नीतीश का हमला तो था मोदी पर लेकिन नुकसान करेंगे मुलायम का

Update:2016-05-13 14:41 IST

लोकसभा के 2019 में होने वाले चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले बिहार के सीएम और जनता दल यू के हाल ही में अध्यक्ष चुने गए नीतीश कुमार ने पीएम नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 12 मई को उनके दो साल के कामकाज को लेकर हमला बोला। नीतीश कुमार ने अगले साल यूपी विधानसभा चुनाव के लिए नहीं बल्कि अगले लोकसभा चुनाव की अभी से तैयारी के सिलसिले में वाराणसी आए थे।

पूरे राज्य से जनता दल यू के कार्यकर्ता बुलाए गए थे। इसके अलावा वाराणसी से सटे बिहार के पार्टी कार्यकर्ता भी बड़ी संख्या में तैयारी के सिलसिले में वहां थे। कार्यकर्ताओं की बड़ी संख्या देख नीतीश गदगद हुए और ऐलान कर दिया कि अब यूपी के हर इलाके और देश के अन्य हिस्सों में ऐसे ही सम्मेलन होंगे।

नीतीश ने मुख्य रूप से लोकसभा चुनाव में किए वायदे और शराबबंदी को लेकर मोदी की तीखी आलोचना की। मोदी के वायदे मसलन विदेशी बैंकों में जमा काला धन लाने, हर परिवार के बैंक खाते में 15—15 लाख रुपए जमा करने और किसानों को लागत पर पचास प्रतिशत मुनाफा देकर फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने जैसी बातें कहीं।

हालांकि पूरे भाषण में उन्होंने एक बार भी नरेंद्र मोदी का नाम नहीं लिया। उनका पूरा हमला बीजेपी पर ही था। खासकर शराबबंदी पर वो जमकर बोले, कहा 'बिहार चुनाव में शराबबंदी का वायदा किया था। उसे पूरा कर दिया। गुजरात में जब शराबबंदी लागू हुई उस वक्त मोदी वहां के सीएम थे। अब पीएम हैं इसलिए पूरे देश में इसे लागू करा सकते हैं।'

ये हमला तो था मोदी पर लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से ये तीर समाजवादी पार्टी के सीने में लगा। यूपी में सपा सरकार ने पिछले 1 अप्रैल से शराब की कीमतें 25 प्रतिशत कम कर दी हैं। ये सपा का विधानसभा चुनाव में किया वायदा था। एक मकसद शराब की तस्करी रोकना भी था। हरियाणा में इसकी कीमतें कम होने से वहां से तस्करी की काफी शराब आती है। खासकर यदि किसी तरह के चुनाव होते हैं तो उसकी मात्रा काफी बढ़ जाती है। इससे सरकार को रेवेन्यू का भारी नुकसान हो जाया करता था। अब कीमतें कम होने से तस्करी पर काफी हद तक लगाम लगा है ।

दरअसल पीएम बनने की नीतीश की दबी इच्छा उस वक्त उभर कर सामने आ गई जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने कह दिया कि विपक्षी दलों को नीतीश को पीएम प्रोजेक्ट कर अगले लोकसभा चुनाव में जाना चाहिए। हालांकि इस सवाल पर पार्टी में उनका विरोध ही कम नहीं हैं। जदयू के बड़े नेता रघुवंश प्रसाद सिंह उनके सभी बड़े विरोधी हैं।

रघुवंश ने नीतीश के वाराणसी दौरे की भी आलोचना की

नीतीश यदि 12 मई को वाराणसी में थे तो रघुवंश बिहार में ही उनकी शराबबंदी और कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर आलोचना कर रहे थे। रघुवंश ने कहा कि नीतीश अकेले घूमकर सेक्यूलर ताकतों को कमजोर कर रहे हैं।धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट करने के बाद नेता का चुनाव होना चाहिए। उन्होंने नीतीश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारी पर तंज कसते हुए कहा 'कुछ लोग अपने को स्वयं प्रधान बताकर घूमने लगे हैं।'

