लखनऊ: संकट में समझ से काम लेना इन दिनों मायावती से सीखा जाना चाहिए। अपने दलित एकाधिकार में सेंध लगते देख इस्तीफे का जो उन्होंने दांव चला है, वह बेहद सधा हुआ है। सिर्फ नौ महीने की कुर्बानी देकर मायावती ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ 'लामबंदी का चौसर' बिछा दिया है।
मायावती, लालू के प्रस्ताव को कबूल कर अपनी उत्तर प्रदेश की जमीन खोने का डर छोड़ सूबे से ही लोकसभा का चुनाव लड़ेंगी। सीएम योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्या, इन दोनों को लोकसभा छोड़ विधानसभा जाना है। मायावती, केशव मौर्या की लोकसभा सीट फूलपुर से किस्मत आजमाएंगी। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी मायावती की जीत के रास्ते में पड़ने वाले अवरोध हटाने का काम करेंगे।
फूलपुर सीट से माया का दांव
वर्ष 1996 में बसपा के संस्थापक कांशीराम ने फूलपुर सीट से चुनाव लड़ा था। बहुत थोड़े से अंतर से वह समाजवादी पार्टी के जंगबहादुर पटेल से महज बीस हजार वोट से हार गए थे। हालांकि, पिछले चुनाव में बीजेपी के केशव मौर्या को इस सीट पर 5,03,564 वोट मिले थे। उन्होंने बहुत बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी।
महत्वपूर्ण रहा है फूलपुर सीट
परिसीमन के बाद इस सीट पर शहर उत्तरी विधानसभा का भी इलाका आ गया है, जिस पर लंबे समय से अनुग्रह नारायण सिंह जीतते रहे हैं। हालांकि, पिछली बार यह सीट बीजेपी के खाते में चली गई। फूलपुर पंडित जवाहर लाल नेहरू का भी संसदीय क्षेत्र रहा है। इस सीट से एक बार 1967 में जनेश्वर मिश्रा भी चुनाव हार चुके हैं। हालांकि, बाद में 1969 में वह इसी सीट से जीत गए थे। इस सीट पर केशव मौर्या के खिलाफ नाराजगी है।
आगे की स्लाइड्स में पढ़ें योगेश मिश्र की पूरी विवेचना ...
माया ने साधे कई निशाने
मायावती इस सीट पर अपने साथ ही एक तीर से कई निशाने साधे हैं। पहला- कांशीराम की लड़ाई को आगे बढ़ाएंगी। दूसरा- बीजेपी के खिलाफ एका का सूत्रपात करेंगी। केशव मौर्या अपनी पुरानी सिराथू विधानसभा सीट से किस्मत आजमाएंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ के लोकसभा सीट छोड़ने के बाद विपक्ष इस सीट पर योगी और बीजेपी के उम्मीदवार के खिलाफ रामभुआल निषाद को उतारेगा। इस सीट पर 1999 में योगी आदित्यनाथ सपा के जमुना निषाद के सामने सिर्फ सात हजार वोटों से जीतने में कामयाब हो सके थे। हालांकि, पिछले चुनाव में योगी ने 51.8 फीसदी वोट पाकर एक नया इतिहास रच दिया। विपक्ष का मानना है की योगी के उम्मीदवार न होने पर इस सीट को जीतना आसान होगा। क्योंकि लंबे समय से योगी के खिलाफ निषाद उम्मीदवार उतारे जा रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा दोनों ने निषाद उम्मीदवार उतारे थे और उन्हें क्रमश: 21.95 और 16. 95 फीसदी वोट मिले थे।
अयोध्या से लड़ेंगे योगी
सीएम योगी आदित्यनाथ के लिए गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण, सहजनवा और कैम्पियरगंज के विधायक अपनी सीट छोड़ने को तैयार हैं। लेकिन इन सीटों पर योगी मुख्यमंत्री की तरह विजेता बनकर उभरेंगे, यह सवाल बीजेपी के लिए परेशानी का सबब है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ अयोध्या सीट से चुनाव लड़ेंगे। इससे न केवल हिन्दुत्व के एजेंडे को धार मिलेगी बल्कि मंदिर निर्माण में बातचीत के रास्ते खोलने के साथ अवरोध दूर करने की दिशा में भी सरकार का काम आसान होगा। आने वाले दिनों में राज्य सरकार की अयोध्या पर मेहरबानी देखने लायक होगी।
दिनेश शर्मा रामनगर सीट से आजमाएंगे किस्मत
उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा बाराबंकी की रामनगर सीट से किस्मत आजमाएंगे। फिलहाल इस सीट पर भाजपा के शरद अवस्थी का कब्जा है। ये पार्टी के जिलाध्यक्ष रह चुके हैं। इस सीट पर ३४ फीसदी के आस पास मुस्लिम मतदाता हैं। बगल की सीट पर जब योगी किस्मत आजमा रहे होंगे तब यहां मुसलमान मतदाताओं के बाद भी जीतना आसान होगा। हलाकि सपा यहां से अपने पूर्व मंत्री अरविन्द सिंह गोप को उतारेगी। बेनी और गोप की अदावत का फायदा भी दिनेश शर्मा को हासिल होगा।
स्वतंत्रदेव सिंह की पहली पसंद माधवगढ़ सीट
परिवहन मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह ने अपने लिए माधवगढ़ की सीट को पसंद किया है। जालौन जिले की तीनों सीटों का टिकट स्वतंत्र की कृपा से ही हासिल हुआ था। माधवगढ़ से मूलचंद निरंजन विधायक हैं। यह भी पूर्व जिलाध्यक्ष रह चुके हैं। हाल-फिलहाल में उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और केशव मौर्या के साथ-साथ स्वतंत्रदेव सिंह, योगी आदित्यनाथ और मोहसिन रजा को राज्य विधानसभा में अपनी जगह तलाशनी है क्योंकि विधान परिषद के चुनाव अभी अगले साल मई में हैं और शपथ ग्रहण के छह महीने के भीतर इन सभी को सदन का सदस्य होना अनिवार्य है। मोहसिन रजा को यदि पार्टी उनके हालात पर छोड़ भी देती है तो कोई हैरत नहीं होनी चाहिए।