नवयुवकों को संदेश देती कहानी: वो भोला सांवला लड़का

Update:2017-08-18 16:32 IST

मधु तोमर

पांच वर्ष पहले की यादें हैं जो आज भी आंखों में घूमने लगतीं हैं। योगेश जी नए थाने पर पदस्त हुए और उन्होंने वहां गुंडों की धरपकड़ शुरू की, उनकी जीप में एक सांवला सा लडक़ा हमेशा साथ रहता ड्राइवर से पूछा तो पता चला वह नव-आरक्षक है जो अनुकम्पा भर्ती में आया है, साहब ने उसे खुफिया में रखा है इसलिए वर्दी नहीं पहनता। तभी लगा कि इतना छोटा 18 साल का लडक़ा जिम्मेदारी संभालने लगा।

साहब के साथ ही रहता और मुझे भी मां जैसा स्नेह देता, न जाने क्यों मुझसे इतना स्नेह हो गया उसे। दिनभर दौड़ता, कभी बच्चों के साथ खेलता, एक दिन कहा मैडम मेरा कोई घर नहीं मुझे यहीं अच्छा लगता है आप मेरा इतना ध्यान रखती हो। मैं कहीं और नहीं जाना चाहता साहब से कहकर मुझे घर बुला लो, कहता मुझे बंगले से कहीं और जाने की इच्छा नहीं होती, हमारे साथ रहना, खाना उसे अच्छा लगता। कई बार घूमने जाते तो जिद करता कि मुझे भी ब्रांडेड कपड़े और जूते चाहिये, उसकी जिद बच्चों की तरह पूरी करती। अब तो अनिल इस घर का सदस्य बन गया, किसी का मन अनिल के बगैर नहीं लगता।

कुछ हफ्ते में घर में ज्यादा व्यस्त हो गयी, याद ही नहीं आया कि अनिल 2 हफ्तों से नहीं आया। मुझे कुछ बेचैनी हुई अनिल को फोन लगाया। कहा, लाइट का बिल भरना है तुम आये क्यों नहीं इतने दिनों से। अनिल की आवाज बहुत धीमी थी कहा मैडम मेरी तबियत ठीक नहीं, पता चला अनिल 2 हफ्तों से बीमार है हॉस्पिटल में भर्ती है, मन में बहुत ग्लानि हुई कि दिनभर परछाई की तरह सबके साथ रहता और उसे जरूरत है तब कोई साथ नहीं। उसके माता-पिता तो बचपन में ही गुजर गए थे, अनिल ताई और ताऊ के साथ रहता था। मैं हॉस्पिटल पहुंची डॉ. बोले कि अत्यधिक शराब पीने से पीलिया बिगड़ गया है और 4 लाख रुपए लगेंगे, तभी कुछ हो सकता है योगेश जी ने विभाग में एप्लिकेशन दी लेकिन उसमें टाइम लगता है,फिर सोचा सभी अधिकारी मिलकर खर्च उठा लेंगे।

उसकी ताई के पास उसके बैंक खाते की पास-बुक थी जब में आईसीयू में उसे देखने पहुचीं तो उसने मुझे सजल नेत्रों से देखा और पास बुलाकर अपने माथे पर मेरा हाथ रख लिया और बहुत कुछ कहना चाहता था अपनी जिंदगी का दूसरा पहलू जिसे में नहीं जानती थी, मुझे कभी नहीं लगा वह इतना नशा करता होगा या उसके जीवन का दूसरा सच त्रासदी और कम उम्र में गलत राह पर जाना, शायद अब बताना चाहता था जो हमें नहीं मालूम था। कुछ भी सभी उसकी आदतों की बुराई कर रहे थे। इलाज के बारे में किसी को चिंता नहीं अनिल की ताई से ज्यादा बात करना मुझे उचित नहीं लगा लालची महिला लगी, खाते में पैसे थे शायद वो छुपाना चाह रही थी। मैंने मन में निर्णय लिया कल से उसका इलाज का खर्च में करूंगी। और घर आ गयी। घर आई तो देखा मेहमान आ गए ननदजी रहने। खातिरदारी में लग गयी, पता नहीं क्यों रात 2 बजे नींद खुल गईं और लगा अनिल मुझे आवाज दे रहा है।

सबको बताया कि सुबह में जल्दी हॉस्पिटल जाऊंगी देखने। 5 मिनट बाद फोन आ गया कि अनिल नहीं रहा...। कुछ देर में और बच्चे रोते रहे। बच्चे तो आखिरी दिनों में मिल भी नहीं पाए, इसका अफसोस था बच्चों को। मुझे न जाने क्यूं उसकी आंखें कुछ कहना चाह रही थीं। और इस तरह वो कथित, भोला, सांवला सा लडक़ा इस दुनियां से चला गया। अखबार में भी उसका सच उजागर हुआ कि रात को वह अत्यधिक शराब पीता था, सबकी परवाह करता अपनी नहीं। काश मुझे पता होता कि भोला सा लडक़ा ये सब करता है तो शायद मैं समझा पाती उसे।

इसलिए इंसान को अपना ध्यान स्वयं रखना चाहिए, प्रशासनिक नियम है कि जो राज्य की, परिवार की और अपनी परवाह करता है, वही देश-भक्ति जनसेवा कर सकता है। अनिल चला गया इस दुनियां से। मगर मैं सभी भटके हुए नवयुवकों को एक संदेश देना चाहती हूं, ईश्वर ने हमें देश, राज्य परिवार के प्रति कर्तव्य निर्वहन के लिए भी बनाया है अपनी जिंदगी की हिफाजत कीजिये क्योंकि जान है तो जहान है। मेरी स्मृतियों में वो सांवला भोला लडक़ा आज भी जिंदा है। बस अफसोस मुझे है कि काश में उसे बचा पाती।

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