नीतीश ने अपने भाषण में बिहार के महागठबंधन का भी जिक्र किया था। रघुवंश ने कहा बिहार में कोई महागंठबंधन नहीं है। इस महागठबंधन के तीनों दलों के कुछ नेता सरकार में शामिल हैं। पार्टी और संगठन स्तर पर कोई तालमेल नहीं है। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार पहले जवाब दें कि बिहार में पहले शराब क्यों बिकवाई। शराबबंदी के अतिरिक्त इस राज्य में कानून-व्यवस्था भी एक बड़ा मुद्दा है। उन्होंने कहा कि यूपी में जदयू का पहले क्या हश्र हुआ है यह किसी से छुपा हुआ नहीं है।

सच भी है कि यूपी में नीतीश की पार्टी का कोई जनाधार नहीं है। दो-चार सीटें ही ऐसी हैं जहां से पार्टी प्रत्याशी पाच दस हजार वोट पा पाते हैं । यूपी में जनाधार मजबूत करने की बात कह मुलायम को सतर्क ही किया है।

दरअसल बिहार चुनाव के वक्त से ही मुलायम और नीतीश के बीच छत्तीस का आंकडा है। नीतीश ने सपा को चुनाव में पांच सीटें देकर अपमानित किया था। इससे मुलायम इतने आहत हुए कि वो महागठबंधन से अलग हो गए और सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा। ये नहीं लगता कि वो नीतीश को अपने गढ़ वाले राज्य यूपी में इतनी आसानी से जगह बनाने देंगे।

आज के राजनीतिक हालात में तो मुलायम को अगल कर कोई राजनीतिक मोर्चा बनता दिखाई नहीं देता। ये भी नहीं लगता कि मुलायम ,नीतीश को अगले लोकसभा चुनाव में बतौर पीएम प्रत्याशी स्वीकार कर लेंगे।

यूपी में जदयू का कोई जनाधार नहीं है। बिहार से इस पार्टी का जनाधार वो ही है जो यूपी में सपा का है। नीतीश यदि यूपी में जनाधार मजबूत करते हैं तो वो मुलायम को कमजोर करेंगे और इसका फायदा बीजेपी या मोदी को मिलेगा ।

शिवपाल सिंह यादव कहते हैं

यहां नीतीश का क्या है। आएं सभा करें और जाएं। ज्यादा उम्मीदें नहीं पालें। कोई मोर्चा नहीं बन सकता। साम्प्रदायिक ताकतों से हमेशा सपा ही लड़ सकती है। नीतीश क्या लड़ेंगे उन्होंने तो साम्प्रदायिक ताकतों के साथ मिलकर नौ साल सरकार चलाई है।

बीजेपी के उप प्रेसिडेंट केशव मौर्या का कहना हैं

विरोध का चश्मा पहने नीतीश को मोदी के दो साल के काम दिखाई नहीं देते। गरीबों के लिए बीमा, जनधन खाता तथा गैस की राज सहायता का पैसा सीधे उपभोक्ता के खाते में जाना क्या अच्छे दिन की निशानी नहीं है। गरीबों को मुफ्त गैस कनेक्शन देने की योजना क्या नीतीश को दिखाई नहीं देती। प्राकृतिक आपदा में किसानों के फसल नुकसान का प्रतिशत बढ़ा देना क्या पहले किसी सरकार ने किया था।

राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि यूपी में पहले तो विधानसभा के चुनाव अगली साल की शुरुआत में होने हैं। पीएम बनने की हसरत में नीतीश की यूपी में ज्यादा चहलकदमी सपा को नुकसान और बीजेपी को फायदा पहुंचा सकती है। नीतीश चाहकर भी बीजेपी के वोट बैंक में सेंध नहीं लगा सकते। वो मुलायम को ही नुकसान पहुंचाएंगे। बिहार के चुनाव में भी बीजेपी को 31 प्रतिशत वोट मिले थे जो सबसे ज्यादा थे। उनके सहयोगी दल भी अपना प्रदर्शन सुधार लेते तो परिणाम उलट भी सकते थे। सीएम बने नीतीश की पार्टी को तो मात्र 16 प्रतिशत वोट ही मिले थे।

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