ममता त्रिपाठी की दो कविताएं : गहन निशा है / संकल्प-वर्तिका

उज्जवल ललाट की / उज्ज्वल प्रभा बुलाती। मानस के मोती को / सर-समुद्र खोजती॥ भटकाव खोज हित / एक बार फिर कस्तूरी के। एक बार फिर से / तार जुड़े दूरी के॥

Update:2016-10-28 19:42 IST

MAMTA TRIPATHI

गहन निशा है

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तिथि अमावस

न सूझता कुछ

बेबस अन्तस् ॥

पर है एक टकटकी

एक आस

जीवन की लौ

ज्योति की लकीर

बदल देगी तकदीर

सुबह की लाली

लिखेगी नयी गाथा

उस ऊर्जा में खो जायेगा

जीवन का अमावस

गहन निशा

और तिरोहित होगी

सारी व्यथा॥

संकल्प-वर्तिका

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संकल्पों की वर्तिका,

भावना का स्नेह भरा।

आलोकित मानस,

प्रज्वलित है दिया॥

उज्जवल ललाट की

उज्ज्वल प्रभा बुलाती।

मानस के मोती को

सर-समुद्र खोजती॥

भटकाव खोज हित

एक बार फिर कस्तूरी के।

एक बार फिर से

तार जुड़े दूरी के॥

(फोटो साभार:यूट्यूब)

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