सुशील कुमार
मेरठ: उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की गांठ खुलने से 2022 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी खेमे में सुकून दिख रहा है। दरअसल,सपा-बसपा-रालोद की राहें जुदा होने भाजपा की बल्ले-बल्ले मानी जा रही है। भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले वेस्ट यूपी की बात करें तो भाजपा के चक्रव्यूह भेदने में गठबंधन काफी हद तक कामयाब रहा है। वेस्ट यूपी के मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद मंडल की 14 में से सात सीटों पर गठबंधन को कामयाबी मिली है। मुरादाबाद, रामपुर और संभल सीटों पर सपा काबिज हुई है जबकि सहारनपुर, नगीना, अमरोहा और बिजनौर में बसपा ने जीत हासिल की है।
बिजनौर में तो मायावती के बाद मलूक नागर ऐसे दूसरे उम्मीदवार हैं, जिन्होंने जीत हासिल की है। गौरतलब है कि 1989 में अपनी सियासी पारी शुरू करते हुए मायावती ने बिजनौर सीट जीती थी। हालांकि रालोद अपने हिस्से की कोई सीट नही जीत सका। लेकिन, पिछले चुनावों के मुकाबले उसकी हार का अंतर काफी कम रहा है। मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, कैराना, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर और बुलन्दशहर सीट पर भाजपा जीती है। सपा-बसपा-रालोद के गठबंधन के बाद यह माना जा रहा था कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की राह आसान नही होगी। लेकिन,अब गठबंधन की गांठ खुल गई है। ऐसे में भगवा खेमे में सुकून की लहर दौड़ती दिख रही है।
मेरठ कैंट ने बचाई भाजपा की लाज
गठबंधन के चलते बेशक उम्मीद के मुताबिक सपी-बसपा और रालोद को कामयाबी नहीं मिली, लेकिन यह कहना भी गलत नही होगा कि गठबंधन का लोकसभा चुनाव में व्यापक असर हुआ है। मेरठ-हापुड़ सीट की ही बात करें तो मेरठ जिले की सात में से पांच सीटों पर भाजपा की करारी हार हुई है। मेरठ कैंट सीट ने ही भाजपा की इज्जत बचाई है वरना भाजपा की हार तय थी। मेरठ शहर, मेरठ दक्षिण, किठौर और हापुड़ विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की हार हुई है। जबकि मेरठ शहर को छोडक़र मेरठ दक्षिण, किठौर और हापुड़ विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के विधायक हैं।
मेरठ शहर में सपा का विधायक है। मेरठ कैंट में एक लाख से अधिक वोटों के अंतर से भाजपा उम्मीदवार राजेन्द्र अग्रवाल की जीत हो सकी। यहां बसपा उम्मीदवार हाजी याकूब कुरैशी को 65 हजार 322 वोट मिले। वहीं भाजपा के राजेन्द्र अग्रवाल को एक लाख 68 हजार 74 वोट मिले। इसी तरह मेरठ जिले की सिवालखास और हस्तिनापुर विधानसभा सीटों पर गठबंधन उम्मीदवार भाजपा उम्मीदवार से आगे रहा। मसलन सिवालखास में गठबंधन उम्मीदवार को 1,28,063 वोट मिले। इसी तरह हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र में 1,09,730 वोट गठबंधन उम्मीदवार को मिले जबकि भाजपा को 1,03987 वोट मिले।
शिवपाल फैक्टर आगे भी अहम
सपाई क्षेत्रों में सबसे ज्यादा अचरज इस बात को लेकर है कि गठबंधन के बलबूते जीरो से 10 पर पहुंचने वाली बसपा उम्मीद के मुताबिक जीत नहीं मिलने का ठीकरा बसपा सुप्रीमो मायावती यह कहकर सपा पर फोड़ रही है कि सपा अपना यादव वोट बैंक सहेज नहीं पाई और इसे गठबंधन प्रत्याशियों को ट्रांसफर नहीं करा पाई। इसके उलट यादव वर्ग भाजपा की ओर चला गया। लोकसभा चुनाव नतीजों से साफ है कि शिवपाल यादव की प्रसपा की वजह से पार्टी को खासा नुकसान हुआ। फिरोजाबाद की सीट तो पार्टी इसी वजह से हारी पर इसके अलावा प्रसपा ने कई सीटों पर सपा की पराजय में भूमिका निभाई। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसीलिए कहा कि शिवपाल यादव ने यादव वोट भाजपा को ट्रांसफर करा दिए। अब बसपा का साथ भले ही न हो, लेकिन शिवपाल फैक्टर तो सपा के लिए आगे भी अहम रहेगा।
रालोद के लिए उपचुनाव महत्वपूर्ण
सपा-बसपा के मुकाबले उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव रालोद के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पार्टी को उत्तर प्रदेश विधानसभा में अपनी उपस्थिति महसूस कराने का मौका मिलेगा। गौरतलब है कि ताजा लोकसभा चुनाव में रालोद प्रमुख अजीत सिंह मुजफ्फरनगर से, उनके बेटे जयंत चौधरी बागपत से और कुंवर नरेंद्र सिंह मथुरा से चुनाव हार गए। बहरहाल,2019 लोकसभा चुनाव के सियासी अखाड़े में एक हुई सपा-बसपा और रालोद अब अकेले चलने की तैयारी में है। इन सबकी पहली परीक्षा 11 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के जरिए होनी है। उपचुनाव के नतीजे यह भी तय करेंगे की गठबंधन की गांठ खुलने से भाजपा की राह कितनी आसान हुई है।