इस समुदाय के लोगों को शेरों के बीच रहने पर नहीं लगता डर, जानिए क्या है कारण
भारत एक ऐसा देश है, जहां अलग-अलग जाति, समुदाय और धर्म के लोग रहते हैं। कई ऐसे दूसरे देश हैं, जहां के निवासी भारत में आकर बसे हैं। ऐसी ही एक अफ्रीकन...
गांधी नगर। भारत एक ऐसा देश है, जहां अलग-अलग जाति, समुदाय और धर्म के लोग रहते हैं। कई ऐसे दूसरे देश हैं, जहां के निवासी भारत में आकर बसे हैं। ऐसी ही एक अफ्रीकन कम्युनिटी है 'सिदी'। इस कम्युनिटी के लोग भारत और पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे हैं। सिदी समुदाय के लोग भारत में मुख्यतः गुजरात में रहते हैं।
गुजरात के दो गांव जम्बुर और सिरवान में इनकी तादाद काफी है
हालांकि, इनका अस्तित्व कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी है। पाकिस्तान में ये लोग मकरान और कराची में मिलते हैं। भारत के पश्चिमी तट पर स्थित गुजरात के दो गांव जम्बुर और सिरवान में इनकी तादाद काफी है। ये लोग गिर के जंगल और आसपास के इलाकों में रहते हैं और कहा जाता है कि जूनागढ़ में इनकी 15 हजार की आबादी है।
7वीं शताब्दी में सिदी कम्युनिटी ने अपना गृहनगर छोड़ दिया था और वे भारत आकर बस गए थे। यह जातीय समूह साउथईस्ट अफ्रीका के बंतू समाज का वंशज है। कहा जाता है कि इनके पूर्वज अफ्रीकी थे, जिन्हें गुलाम के रूप में इस उपमहाद्वीप में अरब और पुतर्गाली व्यापारियों द्वारा लाया गया। वहीं, अन्य लोग लड़ाके, व्यापारी और नाविक के रूप में यहां आए थे।
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सिदी मुख्य रूप से मुसलमान होते हैं
कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि लाखों अफ्रीकी लोगों ने समुद्र पार कर भारत का रुख किया था। सिदी मुख्य रूप से मुसलमान होते हैं, हालांकि कुछ सिदी हिंदू और कैथलिक चर्च से भी ताल्लुक रखते हैं।
'सिदी' नाम की उत्पत्ति कैसे और कहां से हुई, इसके पीछे कई सारी थिअरीज हैं। जहां कुछ लोगों का मानना है कि इस शब्द को नॉर्थ अफ्रीका में सम्मान के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, वहीं कुछ का कहना है कि यह टाइटल 'कैप्टन्स' या अरब के 'sayyids' द्वारा लाया गया जो कि उन्हें सबसे पहले भारत लेकर आए थे।
देवा-डूंगर रास्ते पर एक गांव पड़ता है, जिसका नाम सिरवान है। इस गांव में काफी सारे सिदी समुदाय के लोग हैं। उन्हें जूनागढ़ के नवाब के लिए लाया गया था। आज वह अपने कुछ ही ऑरिजनल कस्टम्स को फॉलो करते हैं, जिनमें से एक धमाल डांस है। सिदी समुदाय की जो बात टूरिस्टों को आकर्षित करती है, वह उनका हिंदी, गुजराती जैसी भाषाओं में बात करना है।
वे फर्राटेदार हिंदी और गुजराती बोलते हैं
चूंकि वे शुरू से भारत में रह रहे हैं, ऐसे में वे फर्राटेदार हिंदी और गुजराती बोलते हैं। गुजराती सिदियों ने गुजराती और हिंदी भाषा को पूरी तरह से धारण कर लिया है। उनकी बंतू परंपरा की कुछ चीजें आज भी जिंदा हैं, जैसे गोमा म्यूजिक और 'धमाल' डांस फॉर्म।
गिर के जंगल में टूरिस्ट गाइड का काम कर रहे सिदी बापू एन मजगुल ने बातचीत के दौरान बताया, 'अगर 6 लोग एकसाथ सफारी करते हैं तो उसके लिए भारतीयों को 5300 रुपये चुकाने पड़ते हैं जबकि विदेशियों को इसके लिए 13800 रुपये देने पड़ते हैं। 6 से ज्यादा मेंबर होने पर चार्ज बढ़ जाता है।
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हमें एक सफारी पर 400 रुपये मेहनताने के रूप में मिलते हैं। गिर में एक दिन में 3 बार सफारी होती है। पहली सुबह 6.45 से 9.45 के बीच, फिर 8.30 से 11.30 के बीच और फिर शाम को 3 से 6 के बीच। 16 अक्टूबर से 15 जून के बीच ही जंगल टूरिस्टों के लिए खुला रहता है।'
हमारे दो मुख्य गांव हैं जम्बुर और सिरवान
सिदी बापू ने आगे बताया, 'हमारे दो मुख्य गांव हैं जम्बुर और सिरवान। टोटल जूनागढ़ जिले में 15 हजार की आबादी है। हमारा एक ट्राइबल डांस होता है, जो बाप-दादा के समय से चला आ रहा है और वह हमारी खासियत है। उसे सिदी धमाल ट्राइबल डांस कहते हैं। हमारी यहां चौथी जेनरेशन चल रही है। 1947 में देश आजाद हुआ और उस समय से दादा-परदादा यहां पर हैं।
हमारी कम्युनिटी के लोग यहां लेबर का काम करते हैं, कोई ट्राइबिंग करता है, कोई गवर्नमेंट जॉब करता है, कोई पुलिस में तो कोई आर्मी में है। हम लोगों को यहां जूनागढ़ के नवाब हार्डवेयर का काम करने के लिए लाए थे। लोग कहते हैं कि हमें यहां गुलाम के रूप में लाया गया लेकिन ऐसा नहीं है।
इंदिरा गांधी ने कानून बनाया था कि सिदी की खेती किसी के नाम ट्रांसफर नहीं हो सकती
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हम लोग मजबूत लोग हैं और ड्रम बजाते हैं, वह जूनागढ़ के नवाब का शौक था। उस समय सभी के पास खेती थी, अब किसी के पास है और किसी के पास नहीं। उस टाइम पर इतना पैसा नहीं था तो किसी का खेत ट्रांसफर नहीं हो सकता है। इंदिराजी ने कानून बनाया था कि सिदी की खेती किसी के नाम ट्रांसफर नहीं हो सकती है।'
यह पूछने पर कि आप लोगों को शेरों के बीच रहने पर डर नहीं लगता, सिदी ने कहा, 'डर क्यों लगेगा, डर तो इंसान को इंसान से लगता है। शेर तो अपने एरिया से चला जाता है, वह तो इंसान पर हमला करता ही नहीं है।
शेर ट्राइबल से हमेशा दूर रहता है क्योंकि कभी-कभी ट्राइबल लोग उन्हें भगाने की कोशिश करते हैं, उनका बफेलो भी डेंजर होता है, ट्राइबल की बॉडी से एक गंध आती है जिससे शेर पहचान लेता है कि वह ट्राइबल है।'