रामकृष्ण वाजपेयी
उमा भारती एक बार फिर सब कुछ छोड़कर गंगा मुक्ति अभियान पर निकलने जा रही हैं। भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव का खाका तैयार कर लिया है जिसमें आधे से अधिक निवर्तमान होने जा रहे पार्टी सांसदों का टिकट कटना तय बताया जा रहा है। हालांकि इसका फिलहाल खुलासा पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव पर पड़ने की आशंका से फिलहाल नहीं किया गया है।
उधर भाजपा की वरिष्ठ नेता व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के लोकसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा के बाद से ही पार्टी के लगभग आधा दर्जन बुज़ुर्ग नेताओं के भी लोकसभा के चुनाव मैदान से हटने के कयास लगाए जा रहे थे। हालांकि सुषमा स्वराज ने स्वास्थ्य संबंधी कारणों से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की थी। उनके अगले साल राज्यसभा भेजे जाने की संभावना बरकरार है।
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सुषमा के बाद अब उमा भारती ने भी चुनाव न लड़ने का एलान कर दिया है। सूत्रों का यह कहना है कि पार्टी इस बहाने कई बुजुर्ग वरिष्ठ नेताओं को चुनावी राजनीति से ही दूर करने का मन बना चुकी है। जिसमें भाजपा के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, भुवनचंद्र खंडूड़ी, शांता कुमार, करिया मुंडा, कलराज मिश्रा, हुकुम देव यादव, बिजॉय चक्रवर्ती, भगत सिंह कोश्यारी जैसे नाम प्रमुखता से लिए जा रहे हैं। इसके अलावा कई सांसदों का खराब रिपोर्ट कार्ड भी उन्हें चुनावी राजनीति से बाहर कर सकता है जिसमें मोदी मंत्रिमंडल के आधे के लगभग मंत्री भी आ सकते हैं। कहा यह भी जा रहा है कि भाजपा के चुनाव न लड़ने वाले वरिष्ठ नेताओं की भूमिका इस बार बदलेगी। चुनाव न लड़ने वाले यह नेता इस बार बदली भूमिकाओं में नजर आ सकते हैं।
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गौरतलब है कि भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी युग समाप्ति की शुरुआत 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद शुरू हो गई थी जब 2009 में पार्टी का नेतृत्व करने वाले लालकृष्ण आडवाणी की लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष पद से विदाई हुईं और सुषमा स्वराज ने उनकी जगह ली। और नितिन गड़करी के हाथ में पार्टी की कमान आई।
2014 में अभूतपूर्व सफलता हासिल करते हुए जब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत से सरकार बनी तो अमित शाह को पार्टी की कमान दे दी गई। शाह ने अपनी टीम में युवा चेहरों को तरजीह दी और साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की संसदीय बोर्ड से विदाई कर मार्गदर्शक मंडल में बैठा दिया। लेकिन गौरतलब यह है कि बीते साढ़े चार साल में इस मार्गदर्शक मंडल ने क्या किया ये किसी को याद भी नहीं होगा। क्योंकि इस मार्गदर्शक मंडल की कोई बैठक ही नहीं हुई।
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रही बात सुषमा स्वराज और उमा भारती की तो ये दोनो 2019 की बिसात पर पार्टी का मोहरा भर नजर आ रही हैं। दोनों की चुनावी राजनीति से स्व विदाई के अपने अपने तर्क हैं। अब उमा भारती का यह साफ कहना कि यह राजनीति से संन्यास नहीं है। गंगा के लिए किसी एक को सत्ता छोड़कर गंगा किनारे जाना पड़ेगा और मैं वही कर रही हूं। इसके लिए मुझे पार्टी का पूरा समर्थन चाहिए। उनका यह भी कहना है कि उन्होंने तो सुषमा स्वराज से भी पहले चुनाव न लड़ने की बात कह दी थी। वह अगले महीने मकर संक्रांति से डेढ़ साल के लिए देश की पवित्र नदी गंगा के किनारे करीब 2,500 किलोमीटर की पैदल यात्रा शुरू करेंगी। और गंगा को अविरल एवं निर्मल बनाने के लिए लोगों एवं संत समाज से अपील करेंगी। लेकिन इससे पहले वह कुछ दिन हिमालय पर प्रवास करेंगी। उमा चुनाव तो नहीं लड़ेंगी लेकिन भाजपा के चुनाव प्रचार में स्टार प्रचारक बनी रहेंगी। वह जोर देकर कहती हैं कि वह राजनीति मरते दम तक करेंगी। उनसे राजनीति कोई छुड़वा नहीं सकता। राजनीति में ताल ठोंककर रहेंगी।