण होते हैं।
-उज्जयी प्राणायाम
-भस्त्रिका प्राणायाम
-ओम का जाप
-क्रिया योग
सुदर्शन किया के निरंतर अभ्यास से मन वर्तमान में रहने लगता है और आप सभी कार्यों में अपना सौ प्रतिशत प्रयत्न देने लगते हैं।
मन का स्वभाव
मन का एक स्वभाव होता है कि वह भूतकाल में जाकर अपने साथ हुई खुशी के पल या दुख के क्षण को याद करता रहता है या मन भविष्य में चला जाता है। भविष्य के बारे में विचार करते हुए व्यक्ति या तो खुश होता है कि उसका भविष्य बहुत अच्छा है या इस बात से दुखी हो जाता है कि उसका भविष्य बहुत बुरा है और उसके साथ सब बुरा होने वाला है। जो बीत गया है याने कि भूतकाल में बीत गये अच्छे और बुरे क्षण के बारे में आप कुछ नहीं कर सकते हैं और भविष्य आपके हाथ में नहीं है। आप भविष्य को अच्छा बनाने के लिए सिर्फ प्रयास कर सकते हैं।
न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति । स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥
मन की यह भूतकाल और भविष्यकाल में जाने की प्रवृत्ति को सुदर्शन क्रिया के निरंतर अभ्यास से मन को वर्तमान में लाया जा सकता है। जब व्यक्ति का मन वर्तमान में होता है तो वह अपने प्रत्येक कार्य में अपना सौ प्रतिशत लगा सकता हैं और निश्चित ही सौ प्रतिशत प्रयास करने से कोई भी कार्य का परिणाम अच्छा ही होगा। आप जब किसी कार्य में अपना सौ प्रतिशत दे देते हैं तो फिर आप उसके परिणाम से परेशान नहीं होंगे क्योंकि आपको यह पता होता है कि आपने सौ प्रतिशत प्रयास किया।
सावधानियां
इसे करने से पहले एक बार डॉक्टर से अपनी जांच करवा लें कि आप मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह फिट है या नहीं फिर इसके बाद ही इसे करें।
जो लोग पहले से ही किसी मानसिक रोग से पीड़ित हैं या प्रेगनेंट महिलायें इस क्रिया को ना करें।
सुदर्शन क्रिया करने के फायदे
-इसे करने से व्यक्ति के पूरे शरीर का स्वास्थ्य बेहतर होता है।
-इससे व्यक्ति के शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है और बॉडी का एनर्जी लेवल बढ़ जाता है।
-व्यक्ति के सारे अंग सुचारू रूप से काम करने लगते हैं और कोलेस्ट्रॉल लेवल कम होता है।
-इसे नियमित करने से व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।
-व्यक्ति का मन शांत रहता है जिससे आप भरपूर नींद का आनंद ले पाते हैं।
-व्यक्ति के स्ट्रेस और एंग्जायटी को दूर भगाने में यह प्राणायाम काफी असरदार है।
-व्यक्ति केदिमाग को शांत रखता है जिससे आप उसका बेहतरीन उपयोग कर पाते हैं।
-व्यक्ति के चेतना का विकास -होता है और आप आस पास की चीजों को लेकर और ज्यादा जागरूक हो जाते हैं।
-व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है।
सुदर्शन क्रिया का पेटेंट लिया गया है और इसका ऑडियो विक्रय के लिए नही है, जबकि आप विभिन्न प्राणायाम, निर्देशित ध्यान और योग आसन की सीडी किसी भी आर्ट ऑफ लिविंग के स्टोर से ले सकते हैं। समाज के लाभ के लिए ये उच्च ज्ञान केवल आर्ट ऑफ लिविंग के टीचर के द्वारा ही प्राप्य है जिन्होने सुदर्शन क्रिया सिखाने के लिए एक कठोर और बृहत प्रशिक्षण प्राप्त किया है। कोर्स के दौरान आर्ट ऑफ लिविंग के टीचर सभी प्रतिभागियों से किसी भी विशेष मार्गदर्शन के लिए व्यक्तिगत रूप से मिलते हैं और उन्हे उचित सलाह देते हैं| आर्ट ऑफ लिविंग की सुदर्शन क्रिया mp3 फॉर्मॅट में उपलब्ध नही है।
जब आप कोर्स के लिए रजिस्टर करते हैं अपने आर्ट ऑफ लिविंग टीचर को अपने स्वास्थ्य की स्थिति से अवश्य अवगत कराएँ( जैसे, गर्भावस्था, उच्च रक्त छाप, मानसिक रोग) आर्ट ऑफ लिविंग टीचर आपके स्वास्थ्य की स्थिति के अनुसार आपको विशेष निर्देश देंगें।
श्री श्री रविशंकर और आर्ट ऑफ लिविंग फाउण्डेशन
रविशंकर का जन्म भारत के तमिलनाडु राज्य में 13 मई 1956 को हुआ। उनके पिता का नाम व वेंकट रत्नम था जो भाषाविद् थे।इनकी माता श्रीमती विशालाक्षी एक सुशील महिला थीं। आदि शंकराचार्य से प्रेरणा लेते हुए उनके पिता ने उनका नाम रखा ‘रविशंकर’।रविशंकर शुरू से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। मात्र चार साल की उम्र में वे श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों का पाठ कर लेते थे। बचपन में ही उन्होंने ध्यान करना शुरू कर दिया था। इनके शिष्य बताते हैं कि फीजिक्स में अग्रिम डिग्री उन्होंने 17 वर्ष की आयु में ही ले ली थी।
रविशंकर पहले महर्षि महेश योगी के शिष्य थे। उनके पिता ने उन्हें महेश योगी को सौंप दिया था। अपनी विद्वता के कारण रविशंकर महेश योगी के प्रिय शिष्य बन गये। उन्होंने अपने नाम रविशंकर के आगे ‘श्री श्री’ जोड़ लिया जब प्रख्यात सितार वादक रवि शंकर ने उन पर आरोप लगाया कि वे उनके नाम की कीर्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं।
रविशंकर लोगों को सुदर्शन क्रिया सशुल्क सिखाते हैं। इसके बारे में वो कहते हैं कि 1982 में दस दिवसीय मौन के दौरान कर्नाटक के भद्रा नदी के तीरे लयबद्ध सांस लेने की क्रिया एक कविता या एक प्रेरणा की तरह उनके जेहन में उत्पन्न हुई। उन्होंने इसे सीखा और दूसरों को सिखाना शुरू किया।
1982 में में श्री श्री रविशंकर ने आर्ट ऑफ लिविंग फाउण्डेशन की स्थापना की। यह शिक्षा और मानवता के प्रचार प्रसार के लिए सशुल्क कार्य करती है। 1997 में ‘इंटरनेशनल एसोसिएशन फार ह्यूमन वैल्यू’ की स्थापना की जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर उन मूल्यों को फैलाना है जो लोगों को आपस में जोड़ती है।