नोटबंदी और कैशलेश मुद्दे पर अपने बुने जाल में ही फंस रही कांग्रेस

Update:2016-12-23 15:48 IST

Vinod Kapoor

लखनऊ: पीएम नरेंद्र मोदी के 1000 और 500 रुपए के नोटबंदी का राजनीतिक और आर्थिक नतीजा जो भी निकले, लेकिन इसके विरोध में देश की अब तक की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस जैसे तर्क गढ़ रही है उससे राजनीति की छोटी जानकारी रखने वाले भी हैरान हैं।

नोटबंदी और कैशलेस के विरोध में तर्क देने वाले कांग्रेस के नेता कोई छोटे कद के नहीं हैं। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह तक ने इसका विरोध करते हुए देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाला बता दिया है। मनमोहन सिंह दस साल तक देश के पीएम ही नहीं रहे बल्कि देश के वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रह चुके हैं। मनमोहन का तर्क था कि देश की 50 प्रतिशत से ज्यादा जनता अनपढ़ है। इसके अलावा गरीबी भी ज्यादा है। अशिक्षित लोग कैशलेस या नोटबंदी को समझ नहीं पाएंगे। इससे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा।

चिदंबरम का बेतुका तर्क

कुछ ऐसा ही तर्क पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने दिया और कहा कि देश के 50 प्रतिशत गांवों में बिजली नहीं है।बिना बिजली और गांवों में बैंक नहीं होने या लोगों के पास मोबाईल फोन नहीं होने के कारण फोन को बैंक कैसे बनाया जा सकता है।

राहुल गांधी तो सबसे आगे

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी तो पार्टी के इन दो बड़े नेताओं से भी आगे निकल गए। उन्होंने कहा, कि 'देश के पचास बड़े औद्योगिक घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए नोटबंदी का शगूफा छोड़ा गया है।' इसके अलावा उन्होंने पीएम मोदी पर बिड़ला और सहारा समूह से रिश्वत लेने का भी आरोप लगा दिया।

देश में कांग्रेस का रहा लंबा शासन

गौरतलब है कि आजादी के बाद देश में 1952 से 1977 तक लगातार कांग्रेस की सरकार रही। आपातकाल के गुस्से के कारण 1977 के चुनाव में कांग्रेस हार गई लेकिन 1980 में उसे फिर सत्ता हासिल हुई। कांग्रेस की सरकार 1980 से 1989 तक रही। लोकसभा के 1989 के चुनाव में जनता दल ने बीजेपी के बाहरी सपोर्ट से सरकार बनाई और वीपी सिंह पीएम बने।

अर्श से फर्श तक पहुंची कांग्रेस

लोकसभा के 1991 में हुए चुनाव में कांग्रेस फिर केंद्र की सत्ता में आई। पीवी नरसिंह राव पीएम बने। ये सरकार 1996 तक रही। साल 1996 से 2004 तक का कार्यकाल केंद्र में कांग्रेस के लिए सूखा रहा। कांग्रेस 2004 से 2014 तक सत्ता में रही। लोकसभा के 2014 के चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारी और लोकसभा में अपने सबसे कम सदस्यों तक पहुंच गई।

कांग्रेस दे अनुत्तरित सवालों के जवाब

देश में पहले लोकसभा चुनाव से अब तक के कार्यकाल में कांग्रेस लगभग 50 साल सत्ता में रही। ये सवाल उठना लाजिमी था कि यदि 50 प्रतिशत गांवों में बिजली नहीं, 50 प्रतिशत लोग अशिक्षित या गरीबी के नीचे हैं तो इसका जिम्मेवार कौन है। करीब साठ साल तक केंद्र की सत्ता में रही कांग्रेस, ये जानकारी अब क्यों दे रही है कि देश इतना पिछड़ा है। आखिर इस गरीबी, भुखमरी, पिछडापन और अशिक्षा को दूर करने के उपाय क्यों नहीं किए गए। क्यों बेबस को बेबस बने रहने या अमीरों को और अमीर होने की छूट दे दी गई? क्यों ऐसे लोगों पर शिकंजा नहीं कसा गया जो गरीबों का खून चूस और ज्यादा अमीर हो रहे हैं? क्यों जनधन खाता खोलने की मुहिम चलाने के बाद भी 40 प्रतिशत लोगों के पास अभी भी बैंक खाते नहीं हैं? विपक्ष के बड़े नेताओं के नोटबंदी और कैशलेस के खिलाफ बयान को पीएम मोदी ने सिर्फ एक बयान से हवा में उड़ा दिया कि कांग्रेस नेताओं की ओर से दिया जा रहा रिपोर्ट कार्ड आखिर किसका है?

कांग्रेस नीतीश कुमार से ले सीख

हाल की रिपोर्ट के अनुसार देश में 100 करोड से ज्यादा मोबाइल फोन हैं। मतलब हर आदमी के पास एक फोन इसलिए ये कहना कि मोबाईल को फोन नहीं बनाया जा सकता, गले उतरने वाली बात नहीं लगती। यहां नीतीश कुमार का जिक्र करना अप्रासंगिक नहीं होगा, जो नोटबंदी के समर्थन में खुलकर सामने आए। इसमें उन्होंने कोई राजनीतिक दांव-पेंच नहीं देखा और न ये देखा कि केंद्र सरकार या नरेंद्र मोदी के फैसले का समर्थन करने से लालू यादव और कांग्रेस के समर्थन से चल रही उनकी सरकार पर आंच आ सकती है। उनके सपोर्टर नाराज हो सकते हैं।

राजीव गांधी का नाम आया था बोफोर्स सौदे में

कहते हैं इतिहास कई बार अपने को दोहराता है और पीएम पद पर बैठे किसी व्यक्ति को अगर सीधे भ्रष्टाचार के मामले में लपेटा गया है तो यह वाकया भारत में 30 साल के लंबे अंतराल के बाद हो रहा है। बोफोर्स तोप सौदे में दलाली दिए जाने के मामले में 1986 में जब तत्कालीन मंत्री वीपी सिंह ने राजीव गांधी की कैबिनेट से इस्तीफा देकर कांग्रेस से विद्रोह किया था तब देश में एक बड़ा सियासी घमासान मचा था। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी बिड़ला समूह और सहारा से भ्रष्टाचार के तौर पर 2013 में भारी रकम लेने के आरोप पीएम पर लगा दिए हैं लेकिन दोनों आरोपों में फर्क ये कि तोप सौदे में दलाली का आरोप राजीव के कैबिनेट के साथी ने लगाया था। लेकिन ये आरोप विपक्ष ने लगाए हैं।

..तो इस वजह से राहुल जनता से कर रहे शिकायत

राहुल से पहले यही आरोप लगाकर आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता प्रशांत भ्रूषण भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद उन्हें चुप होना पड़ा। संभवत: राहुल या ऐसे ही आरोप लगाने वाले अरविंद केजरीवाल ये अच्छी तरह जानते हैं कि उनके आरोप अदालत में कहीं टिक नहीं पाएंगे, इसलिए वो अपने समर्थकों और जनता के बीच अपनी बात कह रहे हैं।

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