कोहिनूर हीरा: नाम तो सुना ही होगा, आज जान भी लीजिए इसके बारे में

1976 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फ़िकार अली भुट्टो ने भी इसकी मांग की थी, जिसे ब्रिटेन ने ख़ारिज़ कर दिया था। 2002 में, इसे महारानी एलिज़ाबेथ के किरीट की शोभा बनाया गया। बाद में 2002 में, इसे उनके ताबूत के ऊपर सजाया गया। 2007 तक कोहिनूर टॉवर ऑफ लंदन में ही रखा गया।

Update:2020-01-12 18:02 IST

नई दिल्ली: कोहिनूर हीरे का नाम तो सबने सुना होगा लेकिन शायद ही कोई होगा जो उसके बारे में बहुत अच्छे से जानता होगा। तो आज हम आपको इस हीरे के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में होती है।

कोहिनूर का अर्थ होता है रोशनी का पहाड़, लेकिन इस हीरे की चमक से कई सल्तनत के राजाओं के सिंहासन का सूर्यास्त हो गया। ऐसी मान्यता है कि यह हीरा श्रापित है और इस तरह की मान्यता 13वीं सदी से प्रचलित है।

कब मिला ये हीरा

कोहिनूर दुनिया का सबसे मशहूर हीरा है। कोहिनूर मूल रूप से आंध्र प्रदेश के गोलकोंडा ख़नन क्षेत्र में निकला था। पहले यह 793 कैरेट का था। लेकिन अब यह 105.6 कैरेट का रह गया है जिसका वजन 21.6 ग्राम है।

कोहिनूर के बारे में पहली जानकारी 1304 के आसपास की मिलती है, तब यह मालवा के राजा महलाक देव की संपत्ति में शामिल था।

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इसके बाद इसका जिक्र बाबरनामा में मिलता है। मुगल शासक बाबर की जीवनी के मुताबिक, ग्वालियर के राजा बिक्रमजीत सिंह ने अपनी सभी संपत्ति 1526 में पानीपत के युद्ध के दौरान आगरा के किले में रखवा दी थी। इसके बाद ये हीरा मुगलों के पास ही रहा।

कैसे ब्रिटेन पहुंचा हीरा

मुगल वंश के बाद 1813 में ये हीरा महाराजा रणजीत सिंह के पास चला गया। रणजीत सिंह कोहिनूर हीरे को अपने ताज में पहनते थे। 1843 में उनकी मौत के बाद हीरा उनके बेटे दिलीप सिंह तक पहुंचा।

1849 में ब्रिटेन ने महाराजा को हराया। दिलीप सिंह ने लाहौर की संधि पर तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के साथ हस्ताक्षर किए। इस संधि के मुताबिक कोहिनूर को इंग्लैंड की महारानी को सौंपना पड़ा। और फिर ये हीरा 1850 को मुंबई से इसे लंदन के लिए भेज दिया गया।

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तीन जुलाई, 1850 को इसे बकिंघम पैलेस में महारानी विक्टोरिया के सामने पेश किया गया। स्वतंत्रता हासिल करने के बाद 1953 में भारत ने कोहिनूर की वापसी की मांग की थी, जिसे इंग्लैंड ने अस्वीकार कर दिया था।

1976 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फ़िकार अली भुट्टो ने भी इसकी मांग की थी, जिसे ब्रिटेन ने ख़ारिज़ कर दिया था। 2002 में, इसे महारानी एलिज़ाबेथ के किरीट की शोभा बनाया गया। बाद में 2002 में, इसे उनके ताबूत के ऊपर सजाया गया। 2007 तक कोहिनूर टॉवर ऑफ लंदन में ही रखा गया।

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