Yogesh Mishra Special: महिला स्वतंत्रता की जड़ता

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2018-06-25 21:52 IST

कल्पना चावला अंतरिक्ष की उड़ान भरती हैं। बछेंद्री पाल एवरेस्ट विजय करतीं हैं। अवनी चतुर्वेदी और भावना कांत फाइटर प्लेन उड़ाने का नायाब काम कर दिखाती हैं। भारत में इंदिरा गांधी, बांग्ला देश में शेख हसीन, पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो, श्रीलंका में सीरी माओ भंडार नाइके और इजराइल में गोल्डा मेयर कब की प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच चुकी हैं। लेकिन महिला स्वतंत्रता, अधिकार और उपलब्धियों की इस हवा से सऊदी अरब आज भी बहुत दूर है। बेगाना है। अनपहचाना है। वहां तो सिर्फ इस बात को लेकर जश्न मनाया जा रहा है कि महिलाओं को ड्राइविंग लाइसेंस जारी हो गया। बीते 24 जून को जारी यह लाइसेंस सऊदी अरब में महिला स्वतंत्रता का शिखर है।

यह प्रतिबंध इसलिए लगाया गया था क्योंकि वर्ष 2011 में 'वूमेन टू ड्राइव मूवमेंट' चला। इसी साल के सरकारी रिपोर्ट में यह कहा गया कि महिलाओं को यदि ड्राइविंग की इजाजत दी जाएगी तो उनकी वर्जिनिटी खत्म हो जाएगी। यह रिपोर्ट सऊदी अरब के सूरा प्रांत ने जारी की थी। महिलाओं को ड्राइविंग लाइसेंस मिलने का श्रेय सामाजिक कार्यकर्ता लुजैन अल हथलोन को जाता है। हद तो यह है कि सऊदी अरब के धार्मिक नेता यह कहते रहे कि महिलाएं गाड़ी चलाने के काबिल नहीं होतीं। क्योंकि उनके पास दिमाग का एक चौथाई हिस्सा होता है। उनके इस बयान को 24 घंटे में एक लाख उन्नीस हजार बार हैशटैक किया गया। 1 दिसंबर, 2014 को हथलोन को कार चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। हाल-फिलहाल ही यहां महिलाओं को स्टेडियम में जाकर फुटबाल मैच देखने की अनुमति मिली है। यहां महिलाओं को खुफिया और सैन्य सेवाओं में नौकरी तो मिल सकती है पर वे युद्ध में भाग नहीं ले सकती हैं। यहां की महिलाएं अपनी पुरुष अभिभावक की मदद के बिना बैंक अकाउंट नहीं खोल सकती। पासपोर्ट बनावाने और घर से बाहर निकलने के लिए उन्हें पुरुष अभिभावक से सहमति लेनी पड़ती है। शादी करने और तलाक लेने के लिए भी उन्हें स्वतंत्रता नहीं है। उन्हें इसके लिए भी पुरुष अभिभावक की अनुमति अनिवार्य है। महिलाओं को होटलों और रेस्टोरेंट में अपने पुरुष मित्र के साथ बैठने की छूट नहीं है। महिलाएं अकेले सफर भी नहीं कर सकती हैं। महिलाओं के लिए अपने शरीर छुपाना जरूरी है। बीते साल रियाद की सड़क पर खुली खड़ी एक महिला की तस्वीर पर सोशल मीडिया में काफी विवाद हुआ। उन्हें पूरी तरह ढीले-ढाले और ढकने वाले 'अबाया' पहनना पड़ता है, जिसे हम हिजाब भी कह सकते हैं।

सऊदी अरब में धर्म गुरुओं ने महिलाओं के मेकअॅप न करने और बूटेदार कपड़े न पहनने का फतवा जारी कर रखा है। लेकिन इसके खिलाफ मुंह खोलने की मनाही है। सऊदी अरब महिलाओं पर सर्वाधिक प्रतिबंध वाला देश है। लिंगभेद सूचकांक में 144 देशों में सऊदी अरब का 138वां स्थान है। तभी तो पुरुषों के साथ अधिक समानता को लेकर अभियान चलाने वाली महिला कार्यकर्ताओं को पिछले महीने 'विदेशी ताकतों' से संबंध और देश को अस्थिर करने की कोशिश के संदेह में गिरफ्तार किया गया। सऊदी अरब बहावियत का पालन करता है, जिसमें महिलाओं के लिए इस्लामी नियम काफी सख्त हैं। तभी तो वहां एक मशहूर गायक को एक खास डांस स्टेप की वजह से गिरफ्तार होना पड़ा। इस स्टेप कोे 'डैविंग' कहते हैं।

इन हालातों के बावजूद क्राउन प्रिंस मोहम्मद विन सलमान देश को उदार आधुनिक बनाने की योजना के तहत उदार इस्लाम की वापसी की बात करते हैं। अगर ड्राइविंग लाइसेंस पा जाना, मैच देख लेना ही उदारता की दिशा में उठाया गया कदम है तो यह साफ है कि वैश्विक पैमाने पर स्त्रियों की स्वतंत्रता और उनकी उपलब्धियों के आस-पास पहुंचने में अभी सऊदी अरब को कई सौ साल लगेंगे। महिलाएं दोयम दर्जे की ही बनी रहेंगी। सऊदी अरब ने खुद को दुनिया से अलग-थलग कर रखा है। नतीजतन, दूसरे इस्लामिक देशों- इजिफ्ट, टर्की यहां तक कि पाकिस्तान में रहने वाली मुस्लिम महिलाओं से सऊदी अरब की महिलाओं का रश्क होना लाजिमी है। सऊदी अरब महिलाओं के साथ जो कर रहा है वह न तो कुरान की आयतों में है और न ही इस्लाम की शिक्षा में। फिर वह किधर जा रहा है, महिलाओं को किधर ले जा रहा है। यह सवाल लाख टके का हो जाता है। वैश्विकरण के दौर से पहले भी समाज की तमाम रूढि़यां तोड़ने के लिए आंदोलन हुए, वो चाहे महिलाओं से जुड़ी रूढि़यां, अंध विश्वास व कुप्रथाएं रही हों अथवा किसी जाति विशेष से जुड़ी। हर धर्म और जाति में सामाजिक आंदोलन उसके अंदर से उपजे हैं। नतीजतन, धर्मों ने अपना स्वरूप बदला है। पूजा-पाठ के तौर तरीके बदले हैं। किताबें बदली हैं। धर्म ने तमाम जड़वत प्रश्नों के उत्तर भी दिए हैं। खंडन-मंडन भी हुआ है। वाद-विवाद भी हुआ है। लेकिन लगता है सऊदी अरब में इस तरह के आंदोलन और अभियान के लिए कोई 'स्पेस' नहीं है। इस 'स्पेस' का निरंतर कम होना ही कल्पना चावला, बछेंद्री पाल, अवनी चतुर्वेदी, इंदिरा गांधी आदि-इत्यादि की यात्रा में सबसे बड़ा अवरोध है।

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