लखनऊः नेताजी के बेटे हैं तो क्या हुआ। हैं तो बेटे ही। सरकार और साइकिल चला रहे भैया जी को अब पिता के कहने पर गायत्री मंत्र तो सुनना ही पड़ रहा है। पार्टी के जलसे में सरकार ने रवायत तोड़ते हुए संयोजक का नाम लिया। उनसे मंच पर मिले। भाषण में भी उन्हें जगह दी। भले ही तलवार चलाने के नाम पर दी। फिर उनके शोक में उनके घर गए। कहा यह भी जाता है कि शोक में जाने के लिए नेताजी ने ही फरमान सुनाया था। अब अपने दुख में इन्हें यही संतोष हो गया कि चलो शुरुआत तो हुई।